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बंदरों के हमले में अधिवक्ता के भतीजे की मौत, भय के माहौल में जी रहे लोग

बोहर के निकट नहर पर टहलने के दौरान बंदरों ने किया हमला। इसी साल मार्च माह में 3600 बंदर पकडऩे की मिली थी मंजूरी। हेल्थ चेकअप न होने के कारण 137 बंदर पकड़कर छोडऩे पड़े

By Manoj KumarEdited By: Published: Fri, 08 Nov 2019 12:54 PM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 03:54 PM (IST)
बंदरों के हमले में अधिवक्ता के भतीजे की मौत, भय के माहौल में जी रहे लोग
बंदरों के हमले में अधिवक्ता के भतीजे की मौत, भय के माहौल में जी रहे लोग

रोहतक [अरुण शर्मा] शहर में बंदरों के आतंक के मामले नहीं थम रहे हैं। अब शहरी क्षेत्र में बंदरों के हमले की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। बोहर निवासी एक अधिवक्ता के इकलौते भतीजे की बंदरों के हमले से मौत हो गई। हालांकि कुछ दिन पहले का मामला है। बृहस्पतिवार को अधिवक्ता न्याय की गुहार लेकर नगर निगम कार्यालय में पहुंचे। दूसरी ओर, शहर में बंदर पकडऩे का अभियान दो माह से बंद है। ठेकेदार ने दावा किया है कि सरकारी पशु चिकित्सकों ने पकड़े गए बंदरों का हेल्थ चेकअप नहीं किया। नगर निगम प्रशासन की तरफ से भी अब कोई पशु चिकित्सक तैनात नहीं है। इसलिए अभियान बंद किया गया है।

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नहर पर टहल रहा था बलराम, बंदरों ने हमला किया तो खाली नहर में कूदा, रीढ़ की हड्डी तक टूटी

बोहर निवासी अधिवक्ता सतीश कौशिक ने नगर निगम कार्यालय पहुंचकर पूरी घटना बताई। अधिवक्ता कौशिक ने बताया है कि उनका भतीजे बलराम पुत्र ललित कौशिक जेएलएन नहर के निकट रोजाना टहलने जाते थे। वह राजकीय उच्च विद्यालय भालौठ में 11वीं की पढ़ाई कर रहे थे। पांच-छह दोस्तों के साथ बलराम उस दिन टहलने गए थे। कई बंदरों ने अचानक हमला किया तो साथियों ने भागकर जान बचाई। वहीं, बलराम बंदरों के हमले से बचने के लिए खाली पड़ी जेएलएन नहर में कूद गए। नहर में पानी होता तो तैर सकते थे और जान बच सकती थी। हालांकि खाली नहर होने के पत्थरों पर गिरने के कारण रीढ़ की हड्डी टूट गई। सिर में भी गंभीर चोट आईं। पीजीआइ में एक माह से अधिक समय तक इलाज चला, 29 अक्टूबर को बलराम की मौत हो गई। अब न्याय की गुहार लगाई है।

निगम ने पशु चिकित्सक हटाया, वन्य प्राणी विभाग ने भी नहीं किया सहयोग

बंदर पकडऩे के कार्य से जुड़े ठेकेदार अजीत ने बताया है कि करीब दो माह पहले अभियान शुरू किया गया था। 137 बंदर पकड़े गए। उस दौरान बंदरों का हेल्थ चेकअप करने के लिए नगर निगम की तरफ से तैनात पशु चिकित्सक से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि मैं अब तैनात नहीं हूं। इसलिए पशु पालन विभाग के चिकित्सकों से संपर्क किया तो उन्होंने कह दिया कि सिर्फ पालतू पशुओं का ही हेल्थ चेकअप कर सकते हैं। वन्य प्राणी विभाग में सिर्फ एक ही पशु चिकित्सक तैनात हैं। वह चिकित्सक व्यस्त होने के साथ ही बाहरी जिलों में भी सरकारी कार्यों से जाते रहते हैं, इसलिए हेल्थ चेकअप बिना कार्रवाई पूरी तरह से ठप है।

मार्च माह में 3600 बंदर पकडऩे की मिली थी मंजूरी

शहरी क्षेत्र में बंदरों का आतंक बढ़ा तो पार्षदों ने आवाज उठाना शुरू किया। वार्ड-11 के पार्षद कदम ङ्क्षसह अहलावत की मांग पर इसी साल फरवरी माह में बंदर पकडऩे के लिए टेंडर किए गए। हालांकि वन्य प्राणी विभाग से बाद में मंजूरी मिली। वन्य प्राणी विभाग ने 3600 बंदर पकडऩे की मार्च माह में मंजूरी दी थी।

हेल्थ चेकअप नहीं हुआ तो पेमेंट अटका, पकड़े हुए बंदर छोडऩे पड़े

ठेकेदार ने दावा किया है कि प्रति बंदर पकडऩे के लिए 1225 रुपये तय थे। हेल्थ चेकअप के बाद ही कलेसर के जंगलों में ही बंदर छोड़े जाते हैं। दो माह पहले 137 बंदर पकड़ लिए। हेल्थ चेकअप नहीं हुआ तो पकड़े हुए बंदर छोडऩे पड़े। नगर निगम के अधिकारियों ने पकड़े गए बंदरों का पेमेंट करने से इन्कार कर दिया।

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शहर से बंदर पकडऩे का अभियान क्यों बंद है, इसका पता करेंगे। अभियान तत्काल शुरू कराएंगे।

मनमोहन गोयल, मेयर, नगर निगम

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शहर से पकड़े जाने वाले बंदरों को कलेसर व दूसरे निर्धारित जंगलों में छोड़ा जाता है। पकड़े गए सभी बंदरों का हेल्थ चेकअप पशु चिकित्सक करते हैं। मैंने दो माह पहले 137 बंदर पकड़े, इन बंदरों का सरकारी चिकित्सकों ने हेल्थ चेकअप करने से इन्कार कर दिया। नगर निगम अफसरों ने चेकअप कराए बगैर पेमेंट करने से इन्कार कर दिया। इसलिए बंदर पकडऩे का अभियान बंद पड़ा है।

अजीत, ठेकेदार

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मेरे भजीते के साथ जो वह अन्य किसी के साथ न हो। नगर निगम के अधिकारियों से यही मांग है कि वह शहर से बंदरों को पकडऩे का अभियान शुरू कराएं। बोहर में तो बंदरों का इतना आतंक है कि हर वक्त घटनाएं होने का डर सताता है।

एडवोकेट सतीश कौशिक, स्थानीय निवासी बोहर।


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