हिंसा पीडि़त महिलाओं की एक पुकार पर पहुंचती है बिग सिस्टर, टूटे रिश्तों को जोड़ने की है ये कहानी
जनजागृति अभियान नाम से बने एनजीओ की अध्यक्ष के रूप में नरेश देशवाल बिग सिस्टर बनकर हिंसा से पीडि़त महिलाओं की मदद और न्याय के लिए लड़ती हैं। कई राज्यों में जहां से उन्हें मदद के लिए कोई महिला पुकारे तो वे दौड़ पड़ती हैं।
बहादुरगढ़ [प्रदीप भारद्वाज]। एक हिंदी फिल्म (बिग ब्रदर) का नायक शोषित और पीडि़त लोगों के लिए लड़ता है। उनकी मदद करता है। जहां से भी जैसी भी पुकार हो, वह दौड़ पड़ता है। यह तो थी रील कथा। अब रीयल जिंदगी की कथा में नायक की भूमिका में हैं बहादुरगढ़ के जसौर खेड़ी गांव की नरेश देशवाल। जनजागृति अभियान नाम से बने एनजीओ की अध्यक्ष के रूप में नरेश बिग सिस्टर बनकर इसी तरह हिंसा से पीडि़त महिलाओं की मदद और न्याय के लिए लड़ती हैं। कई राज्यों में जहां से उन्हें मदद के लिए कोई महिला पुकारे तो वे दौड़ पड़ती हैं। 10 साल से चल रहे इस मिशन में वे अब तक अनगिनत महिलाओं का हक दिलाने के लिए पैरोकार बनी हैं।
टूटे रिश्तों को जोड़ फिर बसाए घर
नरेश देशवाल की ससुराल बहादुरगढ़ के गांव जसौर खेड़ी में है और मायका सोनीपत के गांव गढ़ी में। फिलहाल उनका परिवार दिल्ली के प्रीतमपुरा में रहता है। मगर दिल्ली हो, हरियाणा या फिर कोई और राज्य, जहां पर किसी महिला को उनकी मदद की जरूरत है तो वे बिना देर किए पहुंच जाती हैं। किसी विवाहिता को दहेज के लिए तंग करने का मामला हो, घरेलू हिंसा या फिर कोई और महिला विरुद्ध अपराध, पीडि़त और शोषित की मदद से वे पीछे नहीं हटतीं। ऐसा नहीं है कि वे सिर्फ पीडि़ताओं के न्याय के लिए लड़तीं हैं। अनेक मामलों में उन्होंने रिश्तों को टूटने से भी बचाया है। छोटी-छोटी बातों पर होने वाले बड़े मामलों को सुलझाया है और ऐसे परिवारों को फिर से बसाया है। बचपन में वे कबड्डी खिलाड़ी रही हैं और अब नारी सशक्तिकरण की अगुवा हैं।
कई मामलों में पेश की नजीर
नरेश देशवाल ने कई मामलों को सुलझाने में पुलिस की मदद की है। वे लीगल सेल में वालंटियर के रूप में काम करतीं हैं। पिछले दिनों दिल्ली से अगवा एक लड़की को पुलिस नहीं ढूंढ पाई, मगर परिवार की मदद से उन्होंने आरोपित को काबू करवाया। ऐसे अनेक मामले हैं, जिनमें वे नारी विरुद्ध अपराध में पीडि़त और परिवार के लिए मददगार बनी हैं। बकौल नरेश देवी, घरेलू तकरार के सभी मामलों में ससुराल पक्ष के लोग गलत नहीं होते। कई बार खुद महिला भी गलत होती है। ऐसे मामलों में उनकी काउंसिलिंग की जाती है।
हर मामला कानूनी नजर से नहीं देखा जाता। उसमें सामाजिक पहलू भी देखना होता है। बहुत से मामले ऐसे होते हैं जिनमें कारण मामूली होता है लेकिन तकरार बड़ी हो जाती है। ऐसे मामलों में संगठन दोनों पक्षों से बातचीत करके यही कोशिश करता है कि परिवार में तकरार खत्म हो जाए, लेकिन जिन मामलों में सच में अन्याय होता है, वहां न्याय के लिए लडऩा पड़ता है।