ऐसी डॉक्टर जिन्होंने संसाधनों के अभाव में भी बुझने से बचाए 150 घरों के चिराग
World Childhood Cancer Day पीजीआइ के पीडियाट्रिक विभाग में बच्चों के कैंसर का किया जा रहा है सफल इलाज। सुविधाओं के बिना अपने बल पर कैंसर ग्रस्त मरीजों का उपचार कर रहीं हैं डा. अलका
रोहतक, जेएनएन। बच्चों में कैंसर के उपचार के लिए प्रदेश के किसी भी सरकारी संस्थान में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। पीजीआइएमएस के पीडियाट्रिक विभाग की चिकित्सक डा. अलका यादव ने पीडि़त बच्चों के अभिभावकों की इस परेशानी को समझा और पिछले 10 वर्षों से संसाधनों के अभाव में भी कैंसर ग्रस्त बच्चों का उपचार कर रही हैं। न्होंने अभी तक 150 परिवारों के चिराग को बुझने से बचाया है। शुक्रवार को चाइल्डहुड कैंसर दिवस पर होने वाले कार्यक्रम में उन्होंने इन कैंसर सरवाइवर सभी बच्चों और उनके परिजनों को भी आमंत्रित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि 15 फरवरी को विश्व चाइल्डहुड कैंसर दिवस मनाया जाता है। 14 वर्ष से कम आयु के कैंसर ग्रस्त बच्चों को इस श्रेणी में रखा जाता है। प्रदेश के किसी भी सरकारी अस्पताल व मेडिकल कालेज में बच्चों के कैंसर के लिए अलग से कोई विभाग नहीं हैं। डा. अलका के अलावा कोई विशेषज्ञ चिकित्सक संस्थान में नहीं है। साथ ही प्रशिक्षित स्टाफ का भी अभाव है। इसके अलावा कई महत्वपूर्ण साइटोजेनेटिक्स, पैट सीटी स्कैन, व बोन स्कैन समेत अन्य प्रकार की जांच भी संस्थान में नहीं होने के कारण मजबूरन निजी लैब का रुख करना पड़ता है।
पीडियाट्रिक विभाग की यूनिट दो में संचालित पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजी ऑनकोलॉजी क्लीनिक में तैनात डा. अलका यादव ने पीजीआइ चंडीगढ़ से इंटर्नशिप करने के बाद संस्थान में ज्वाइन किया। उन्होंने कैंसर ग्रस्त बच्चों के उपचार के लिए कदम बढ़ाया। डा. अलका यादव के अनुसार वर्ष 2012 से अभी तक संस्थान में प्रतिवर्ष औसतन 50 कैंसर ग्रस्त बच्चे उपचार के लिए पहुंचते हैं। कैन किड्स नामक समाजसेवी संस्था के सहयोग से उपचार शुरू करने के बाद से अभी तक 150 से अधिक बच्चों की ङ्क्षजदगी बचाई जा चुकी है।
60 फीसद बच्चों को ब्लड कैंसर
अभी तक संस्थान में पहुंचे कैंसर ग्रस्त बच्चों में 60 फीसद ब्लड कैंसर (ल्यूकीमिया) व ङ्क्षलफोमा (गांठों का कैंसर), 30 फीसद पेट, गुर्दे (न्यूटो प्लास्टोमा) का कैंसर और शेष को गर्दन, हड्डियों का कैंसर (आस्थियो सारकोमा) व आंखों का कैंसर (रैटिनो प्लास्टोमा) पाया गया है। शुरुआत में ही इसकी जानकारी होने के चलते इन बच्चों को सकुशल बचाया जा सका है। दस वर्ष से कम आयु के सबसे अधिक बच्चों को ब्लड कैंसर, 10 से 15 आयु वर्ग के बच्चों को गांठों का कैंसर व एक से तीन वर्ष के बच्चों को पेट का कैंसर पाया गया है।