गुरु ने शिष्य को हताशा से उबार स्वर्णिम सफलता तक पहुंचाया
कहते हैं एक मां अपने बच्चे के लिए किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है। ठीक उसी प्रकार गुरु अपने शिष्य के लिए सब कुछ करने को प्रतिबद्ध होता है मगर उसका त्याग हमेशा पर्दे के पीछे रहता है।
अनिल भारद्वाज, गुरुग्राम
कहते हैं एक मां अपने बच्चे के लिए किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है। ठीक उसी प्रकार गुरु अपने शिष्य के लिए सब कुछ करने को प्रतिबद्ध होता है, मगर उसका त्याग हमेशा पर्दे के पीछे रहता है। गुरु की सदैव आकांक्षा यह रहती है कि शिष्य अपने क्षेत्र में ऊंचाई को छुए। टोक्यो ओलिपिक में पदक के प्रबल दावेदार के रूप में जिसकी गिनती होती थी जब खाली हाथ वहां से लौटना पड़ा हो, तो मानसिक रूप से उसके लिए बड़ा झटका था। हताशा और निराशा के चंगुल से बाहर निकल कर उसी खिलाड़ी ने राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का नाम रोशन किया है। हम बात कर रहे हैं बर्मिंघम में 51 किग्रा वर्ग स्पर्धा में स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज अमित पंघाल की। उनके प्रशिक्षक अनिल धनखड़ के सामने बर्मिंघम के लिए अमित को फिर से तैयार करने की चुनौती थी। उन्होंने अपने शिष्य को हताशा से उबार स्वर्णिम सफलता तक पहुंचाया है।
धनखड़ बताते है कि अमित पहले जकार्ता 2018 एशियाड खेलों में स्वर्ण और 2019 विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने में कामयाब रहे थे। टोक्यो में पंघाल फाइनल खेलने के दावेदार थे। फाइनल से पहले उनके मुकाबले का कोई प्रतिद्वंद्वी मुक्केबाज नहीं दिख रहा था लेकिन वह पदक नहीं जीत पाए। यही टीस अमित को थी।
धनखड़ बताते हैं कि रिग के चैंपियन को दोबारा चैंपियन बनाना ही लक्ष्य था लेकिन इस बार मुश्किल भरा था, क्योंकि राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय मुक्केबाजों के लिए कड़े मुकाबले होते हैं। उन्होंने अमित के साथ रिग में उसी स्तर पर मेहनत की शुरुआत की, जो वर्ष 2011 में शुरू की थी।
धनखड़ ने बताया कि बर्मिंघम में अमित के सामने फाइनल मुकाबले में इंग्लैंड का वह मुक्केबाज था, जिसने टोक्यो ओलिपिक में स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज को इंग्लैंड में हुए ट्रायल में हराया था। इंग्लैंड के मुक्केबाज से कड़ी टक्कर मिलना माना जा रहा था लेकिन अमित ने उसे किसी राउंड में अंक हासिल नहीं करने दिया और 5-0 से स्वर्ण पदक हासिल किया। धनखड़ का कहना है कि अब अगले एशियाड और ओलिपिक का लक्ष्य है।