तर्पण के लिए : अतिथि सेवा पिता जी से सीखी
मेरे पिताजी की कमी तो कभी पूरी नही हो सकती है मगर उनके उच्च आदर्श प्रेम भावना तथा अतिथि सेवा हमारे लिए हमेशा प्रेरणादायक है।
मेरे पिताजी की कमी तो कभी पूरी नही हो सकती है, मगर उनके उच्च आदर्श, प्रेम भावना तथा अतिथि सेवा हमारे लिए हमेशा प्रेरणादायक है। पिताजी किसी भी मेहमान के आने पर काफी खुश होते थे। दो-तीन दिनों तक अपने घर पर ही रोकते थे। वे अतिथि की खुद सेवा करते और हमसे भी करवाते थे। केवल मेहमान ही नहीं, बल्कि कपड़ा, बर्तन विक्रेता या पथिक शरणार्थी की भी बिना भेदभाव सेवा करते थे। पिताजी का मानव सेवा ही एकमात्र धर्म था। हम तीन भाई हैं। मैं सबसे छोटा हूं। आज भी हम पिताजी के दिए संस्कार का पालन करते हुए अतिथि सेवा में लगे रहते हैं।
पंडित सुरेंद्र शास्त्री
फोटो 12 जीयूआर 6
चित्र परिचय : अमित जिदल, सराफा कारोबारी
ए- स्व : ईश्वर जिदल (फाइल फोटो) पिताजी की सीख पर कर रहे अमल
हमारे पिताजी ईश्वर जिदल जी आज प्रभु के चरणों में हमें छोड़ कर जा चुके हैं। आज हम उनके द्वारा दी हुई शिक्षा से ही अपने काम-धंधे में आगे बढ़ते हुए समाज के लिए भी काम कर रहे हैं। पिताजी ने गुरुग्राम की कई बड़ी संस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए थे। उन्होंने अपने व्यक्तित्व से समाज में अपनी अलग पहचान बनाई। उनके द्वारा दिखाए रास्ते पर पूरा परिवार चल रहा है। कभी कोई ऐसा कार्य नहीं करना है, जिससे परिवार की छवि धूमिल हो।
- अमित जिदल
पिता ने मीठे बोल बोलने की दी सीख
फोटो 12 जीयूआर 7
चित्र परिचय : ओमप्रकाश ठाकरान
ए- स्व: मान सिंह ठाकरन मेरे पिता मान सिंह ठाकरान आज मेरे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बताई बातें आज भी हमारे व परिवार के लिए संबल बनी हैं। वे हमेशा यही कहते थे कि हमेशा सच्चाई का साथ दो। सच के साथ परेशानी तो आती है, लेकिन वह क्षणिक होती है। उन्होंने यह भी सिखाया कि गलत का विरोध करो। चुप मत रहो। यही वजह है कि समाज में जो भी ग़लत देखता और सुनता हूं, मैं विरोध में तुरंत आवाज बुलंद करता हूं। ऐसा करते वक्त लगता है कि पिताजी साथ खड़े हैं।
ओमप्रकाश ठाकरान, जिला अध्यक्ष, वर्ल्ड जाट आर्यन फाउंडेशन, गुरुग्राम