शौर्य गाथा-71 : सेना में भर्ती होने के बाद पहले ही दिन युद्ध के मोर्चे पर जाना रहा खास अनुभूति
देश सेवा का जज्बा लिए हर सैनिक मां भारती की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की बाजी लगाने की शपथ लेकर सेना में भर्ती होता है, सेना में भर्ती होने के पहले ही दिन अगर किसी सैनिक को मां भारती की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में भेज दिया जाए। उससे बढ़कर किसी सैनिक के लिए कोई उपलब्धि नहीं हो सकती। वर्ष 1971 में भारत पाकिस्तान के युद्ध में ऐसा ही मौका मिला कमीशन पाकर सेना में सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में भर्त्ती हुए जीडी बक्शी को। इस युद्ध में जीडी बक्शी के बैचमेट अरुण क्षेत्रपाल पाकिस्तान सेना के टैंकों को ध्वस्त करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनके कई साथियों ने इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देकर मां भारती की रक्षा की।
महावीर यादव, बादशाहपुर (गुरुग्राम)
देश सेवा का जज्बा लिए हर सैनिक मां भारती की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की बाजी लगाने की शपथ लेकर सेना में भर्ती होता है, सेना में भर्ती होने के पहले ही दिन अगर किसी सैनिक को मां भारती की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में भेज दिया जाए। उससे बढ़कर किसी सैनिक के लिए कोई उपलब्धि नहीं हो सकती। वर्ष 1971 में भारत पाकिस्तान के युद्ध में ऐसा ही मौका मिला कमीशन पाकर सेना में सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में भर्ती हुए जीडी बक्शी को। इस युद्ध में जीडी बक्शी के बैचमेट अरुण क्षेत्रपाल पाकिस्तान सेना के टैंकों को ध्वस्त करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनके कई साथियों ने इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देकर मां भारती की रक्षा की। पाकिस्तान के 93000 पाक सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मात्र 14 दिन में ही मजबूर कर दिया। बड़े भाई ने दी शहादत तो छोटे भाई ने भी लिया देश सेवा का संकल्प
गुरुग्राम के शीशपाल विहार में रहने वाले जीडी बख्शी बाद में मेजर जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए। 1965 के भारत-पाक युद्ध में जीडी बख्शी के बड़े भाई कैप्टन एसआर बख्शी शहीद हो गए थे। भाई की शहादत के बाद जीडी बक्शी ने एनडीए की परीक्षा पास की और सेना में कमीशन प्राप्त अधिकारी भर्ती हुए। जीडी बख्शी बताते हैं की 1971 में उनका बैच दिसंबर माह में पास आउट होना था। लेकिन देश पर खतरा देख उनके बैच को नवंबर माह में ही एक माह पहले पास आउट कर दिया। पासिंग आउट परेड के तुरंत बाद उनको 10 दिन के लिए अपने घर परिजनों से मिलने के लिए भेजा गया। उसके तुरंत बाद उनको युद्ध के लिए भेज दिया गया। सेना ज्वॉइन करते ही उन्हें युद्ध का मोर्चा संभालना पड़ा। यह उनके लिए विशेष अनुभूति वाला क्षण था। जब पहली बार भारत बांग्लादेश की सीमा पर पहुंचे
रात को बेहद डरावना माहौल होता था। उनके साथ उनके कई बैचमेट थे। कई नदियां व नाले पार करके बांग्लादेश की सीमा में सेना के साथ काफी दूर तक उन्होंने पैदल ही सफर तय किया। उधर से पाकिस्तानी टैंक गोले बरसाते थे। इधर से भारतीय सेना भी पूरी तरह से मुकाबले को तैयार खड़ी रहती थी। उनके एक बैचमेट अरुण क्षेत्रपाल ने पाकिस्तान के तीन टैंकों को धराशायी कर दिया। मात्र 21 वर्ष की आयु में अरुण क्षेत्रपाल उस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। उनको सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र से नवाजा गया था। नियाजी के अहंकार को किया चूर-चूर
1971 के युद्ध का संस्मरण सुनाते हुए मेजर जनरल (रिटायर) जीडी बक्शी ने बताया 1971 का युद्ध सैन्य इतिहास की सबसे शानदार विजय थी। इसके साथ ही यह दक्षिणी एशिया का सबसे बड़ा नरसंहार भी था। पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी के अहंकार को भारतीय सेना ने नेस्तनाबूद कर दिया। जनरल नियाजी कहता था की एक-एक पाकिस्तानी सैनिक एक-एक हजार भारतीय सैनिकों के बराबर है। मगर मात्र 14 दिन में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस व पराक्रम का परिचय देकर पाकिस्तान की फौज को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया।
दुश्मन की राजधानी को ध्वस्त कर देना किसी भी सेना के लिए सबसे बड़ी जीत होती है। भारतीय सेना ने भी 1971 के युद्ध में ऐसी ही विजय हासिल की। युद्ध की सबसे बड़ी खासियत यह भी रही कि सैन्य अधिकारियों व राजनेताओं में उत्तम दर्जे का तालमेल दिखा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व सेना प्रमुख सैम मानेकशॉ (सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ) के बेहतर तालमेल का नतीजा था कि भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया था।