स्वच्छता में अभी कई पायदान नीचे है शहर
स्वच्छ सर्वेक्षण में महज तीन सप्ताह शेष हैं। 4 जनवरी के बाद स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए केंद्र की टीम शहर में पहुंचेगी। अधूरे इंतजामों के चलते बेहतर स्वच्छता रैकिग की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
संदीप रतन, गुरुग्राम
स्वच्छ सर्वेक्षण में महज तीन सप्ताह शेष हैं। 4 जनवरी के बाद स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए केंद्र की टीम शहर में पहुंचेगी। अधूरे इंतजामों के चलते बेहतर स्वच्छता रैंकिग की उम्मीद नहीं की जा सकती है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 में कई बदलाव किए जा चुके हैं और इस बार देशभर के सभी शहरों को इसमें शामिल किया गया है। बता दें कि स्वच्छ सर्वेक्षण 2016 में 73 शहरों को रैंकिग दी गई थी, जिसमें मैसूर ने बाजी मारी थी।
इसके बाद 2017 में 434 शहरों की स्वच्छता दौड़ में इंदौर शहर नंबर वन रहा, जोकि पिछले तीन सालों से सबसे स्वच्छ शहर चुना जा रहा है। 2018 में 4203 शहरों और 2019 में 4237 शहरों के बीच स्वच्छता का महामुकाबला हुआ था। तिमाही सर्वेक्षण पहली बार शुरू हुआ है। इसमें पूरे साल अप्रैल-जून, जुलाई-सितंबर और अक्टूबर से दिसंबर तक तिमाही सर्वेक्षण किया गया है।
- 6000 अंक तय करेंगे रैंकिग
2019 में स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए 5000 अंक तय किए गए थे। इस बार 6000 अंक स्वच्छता रैंकिग के लिए निर्धारित किए गए हैं। इसमें से नागरिकों से लिए जाने वाले फीडबैक, सर्विस लेवल प्रोग्रेस, सर्टिफिकेशन और डायरेक्ट ऑब्जर्वेशन यानी टीम द्वारा शहर का दौरा करने सहित प्रत्येक भाग 1500 अंक का होगा।
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इस तरह प्रभावित होगी रैंकिग
- सर्टिफिकेशन में दो पार्ट में मिलेंगे अंक:1000 अंक गारबेज फ्री सिटी के हैं और 500 अंक ओडीएफ यानि खुल में शौच से मुक्त करना है। शहर में झुग्गी-झोपड़ियों के इलाकों में शौचालय नहीं होने से समस्या बरकरार है।
कलेक्शन और ट्रांसपोर्टेशन: इको ग्रीन एनर्जी 50 फीसद घरों से भी डोर टू डोर कचरा कलेक्शन नहीं कर सकी है। कूड़ा नहीं उठने के कारण रिहायशी इलाकों में इधर-उधर कूड़ा फेंका जा रहा है।
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट: बंधवाड़ी में 30 लाख टन से भी ज्यादा कूड़ा का ढेर लग चुका है। प्लांट का निर्माण भी शुरू नहीं हो सका है। यहां पर इको ग्रीन कंपनी द्वारा प्लांट लगाकर कूड़े से बिजली बनाई जानी है।
सेग्रीगेशन: घरों से सूखा व गीला कूड़ा अलग-अलग नहीं किया जा रहा है। मिश्रित कूड़ा लैंडफिल साइट पर पहुंच रहा है।
बल्क वेस्ट जनरेटर: 2000 से ज्यादा बल्क वेस्टर जनरेटर हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर ने कंपोस्टिग यूनिट नहीं लगाई है। डस्टबीन: शहर में फुटपाथों के किनारे, मार्केट आदि में कहीं पर भी डस्टबीन नहीं लगे हुए हैं। नतीजन ग्रीन बेल्ट और सड़कों के किनारे कूड़ा फेंका जा रहा है। डंपिग प्वाइंट्स: डंपिग प्वाइंट्स को कवर नहीं किया गया है। इको ग्रीन द्वारा इन प्वाइंट से नियमित रूप से कूड़ा नहीं उठाया जा रहा है। सेनिटेशन: एजेंसी और निगम के लगभग पांच हजार से ज्यादा सफाईकर्मी होने के बावजूद शहर के इलाकों में गंदगी फैली रहती है।