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सिख विरोधी दंगा: दशकों के जख्म पर मरहम की तरह है यह फैसला

सिख विरोधी दंगा : दशकों के जख्म पर मरहम की तरह है यह फैसला

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 09:15 PM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 09:25 PM (IST)
सिख विरोधी दंगा: दशकों के जख्म पर मरहम की तरह है यह फैसला
सिख विरोधी दंगा: दशकों के जख्म पर मरहम की तरह है यह फैसला

हंस राज, गुरुग्राम

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साल 1984 में सिख विरोधी दंगा मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार समेत चार दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। उस वर्ष 1 नवंबर से लेकर 4 नवंबर तक पूरी दिल्ली में 2,733 सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। सिख विरोधी उस दंगे की चपेट में राजधानी दिल्ली के साथ-साथ साइबर सिटी भी आई थी।

शहर के विभिन्न सेक्टरों में रहने वाले सिखों पर बेरहमी से हमला किया गया था और 24 से ज्यादा सिखों को जिंदा जला दिया गया था। आवासीय संपत्तियों के नुकसान के भी 96 मामले दर्ज किए गए थे। दंगाइयों ने निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया, उनके घरों को लूट लिया और उनकी संपत्ति को आग के हवाले कर दिया। अधिकतर दंगा पीड़ित सिख परिवार 1947 के बंटवारे में पाकिस्तान से आने वालों में से थे। 34 साल बाद साजिश रचने, दंगा फैलाने और आगजनी की धाराओं में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार समेत चार दोषियों को उम्र कैद की सजा व अन्य दो दोषियों की सजा को तीन साल से 10-10 साल करने के फैसले पर शहर के दंगा पीड़ितों ने बयां किया अपना दर्द। दंगा भड़काने और साजिश रचने के आरोपी सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा हमारे दशकों के जख्म पर मरहम की तरह है। यह हमारी बदनसीबी है कि हमारी आंखों ने वह भयावह नरसंहार देखा। मेरी आंखों के सामने मेरे रिश्तेदार हॉकी खिलाड़ी सेवा ¨सह जी को जैकबपुरा में टायरों से बांध कर जिंदा जला दिया गया था। यही नहीं हमारे घरों को भी जला दिया गया और कारोबार को तहस-नहस कर दिया गया था। 1 नवंबर से 4 नवंबर तक सिखों की जिस तरह बेरहमी से हत्या की जा रही थी हमें डर था कि अगला नंबर हमारा न हो। स्वतंत्र भारत में सांप्रदायिक ¨हसा के सबसे बुरे उदाहरणों में से एक के पीड़ितों को न्याय मिला है।

- परमजीत ¨सह ओबरॉय, पीड़ित

उस घटना में फाइलों में जितने नाम दर्ज है उससे दोगुना लोगों ने जान गंवाई थी। मेरे पिताजी जौत ¨सह साहनी भी दंगाइयों के चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठे थे। सिखों के घर पुलिस वालों की मौजूदगी में जलाए जा रहे थे और शहर का माहौल बहुत खराब हो गया था। हमारे कारोबार को भी लाखों का नुकसान हुआ जिससे आज तक नहीं उभर पाए हैं। हालांकि वर्षो बाद नाम मात्र का मुआवजा मिला, लेकिन कुछ जख्म की भरपाई मुआवजे से नहीं दंगाईयों को सजा देकर की जाती है। फैसला स्वागत योग्य है।

- संतोख ¨सह साहनी, पीड़ित

मैं उस वक्त 15 साल का था। वह खौफनाक मंजर आज भी याद आता है तो रूह कांप उठती है। मेरे कई परिजन और मित्र उस दंगे में प्रभावित हुए और आज तक उबर नहीं पाए हैं। फैसला भले ही तीन दशक बाद आया हो, लेकिन हम इसका स्वागत करते है। उस दंगे ने सिख कोम ही नहीं पूरे राष्ट्र को झकझोर दिया था। हालांकि सुनने में आ रहा है कि सलमान खुर्शीद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सज्जन कुमार के पक्ष में दलील देंगे। अगर ऐसा है तो ये बड़े शर्म की बात है।

- अमरजीत ¨सह, निवासी, न्यू कॉलोनी, गुरुग्राम

बॉक्स :

दो साल पहले दंगा पीड़ित परिवारों को बांटा गया था मुआवजा

अगस्त 2016 में 1984 में सिख विरोधी दंगा पीड़ित परिवारों को मुआवजा बांटा गया। हरियाणा सरकार ने जस्टिस टीपी गर्ग आयोग की सिफारिशों के आधार पर गुरुग्राम तथा पटौदी के दंगा पीड़ितों के लिए 12.07 करोड़ रुपए मुआवजे को स्वीकृति दी थी, जिसमें से 42 पीड़ित परिवारों को मुआवजा राशि के चेक दिए गए थे। चेकों का वितरण राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष नसीम अहमद ने किया था। दंगा में जान गंवाने वाले सेवा ¨सह, सत्तिनंद ¨सह, बलवंत ¨सह, पारल ¨सह, पाल ¨सह, प्रेम ¨सह, दयाल, सुदेश कौर, चुतार ¨सह साहनी, सरदार जाग ¨सह, हरदयाल कौर, गुरमीत कौर, गुरबचन ¨सह, जसबंत ¨सह व मंजीत कौर के परिजनों को मुआवजा राशि दी गई थी।


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