राम-लक्ष्मण वन गए, भरत-शत्रुघ्न फूट-फूटकर रोए
राजा दशरथ की मौत का समाचार सुनकर भरत और शत्रुघ्न ननिहाल से अयोध्या नगरी पहुंचते हैं। अयोध्या आकर दोनों भाई पहले मां कैकेयी के पास जाते हैं।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: राजा दशरथ की मौत का समाचार सुनकर भरत और शत्रुघ्न ननिहाल से अयोध्या नगरी पहुंचते हैं। अयोध्या आकर दोनों भाई पहले मां कैकेयी के पास जाते हैं। उनसे वे अपने भैया राम, लक्ष्मण व सीता के बारे में पूछते हैं। मां कैकेयी उन्हें सब कुछ बताने समझाने का प्रयास करती हैं। इस तरह से सातवें दिन की रामलीला का मंचन शुरू होता है।
जैकबपुरा स्थित श्री दुर्गा रामलीला मंचन में अयोध्या पहुंचे भरत के बार-बार पूछने पर मां कैकेयी ने बताया कि उन्होंने राजा दशरथ से भरत के लिए राज और राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांगा है तो भरत आग-बबूला हो उठते हैं। साथ ही पिता की मौत का दुख प्रकट करते हुए कहते हैं
''छोड़कर हमको किसके सहारे, हे पिता जी किधर को सिधारे,
ये अकेले किधर की तैयारी, हाय फूटी है किस्मत हमारी''
इसी बीच कैकेयी भरत को समझाते हुए कहती हैं कि अब तुम अयोध्या का राज संभालो। भरत इसके लिए तैयार नहीं हुए और माता कौशल्या से मुलाकात करते हैं। कौशल्या उन्हें आराम से अयोध्या का राज करने को कहती हैं। इसके जवाब में भरत कहते हैं कि माता ऐसा नहीं हो सकता कि बड़े भाई के रहते छोटा भाई राज करे। इसके बाद भरत वन से राम जी को वापस लाने के लिए निकल पड़ते हैं। वन में जब राम-लक्ष्मण और सीता से उनकी मुलाकात होती है तो बहुत ही भावुक करने वाले क्षण होते हैं। भरत मिलाप की लीला का दर्शकों में बहुत ही उत्साह होता है। भावुकता भरे क्षणों में राम और भरत की वार्ता होती है। जब राम वापस अयोध्या जाने को राजी नहीं होते तो वे श्रीराम से उनकी चरण पादुकाएं लेते हैं और उन्हें अपने सिर पर रखकर आंखों में अश्रु धारा लिए अयोध्या की ओर रवाना हो जाते हैं। इसी दौरान गीत बजता है कि
राम भक्त ले चला राम की निशानी, अब इनकी छांव में रहेगी राजधानी..