वुमन बाइक राइ¨डग में नए कीर्तिमान बना रही हैं प्रीति
सेक्टर-57 निवासी प्रीति सारस्वत ने वुमन बाइक राइडर्स के लिए मिसाल कायम की है। सुपर बाइक राइ¨डग द्वारा उन्होंने सिर्फ बारह घंटे में हिमाचल प्रदेश के जोत से दिल्ली की दूरी तय की है। सेक्टर-57 निवासी प्रीति सारस्वत ने वुमन बाइक राइडर्स के लिए मिसाल कायम
हंस राज, नया गुरुग्राम
सेक्टर-57 निवासी प्रीति सारस्वत ने वुमन बाइक राइडर्स के लिए मिसाल कायम की है। सुपर बाइक राइ¨डग द्वारा उन्होंने सिर्फ बारह घंटे में हिमाचल प्रदेश के जोत से दिल्ली की दूरी तय की है। करीब सात सौ किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान उन्होंने 250 किलोमीटर का सफर ऑफ रोड ड्राइ¨वग में तय किया।
'इंटरनेशनल फीमेल राइड डे-2017', ऑफ रोड ड्राइ¨वग, ट्रेल व ट्रैक ड्राइ¨वग समेत दर्जनों बाइक रेस में हिस्सा ले चुकीं आठ वर्षीय बेटी की मां प्रीति मंगलवार को सुपर बाइक राइ¨डग पूरी करके शहर लौटी हैं।
हर घड़ी मिली एक नई चुनौती
अपने अनुभव को लेकर प्रीति कहती हैं कि सुपर बाइक राइ¨डग का सफर आसान नहीं रहा। एक तो प्रचंड गर्मी और ऊपर से 900 सीसी की बाइक चलाते हुए पहाड़ों से गुजरना, ऐसा लग रहा था मानो आग के गोलों के बीच से गुजर रही हूं। यही नहीं ऑफ रोड ड्राइ¨वग के दौरान पहाड़ के ऊपरी हिस्सों से सरककर नीचे आते पत्थरों से बचना, हर पल ¨जदगी और मौत से संघर्ष का एहसास करवा रही थी। उन्होंने कहा कि भले ही बाजार में बाइक राइडर्स की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अत्याधुनिक जैकेट्स और हेलमेट्स उपलब्ध हैं लेकिन आज भी सुपर बाइक राइडर्स के लिए जो सबसे जरूरी किट है, वो उनका हौसला और आत्मविश्वास है।
सिर्फ शौक नहीं नशा है बाइक राइ¨डग
34 वर्षीय प्रीति कहती हैं कि उनके लिए बाइक राइ¨डग सिर्फ शौक नहीं, बल्कि एक नशा है। वो प्रत्येक महीना कम से कम 4,000 किलोमीटर का सफर तय करती हैं और अब तक चंडीगढ़, चैल (सोलन, हिमाचल प्रदेश), जिम कॉर्बेट (नैनीताल, उत्तराखंड) समेत कई शहरों की बाइक राइ¨डग प्रतियोगिताओं में अपना लोहा मनवा चुकी हैं।
प्रीति दिल्ली की संस्था 'बाइकर्स फॉर गुड' के साथ मिलकर जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए दिल्ली-एनसीआर में कॉज राइ¨डग भी करती हैं।
सफलता के पीछे है संघर्ष और सहयोग की कहानी
बाइक राइ¨डग के क्षेत्र में करियर तलाशने के लिए एचआर की नौकरी छोड़ चुकीं प्रीति ने बताया कि शुरू से ही घर और कॉलेज में उनकी छवि टॉम ब्वॉय की थी। स्कूल और कॉलेज में दूसरों को बाइक चलाते देखती थीं तो उन्हें ड्राइ¨वग का मन करता था। सुरक्षा को देखते हुए घरवाले बाइक राइ¨डग के पक्ष में नहीं थे। घरवालों से ज्यादा सपोर्ट नहीं मिलने के कारण साल 2003 में दोस्तों से बाइक मांगकर चलाना सीखा। वो बताती हैं कि साल 2008 में 24 साल की उम्र में शादी हो गई। एक साल बाद ही मां बनीं और नौकरी से ब्रेक लेना पड़ा। ये सब इतने कम समय में हुआ कि लगा बाइक चलाने का उनका सपना खत्म हो गया। लेकिन साल 2016 में जब बेटी 6 साल की हुई तो पति के सहयोग और सालभर की प्रशिक्षण के बाद ट्रैक पर वापस लौट आईं।