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औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से संबंधित प्रक्रिया का सरलीकरण जरूरी

वन विभाग एवं तहसील कार्यालय द्वारा चैंज ऑफ लैंड यूज (सीएलयू) की अनुमति मिलने के बाद औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से पहले उद्यमियों को कन्सेन्ट टू स्टेबलिशमेन्ट (स्थापना से संबंधित सहमति) लेनी पड़ती है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Jul 2020 07:38 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 07:38 PM (IST)
औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से संबंधित प्रक्रिया का सरलीकरण जरूरी
औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से संबंधित प्रक्रिया का सरलीकरण जरूरी

जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: वन विभाग एवं तहसील कार्यालय द्वारा चेंज ऑफ लैंड यूज (सीएलयू) की अनुमति मिलने के बाद औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से पहले उद्यमियों को कंसेंट टू इस्टेबलिशमेंट (स्थापना से संबंधित सहमति) लेनी पड़ती है। इससे संबंधित फाइल सबसे पहले उपायुक्त कार्यालय में जाती है। जहां से इसे सीएलयू की स्थिति की रिपोर्ट प्राप्त करने को लेकर जिला वन अधिकारी एवं तहसीलदार को भेजा जाता है। इस फाइल का सफर यहीं खत्म नहीं होता, अब इसे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय तक जाना होता है। इस पूरी प्रक्रिया में उद्यमियों का काफी समय जाया होता है। अब इस मामले को गुड़गांव इंडस्ट्रियल एसोसिएशन (जीआइए) द्वारा प्रदेश सरकार के समक्ष उठाया गया है। जीआइए ने बुधवार को मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नाम पत्र लिखा है। जिसमें मांग की है कि औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से संबंधित इस प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाए।

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हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा औद्योगिक इकाइयों को उनकी प्रकृति के हिसाब से रेड, ऑरेंज एवं ग्रीन श्रेणी में रखा जाता है। ऐसी स्थिति में नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के संबंध में उद्यमियों को कंसेंट टू इस्टेबलिशमेंट के लिए आवेदन करना होता है। इसके लिए आवेदन की प्रक्रिया ऑनलाइन है। ऑनलाइन की यह प्रक्रिया भी काफी जटिल है। जीआइए अध्यक्ष जेएन मंगला का कहना है कि मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में मांग की गई है कि प्रदेश सरकार नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से संबंधित नियमों को आसान बनाए।

जीआइए अध्यक्ष ने कहा कि प्रदेश सरकार से यह भी मांग की गई है कि वह उद्योगों से संबंधित कार्यों की मंजूरी अधिकतम 30 दिन के भीतर दी जाए। जीआइए की ओर से प्रदेश सरकार को सुझाव दिया गया है कि सीएलयू की स्थिति की जानकारी के लिए कंसेंट टू इस्टेबलिशमेंट की अनिवार्यता को समाप्त किया जाए। ऐसा हुआ तो कारोबारी सहूलियत को बढ़ावा मिलेगा और औद्योगिक विकास एवं विस्तार को बल मिलेगा।


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