लाइफस्टाइल: फ्लैशबैक में पहुंची जिंदगी, अपनी जड़ों से जुड़ती पीढ़ी
बचपन के उन दिनों की याद दिलाते हैं जब रविवार को सुबह टीवी पर रामायण महाभारत देखने की उत्सुकता में सारे काम निपटाने की जल्दी रहती थी।
गुरुग्राम [प्रियंका दुबे मेहता]। देश लॉकडाउन की अवस्था में जिंदगी फ्लैशबैक की तरफ बढ़ती नजर आ रही है। शाम को सड़कों पर लोगों का हुजूम, मीलों लंबे कारवां, हाथों में गट्ठर, मन में घर पहुंच न पाने की आशंका। निकल पड़े हैं लंबी दूरियों को तय करने। डर तो है लेकिन हौसले भी कायम हैं। नजारा बीती सदी से सातवें दशक की फिल्मों की याद दिलाता है जहां खानाबदोशों के काफिले एक जगह से दूसरी जगह जाते नजर आता थे। घरों में भी स्थिति कुछ इतर नहीं है।
बचपन के उन दिनों की याद दिलाते हैं जब रविवार को सुबह टीवी पर रामायण, महाभारत देखने की उत्सुकता में सारे काम निपटाने की जल्दी रहती थी। उन गर्मी की छुट्टियों की यादें भी ताजा हो उठती हैं जब दिन भर कोई काम नहीं, पढ़ाई का आज के दौर वाला दबाव नहीं, दिन में पुरुष बागवानी और महिलाएं कशीदाकारी की कमान संभालती थीं। बच्चे घर में इधर से उधर दौड़ते, कभी कैरम तो कभी शतरंग की बिसात बिछाते थे।
घरों में मिलते फ्लैशबैक के नजारे
वर्क फ्रॉम होम या हो स्टडी फ्रॉम होम। एक तरह की आजादी तो है ही, बीच-बीच में कहीं ताश की बाजियां लग रही हैं तो कहीं बच्चे कैरम की गीटियां साधते नजर आ रहे हैं। कई दिनों से फोन से उकताए लोग कार्डबोर्ड गेम्स की ओर बढ़े हैं। लूडो, सांप-साढ़ी, बिजनेस और अन्य कार्डबोर्ड गेम्स को स्टोर में से निकालकर धूल झाड़ी जा रही है। ब्रांडेड रेडीमेड्स के दौर की युवतियों के हाथों में सुई-धागा तो कभी साहित्य के क्लासिक्स, शाम के समय कुछ चैनलों पर चल रही पुरानी फिल्में भी समय सारिणी का हिस्सा बन रही हैं। सब के ऊपर रामायण व महाभारत के वही पुराने दृष्य यादों की पुरानी गलियों की सैर करवा रहे हैं।
हो रहा डीटॉक्स
कुछ दिनों के लिए ही सही, लॉकडाउन के बहाने ही घरों की रौनक और वहीं अपनियत लौट आई है। वही गतिविधियां लौट आई हैं जिनमें हम पूरे जहान का मनोरंजन पा लेते थे। नौकरों के हाथों से निकली रसोई की कमान अब मालकिनों के हाथों में आ गई है। इस बीच लोग सोशल मीडिया का दामन भी पकड़े हैं लेकिन जो क्वालिटी समय था, जिसकी कमी ने जीवनशैली बदल दी थी, वह इनदिनों फिर लौट आया है। समाजशास्त्री शशिभूषण सिंह के मुताबिक यह बदलाव समाज को एक नई दिशा देगा और फिर से उन्हीं मूल्यों की स्थापना हो सकेगी, जिनकी इस दौर में दरकार थी।
‘बदलाव की बयार में व्यक्ति मशीन बन गया था। व्यक्ति आधुनिक लाइफस्टाइल की कठपुतली बन गया था। ऐसे में वह स्वयं की प्राकृतिक सोच से दूर हो गया था और अब जब उसे एक बार फिर से मौका मिला है कि वह अपनी सोच को जिए, अपनी जड़ों से जुड़े तो वह ऐसा करके खुशी महसूस कर रहा है। बड़ी बात नहीं है कि आधुनिकता व टेक्नोलॉजी से उकताई नई पीढ़ी इन जड़ों में अपनी रुचि तलाश ले और समाज का स्वरूप बदले।
- शशि भूषण सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय
‘एक चुनौतीपूर्ण दौर जरूर है लेकिन निश्चित रूप से घरों के माहौल में बदलाव आ रहा है। युवा पीढ़ी वर्तमान प्रलोभनों में जी रही है, अगर उसे दिशा मिलेगी तो निश्चित रूप से वह पुरानी अच्छी चीजों से जुड़ेगी। बच्चों को उस दिशा से जो़ड़ने का सबसे उपयुक्त समय है। अगर नई पीढ़ी को सुकून के उस जहां से जुड़ने का अवसर मिलेगा तो वे आगे भी इन गतिविधियों को अपनाएंगे और जीवनशैली बेहतर हो सकेगी।’
- तेजस्विनी सिन्हा, न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट, दिल्ली