Navratra Garba Nights: नवरात्र में गरबा व डांडिया से जुड़ी हर जानकारी के लिए पढ़ें यह स्टोरी
नवरात्र के दौरान गरबा और डांडिया का ट्रेंड दिल्ली एनसीआर पर इस कदर छाने लगा है कि यहां फैशन इंडस्ट्री में भी बहार आ गई है। गरबा और डांडिया आयोजन हर जगह होने लगे हैं।
गुरुग्राम [ प्रियंका मेहता]। नवरात्र के दौरान गरबा और डांडिया का ट्रेंड दिल्ली एनसीआर पर इस कदर छाने लगा है कि यहां फैशन इंडस्ट्री में भी बहार आ गई है। गरबा और डांडिया आयोजन हर जगह होने लगे हैं। ऐसे में फैशन को लेकर भी युवतियां सतर्क होने लगी हैं। उत्सव का पूरा पारंपरिक फील लेने के लिए अब फैशन को लेकर युवतियों में एक अलग सा क्रेज दिखने लगा है। युवतियां इन नौ दिनों में फैशन के नौ रंगों को बिखेरने के लिए तैयार होने लगी हैं।
नौ दिनों में बिखरेंगे नौ रंग
डांडिया आयोजनों में हिस्सा लेने के लिए युवतियां हर दिन के हिसाब से अलग-अलग परिधानों को धारण कर उसी हिसाब से मेकअप के लिए डिजाइनर्स से टिप्स ले रही हैं। कॉस्ट्यूम डिजाइनर व फिल्म मेकर हुमा खान का कहना है कि नौ दिनों के लिए परिधानों के स्टाइल को मिक्स मैच करके स्टाइल तैयार किए जा रहे हैं। ऐसे में लोगों के पास कम बजट में हर दिन के लिए स्टाइलिश परिधान के विकल्प हैं।
इंडो-वेस्टर्न और फ्यूजन की धूम
फैशन डिजाइनर सिल्की नंदा के मुताबिक नवरात्र फैशन में इस बार काफी विविधता देखने को मिलेगी। उनके मुताबिक अब लोग परंपरागत लहंगा चोली की जगह प्रयोगों को तरजीह दे रहे हैं। डिजाइनर हुमा खान के मुताबिक युवतियों को पारंपरिक लुक के साथ स्टाइल भी चाहिए। ऐसे में क्रॉप टॉप और हाइ वेस्ट पैंट के साथ एक एंब्रॉइडरी जैकेट दी जा रही है। जैकेट की कशीदाकारी जहां परंपरा की खुशबू बिखेरेगी वहीं क्रॉप टॉप और पैंट्स स्टाइल का पर्याय बनेंगे।अगले दिन के लिए ऑफ शोल्डर टॉप को हाई वेस्ट बेल बॉटम पैंट्स के साथ पहना जा रहा है और स्कार्फ या स्टोल पर राजस्थानी व गुजराती कशीदाकारी उसे पारंपरिक लुक देगी। इसी तरह से नौ दिनों तक के लिए नौ तरीके से परिधानों को मिस्क एंड मैच किया जा रहा है। स्कर्ट पर हल्का गोटा या कशीदा और क्रॉप टॉप, होल्टर टॉप के साथ शॉर्ट या लॉन्ग स्कर्ट, धोती सलवार के साथ क्रॉप टॉप के अलावा ट्रेडिशन ब्लाउज के साथ स्टाइलिश पैंट्स से नौ दिन के नौ स्टाइल बनाए जा रहे हैं।
ट्रेंड में मल्टी यूज परिधानों का क्रेज
अक्सर देखने में आता है कि पारंपरिक उत्सवों व समारोहों के लिए तैयार करवाए गए परिधान आलमारी में बंद हो जाते हैं और सालों साल नहीं निकलते। हुमा का कहना है कि अब इस समस्या को दूर करने के लिए बन रहे इंडो-वेस्टर्न व फ्यूजन परिधानों की एक और खासियत है कि इन्हें फिर से सामान्यतौर पर भी उपयोग में लाया जा सकता है। इनके परंपरागत हिस्से को निकालकर बाकी परिधान को कभी भी पहना जा सकता है।
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