निगम की डायरी: संदीप रतन
निगम की एन्फोर्समेंट टीम पर आजकल आगे कुआं पीछे खाई वाली कहावत सटीक बैठ रही है। संयुक्त आयुक्त से लेकर एसडीओ जेई तक खूब मौज ले रहे थे।
आगे कुआं, पीछे खाई..
निगम की एन्फोर्समेंट टीम पर आजकल आगे कुआं, पीछे खाई वाली कहावत सटीक बैठ रही है। संयुक्त आयुक्त से लेकर एसडीओ, जेई तक खूब मौज ले रहे थे। फर्जी नोटिस भेजकर बिल्डरों को धमकाना, सील करने बावजूद इमारतें खड़ी करवाना जैसे कारनामे बेखौफ चल रहे थे। लेकिन अब डीटीपी एन्फोर्समेंट की भी इस खेल में एंट्री हो गई है। दस दिन पहले आदेश आए हैं। डीटीपी एन्फोर्समेंट आरएस बाठ को अवैध निर्माणों को रोकने की जिम्मेदारी सौंपे जाने के साथ ही कृष्णा कालोनी और न्यू कालोनी में तोड़फोड़ करने जेसीबी पहुंच गई। डीटीपी के साथ एन्फोर्समेंट टीम के एसडीओ और जेई भी मौजूद रहे। बिल्डर भी पुरानी एन्फोर्समेंट की पूरी कुंडली जानते हैं और साठगांठ से धंधा जोरों से चला। लेकिन डीटीपी की मौजूदगी से पूरा खेल बिगड़ गया। एन्फोर्समेंट टीम के पिछले साढ़े पांच साल को देखें तो ईमानदारी दूर तक नहीं थी। अब देखते हैं कितना एक्शन होगा।
परसेंटेज में फंस गया एरियर
निगम में 'परसेंटेज' का गणित फिक्स है। ठेकेदारों को फाइल पास करवानी हो तो परसेंटेज यानी कुल राशि में से निर्धारित शुल्क अफसरों को देना ही होता है। काम करवाने का ये आसान तरीका है। लेकिन अगर परसेंटेज पर अफसर कुंडली मार लें तो यह गणित बिगड़ भी जाता है। ऐसा ही एक पेच एरियर के मामले में फंस गया है। निजी सफाई एजेंसियों को एरियर का करीब 19 करोड़ रुपये मिलना है। ठेकेदारों के जरिये निगम में काम कर रहे सफाईकर्मियों का वेतन हर साल बढ़ता है, लेकिन बढ़ा हुआ वेतन समय पर नहीं देने से अब पिछले तीन साल का एरियर दिया जाना है। एरियर के करोड़ों रुपये की फाइल मंजूर ही होने वाली थी कि यहां भी परसेंटेज का मामला अटक गया। कुछ ठेकेदारों ने सुविधा शुल्क देने से हाथ खड़े कर दिए। अफसरों को खुश किए बिना फाइल निकलेगी या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।
कैमरों से क्यों लगता है डर?
सरकारी महकमे नजर रखने के लिए शहर में सीसीटीवी कैमरे लगवा सकते हैं, लेकिन खुद की निगरानी की बात हो तो साहब को इन कैमरों से डर लगता है। यहां बात हो रही है नगर निगम के शाखा कार्यालयों में लगे कैमरों की। अगर इनकी जांच की जाए तो लगभग सभी कैमरों के एंगिल घूमे पड़े हैं। साहब की टेबल-कुर्सी के बजाय इनको दूसरी तरफ मोड़ दिया गया है। ये कैमरे कामकाज के दौरान पारदर्शिता बरतने और कार्यालयों में निगरानी के लिए लगाए गए थे। निगम के मुख्य अभियंता कार्यालय, मुख्य लेखाधिकारी कार्यालय सहित काफी जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। कई शाखाओं में तो काफी अहम दस्तावेज भी रखे होते हैं। सीसीटीवी से छेड़छाड़ करने से फाइलें भी गायब हो सकती हैं। मुख्य लेखाधिकारी के यहां भुगतेान के लिए ठेकेदारों का जमावड़ा रहता है। इस शाखा में कैमरे क्यों घूमे हैं, यह बात तो अफसर ही बता सकते हैं। मोटी हो रही विजिलेंस की फाइल
निगम में विजिलेंस की मोटी फाइलें सरकारी टेबलों का वजन बढ़ा रही हैं। लगभग दो साल पहले निगम के अंदरूनी घोटालों की जांच के लिए एक विजिलेंस टीम का गठन किया गया था। सात से आठ मामलों की जांच चल रही है और कई मामलों में रिपोर्ट भी तैयार कर ली गई, लेकिन गड़बड़ी में शामिल कर्मचारी या अधिकारियों पर जांच की कोई आंच नहीं आई। पिछले दिनों तीन स्ट्रीट वेंडिग एजेंसियों के सात करोड़ के घोटाले में जांच रिपोर्ट पूरी होने के बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया। फायर एनओसी मामलों और सुपर सकर मशीन घोटाले की जांच भी लंबित है। हालात ये है कि जांच के लिए जरूरी दस्तावेज के लिए भी आरोपित अधिकारियों-कर्मचारियों को बार-बार पत्र लिखने पड़ते हैं और कार्रवाई नहीं होने से इनमें कोई खौफ भी नहीं है। इस दिखावे से बेहतर है कि इन घोटालों की जांच स्टेट विजिलेंस ब्यूरो को सौंप दी जाए।