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निगम की डायरी: संदीप रतन

वैसे तो हंगामा होने के डर से नगर निगम अधिकारी सदन की बैठक करवाने में दिलचस्पी नहीं लेते लेकिन जब भी बैठक होती है तो खास ही होती है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 06:51 PM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 06:51 PM (IST)
निगम की डायरी: संदीप रतन
निगम की डायरी: संदीप रतन

हार मान ली क्या?

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वैसे तो हंगामा होने के डर से नगर निगम अधिकारी सदन की बैठक करवाने में दिलचस्पी नहीं लेते, लेकिन जब भी बैठक होती है तो खास ही होती है। हालांकि इन बैठकों से शहर को ज्यादा कुछ मिलता नहीं हैं और ये बात पार्षद भी अच्छी तरह जानते हैं। अब 18 मार्च को हुई सदन की बैठक का एक किस्सा सुनिये। सदन की गरिमा को नजरअंदाज करते हुए निगम अधिकारी यहां 11 बजे के बजाय 11:20 पर पहुंचे। तब तक पार्षद भी पूरे मजाकिया मूड में थे। कुछ मुद्दों को लेकर पार्षद शीतल बागड़ी ने कहा कि चार साल में कुछ हुआ नहीं। अब क्यों एनर्जी वेस्ट करनी है। इस पर चुटकी लेते हुए पार्षद संजय प्रधान ने कहा, हार मान ली क्या? शीतल बागड़ी ने जवाब में कहा, हां! इन अधिकारियों के सामने मान ली है। चर्चा से स्पष्ट है कि निगम वालों को शहर की कितनी चिता है। निगम वाले बन जाते हैं खबरी

नगर निगम में अगर किसी के खिलाफ कोई भी शिकायत करनी है, तो संभल कर कीजिए। हो सकता है जिसकी शिकायत दी हो, उससे आपका झगड़ा हो जाए और बात मारपीट तक पहुंच जाए। ये हम नहीं कह रहे हैं, एक पार्षद ने निगम सदन की बैठक में ये मुद्दा बड़े जोर-शोर से उठाया था। पार्षद हेमंत का कहना है कि जब भी निगम में अतिक्रमण, कब्जों की शिकायत दी जाती है, इसकी खबर तुरंत मार्केट में आ जाती है। ऐसे में कब्जा करने वाले सतर्क हो जाते हैं और शिकायत करने वाले को ही धमकी मिलनी शुरू हो जाती है। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं पार्षद महोदय। यही तो सारा खेल चल रहा है। निगम के जोन-1, जोन-2 में हो रहे अवैध निर्माणों की शिकायतों के ढेर डस्टबिन में पहुंच गए हैं। अफसरों से लेकर मातहत खूब चांदी कूट रहे हैं, मजाल है कि बिल्डरों पर एक्शन हो। ऐसे तो हो चुकी निगम की कमाई

नगर निगम वाले करोड़ों के खर्चे तो एक मिनट में मंजूर कर लेते हैं, लेकिन कमाई के मामले में फिसड्डी हैं। खुद की जेब और निगम के खजाने में जब फासला कम हो जाए तो फिर ऐसा ही होता है। यहां बात हो रही है विज्ञापन शाखा की। कमाई करने लगे तो इस शाखा का कोई मुकाबला नहीं है, पर चार साल के आंकड़े पूरी कहानी बयान कर रहे हैं। निगम पार्षदों ने अंगुली उठाई तो मामले की पोथी खुल गई। 2017-18 में विज्ञापनों से 14.14 करोड़ की आय हुई। 2018-19 में 13.90 करोड़, 2019-20 में 15.45 करोड़ रुपये और 2020-21 में मात्र 8.97 करोड़ की आय विज्ञापनों से हुई। अब निगम वालों का ये भी दावा है कि 42 यूनीपोल, 25 वाल रैप और 18 एलईडी डिसप्ले लगाने की अनुमति दी गई है। भाई! एक नजर सड़कों पर घुमा लो इतने विज्ञापन तो एक ही सड़क पर मिल जाएंगे।

ओसी क्यों हम हैं ना..

निगम में बिल्डिग बाईलाज से लेकर हर नियम ताक पर है। कागजी कार्यवाही तो महज खानापूर्ति है, बाकी काम तो अपनी मर्जी से ही होते हैं। योजनाकार शाखा और एन्फोर्समेंट टीम की कार्यप्रणाली ऐसी है कि इनको किसी खास मौके पर सम्मानित किया जाना चाहिए। अब बात करते हैं आंकड़ों की। 2018 से लेकर अब तक निगम क्षेत्र में 1250 बिल्डिग प्लान मंजूर किए गए यानी भवन निर्माण की स्वीकृति दी गई, लेकिन निर्माण पूरा होने के बाद सिर्फ आठ लोगों ने आक्यूपेशन सर्टिफिकेट (ओसी) लिया है। ओसी लेने से पहले बनाए गए मकान का निरीक्षण कर देखा जाता है कि मकान नक्शे के हिसाब से बना है या नहीं। शहर की न्यू कालोनी, कृष्णा कालोनी, राजेंद्रा पार्क, रेलवे रोड, पटेल नगर, व्यापार सदन, ओल्ड डीएलएफ, सेक्टर 12 क्षेत्र, पुराना दिल्ली रोड क्षेत्र में जाकर नवनिर्मित भवनों के नक्शे चेक किए जाएं तो एन्फोर्समेंट टीम के कारनामे सामने आ जाएंगे।


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