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क्यूआर कोड बनाकर ई-लर्निग को बनाया सुगम

कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लाकडाउन में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाई से जोड़े रखना चुनौती से कम नहीं था। जब लाकडाउन हुआ तक स्कूलों में नया सत्र शुरू नहीं हुआ था।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 06:58 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 06:58 PM (IST)
क्यूआर कोड बनाकर ई-लर्निग को बनाया सुगम
क्यूआर कोड बनाकर ई-लर्निग को बनाया सुगम

सोनिया, गुरुग्राम

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कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लाकडाउन में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाई से जोड़े रखना चुनौती से कम नहीं था। जब लाकडाउन हुआ तक स्कूलों में नया सत्र शुरू नहीं हुआ था। ऐसे में इनको पढ़ाई से जोड़ने के लिए शिक्षा विभाग समेत स्कूल शिक्षकों ने हर संभव प्रयास किया। विद्यार्थियों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़े रखने के लिए जिले के बजघेड़ा स्कूल के मौलिक मुख्यअध्यापक व राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार-2020 से सम्मानित मनोज कुमार लाकड़ा ने कक्षा एक से दस तक की पुस्तकों का क्यूआर कोड बनाया। उनका कहना है कि सरकारी स्कूलों में अधिकतर कमजोर तबके से विद्यार्थी हैं। इनके पास आनलाइन पढ़ाई के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। इन क्यूआर कोड की मदद से विद्यार्थियों की आनलाइन पढ़ाई काफी सुगम हुई और नियमित रूप से पढ़ाई हो पाई। पेड़ों व नदियों को भी दिया क्यूआर कोड

मनोज कुमार लाकड़ा ने बताया कि जब लाकडाउन हुआ तब स्कूलों में नया सत्र शुरू नहीं हुआ था। ऐसे में विद्यार्थियों के पास पुस्तकें नहीं थी। आनलाइन पढ़ाई शुरू की गई और बिना परीक्षा के विद्यार्थियों को प्रमोट किया गया। विद्यार्थियों को बिना पुस्तक के पढ़ाना संभव नहीं था क्योंकि सरकारी स्कूलों में पहली बार आनलाइन पढ़ाई शुरू हुई थी। ऐसे में उन्होंने अप्रैल माह में कक्षा एक से दस तक की पुस्तकों का क्यूआर कोड तैयार किया।

इन क्यूआर कोड को स्कैन करने से विद्यार्थियों की आसानी से पुस्तकों तक पहुंच मिल जाती है। इसके अलावा पेड़ों व नदियों को भी क्यूआर कोड दिया। इन क्यूआर कोड का विद्यार्थियों समेत शिक्षकों को भी काफी लाभ मिला। वाट्सएप ग्रुप के जरिये अन्य स्कूलों के विद्यार्थियों तक भी इन क्यूआर कोड को पहुंचाया गया।

'मोबाइल पाठशाला' से दिया स्कूल जैसा माहौल

विद्यार्थियों की कक्षाएं तो आनलाइन लगने लगीं लेकिन उन्हें स्कूल जैसा माहौल नहीं मिला। मनोज लाकड़ा ने बताया कि उन्होंने मोबाइल पाठशाला की पहल शुरू की। विद्यार्थी भी इस पाठशाला में स्कूल ड्रेस में शामिल हुए। इस पाठशाला की मदद से उन्होंने स्किल पासबुक का कार्य भी पूरा किया। इस पाठशाला में न केवल विद्यार्थी बल्कि उनके अभिभावक भी साथ में जुड़ते और विद्यार्थियों की पढ़ाई को लेकर फीडबैक देते। इसके साथ ही जरूरतमंद विद्यार्थियों को पाठ्य सामग्री भी उपलब्ध करवाई।

जड़ों से जोड़ने का किया प्रयास

लाकडाउन में विद्यार्थियों को घर से बाहर जाने को नहीं मिला। वह घरों में बंधकर रह गए। अभिभावकों के लिए भी बच्चों को घर में रोककर रखना मुश्किल था। ऐसे में मनोज कुमार लाकड़ा ने बच्चों को ऐसा गृह कार्य व असाइनमेंट दिया जो वह अपने बुजुर्गाें की मदद से ही पूरा कर सकते थे। ऐसे में विद्यार्थियों का समय भी बेहतर तरीके से बीता और उन्हें बोरियत भी महसूस नहीं हुई। मनोज कुमार लाकड़ा बताते हैं कि उन्होंने गृह कार्य में ऐसे विषयों को शामिल किया था जिनकी जानकारी केवल घर के बुजुर्गाें को ही होती है जैसे- गांव का इतिहास, वंश वृक्ष आदि। ऐसे असाइनमेंट से विद्यार्थी न केवल जड़ों से जुड़े बल्कि उन्हें नैतिकता का पाठ भी सीखने को मिला।


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