लाइफस्टाइल: ट्रेंड का पर्याय बन रही हैं पारंपरिक हस्तनिर्मित साड़ियां
एक समय था कि नवयुवतियां साड़ियों पहनने में गुरेज करती थीं। पाश्चात्य फैशन के प्रभाव में भारतीय पारंपरिक साड़ियों की मांग कम हो गई थी। अब ऐसा नहीं है। लोग न केवल साड़ियों की तरफ रुख कर रहे हैं बल्कि उन साड़ियों की मांग कर रहे हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में वहां के कारीगरों व बुनकरों द्वारा बनाई जाती हैं। फैशन विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह की साड़ियों की मांग करना वाला एक वर्ग खड़ा हो गया है जिससे न केवल यह कलाएं फिर से अस्तित्व में आ रही हैं बल्कि उन कारीगरों को भी नया जीवन मिल रही है जो इन साड़ियों को बनाते थे लेकिन इनकी मांग खत्म होने से उन्हें दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था।
प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम
एक समय था कि नवयुवतियां साड़ियां पहनने में गुरेज करती थीं। पाश्चात्य फैशन के प्रभाव में भारतीय पारंपरिक साड़ियों की मांग कम हो गई थी। अब ऐसा नहीं है। लोग न केवल साड़ियों की तरफ रुख कर रहे हैं बल्कि उन साड़ियों की मांग कर रहे हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में वहां के कारीगरों व बुनकरों द्वारा बनाई जाती हैं। फैशन विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह की साड़ियों की मांग करने वाला एक वर्ग खड़ा हो गया है। इससे न केवल यह कलाएं फिर से अस्तित्व में आ रही हैं बल्कि उन कारीगरों को भी नया जीवन मिल रहा है जो इन साड़ियों को बनाते थे। इनकी मांग खत्म होने से उन्हें दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। फैशन डिजाइनर्स कर रहे हैं प्रयोग
फैशन डिजाइनर गौरव गुप्ता बनारसी से लेकर अन्य साड़ियों को फिर से ला रहे हैं। इसके अलावा कुछ इंटीरियर एक्सपर्ट भी इन साड़ियों को फिर से फैशन से जोड़ने का काम कर रहे हैं। पालम विहार निवासी फैशन एक्सपर्ट सीमा अग्रवाल का कहना है कि फैशन को लेकर लोगों की पसंद बदल रही है। अब लोग क्राफ्ट व रचनात्मक चीजों को तरजीह दे रहे हैं। सीमा का कहना है कि लोगों की बदलती पसंद को देखते हुए वे गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के गांवों में जाकर साड़ियों के पारंपरिक डिजाइनों को वहीं के बुनकरों व कारीगरों से बनवा रही हैं। इन साड़ियों को मिली नई पहचान
फैशन जानकार और बनारसी कारीगरों के उत्थान के लिए काम कर रही इंटीरियर डिजाइनर लिपिका सूद का कहना है बनारसी साड़ियों को अब ग्राहक मिलने लगे हैं। एक-दूसरे को देखकर अब लोग इनकी मांग करने लगे हैं। फैशन एक्सपर्ट सीमा अग्रवाल का कहना है कि बनारसी, इकत, बांधनी, जामावार, पटोला, पैथनी आदि साड़ियों पर ¨प्रट, कशीदाकारी और कटवर्क के साथ-साथ रुपांकनों से साड़ियों को खूब तरजीह मिल रही है। सीमा और लिपिका जैसे लोग मथुरा के पेपर क¨टग क्राफ्ट सांझी, छत्तीसगढ़ की कला बस्तर, एमपी की कला गौंड, बिहार की मधुबनी व ओडिशा की पटचित्र के अलावा बनारसी साड़ियों की कलाओं को प्रमोट कर रही हैं। अब इस विशेष वर्ग में यह साड़ियां पसंद की जा रही हैं और बकायदा स्टाइल स्टेटमेंट व स्टेटस ¨सबल भी बन रही हैं। हम पारंपरिक साड़ियों को लोगों तक पहुंचाने के लिए सड़क मार्ग से प्रदेशों के गावों का भ्रमण करते हैं और वहां के मंझे हुए कलाकारों से साड़ियां बुनवाते और डिजाइन करवाते हैं।
- सीमा अग्रवाल, संस्थापक, आर्टिसन सागा लोगों के टेस्ट में इस कदर बदलाव आया है कि अब वे बाजार की नकली साड़ियों को देखते ही भांप रहे हैं। ऐसे में लोग अब सीधे क्षेत्रीय कारीगरों द्वारा हाथ से बनाई गई साड़ियों की मांग कर रहे हैं। इन्हें केवल पार्टी या आयोजन में ही नहीं बल्कि रूटीन में भी युवतियां पहन रही हैं।
- लिपिका सूद, संस्थापक, प्राउड टू बी इंडियन मुहिम