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लाइफस्टाइल : पार्टियों में साहित्य का अध्याय जोड़ती किताबें

प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम महानगरों के पार्टी कल्चर में आ रहा खुलापन और बदलाव युवाआ

By JagranEdited By: Published: Sat, 21 Apr 2018 06:23 PM (IST)Updated: Sat, 21 Apr 2018 06:23 PM (IST)
लाइफस्टाइल :  पार्टियों में साहित्य का अध्याय जोड़ती किताबें
लाइफस्टाइल : पार्टियों में साहित्य का अध्याय जोड़ती किताबें

प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम

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महानगरों के पार्टी कल्चर में आ रहा खुलापन और बदलाव युवाओं को न केवल सांस्कृतिक जड़ों से दूर कर रहा है बल्कि कहीं न कहीं उन्हें संस्कारों से भी अलग कर रहा है। लेकिन अब पार्टियों का नया ट्रेंड युवाओं व संस्कारों के बीच सेतु का काम कर रहा है। जी हां, आजकल हो रही बुक एक्सचेंज पार्टियां हर वर्ग में लोकप्रिय हो रही हैं। इससे किताबें पढ़ने की संस्कृति तो पनप ही रही है, साथ ही पार्टियों को नए मायने भी मिल रहे हैं। शांत कैफे व रेस्टोरेंट्स में होने वाली इन पार्टियों में लोग अपनी किताबों की अदला बदली करते हैं। हो-हल्ला नहीं, साहित्य की होती हैं बातें

कैफे अनादर फाइन डे की संचालक रोमिल का कहना है कि किसी भी ट्रेंड में एक समय के बाद सैचुरेशन या परिपूर्णता आ जाती है। इसकी अच्छाइयां बुराइयां समझ में आ जाती हैं। यही पार्टियों के साथ भी हो रहा है। लोगों को समझ में आ गया है कि शोर-शराबे, ¨ड्रक्स व चमक दमक का असर केवल कुछ देर ही रहता है और इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होते। बुक एक्सचेंज पार्टीज मी¨नगफुल होती हैं। लोग आते हैं, अपनी किताबें एक्सचेंज करते हैं और खान पान का लुत्फ लेते हैं। इन किताबों के बारे में एक दूसरे से चर्चा करते हैं, जिससे उनका ज्ञानवर्धन भी होता है। बच्चों को भी लुभा रही हैं पार्टियां

वैसे तो बुक एक्सचेंज पार्टियां हर वर्ग के बीच लोकप्रिय हो रही हैं, लेकिन अब माता पिता बच्चों को भी ऐसी पार्टियों के लिए प्रेरित कर रहे हैं। सुशांत लोक निवासी सुलक्षणा का कहना है कि उनकी बेटी नौवीं कक्षा में है। पढ़ाई के बीच थोड़ा ब्रेक देने के लिए वे बुक एक्सचेंज पार्टी में जाने के लिए प्रेरित करती हैं। इससे बच्चों के व्यक्तित्व में भी गहराई आएगी। हम स्कूलों में तो बच्चों को किताबों से जोड़ने का पूरा पूरा प्रयास करते हैं, लेकिन बच्चे ज्यादातर उन चीजों से प्रभावित होते हैं जिससे थोड़ा मनोरंजन हो। ऐसे में बुक एक्सचेंज के बहाने पढ़ाई के साथ साथ उन्हें आउ¨टग का भी मौका मिलता है जो काफी रिफ्रे¨शग होता है। किताबें पढ़ने से बच्चों के विचारों में सकारात्मकता आती है।

- कैरल डिसूजा, चाइल्ड काउंसलर, मानव रचना इंटरनेशनल स्कूल वर्तमान पीढ़ी में किताबें पढ़ने की संस्कृति खत्म होती जा रही है और पार्टियां आजकल के जीवन का हिस्सा बन गई हैं। बच्चे इनकी तरफ आकर्षित होते हैं, ऐसे में उन्हें रोकने की बजाए उन्हें इस तरह की पार्टियों से जोड़ा जाए तो दोहरे लाभ होंगे। इससे युवा पीढ़ी भी किताबों में रुचि लेने लगेगी और उनका मनोरंजन भी होगा। यह एक बड़ा सच है कि किताबों से बेहतर दोस्त कोई नहीं हो सकता। किताबें पढ़ने की आदत लोगों में बढ़ रहे तनाव, अवसाद व अकेलेपन की समस्याओं से आसानी से निजात पा सकते हैं।

- चंद्रकांता, वरिष्ठ साहित्यकार, गुरुग्राम


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