कलम : आर्थिक स्वतंत्रता ने बढ़ाया है महिलाओं का आत्मविश्वास : शिल्पी झा
प्रभा खेतान फाउंडेशन श्री सीमेंट अहसास वुमन और दैनिक जागरण के तत्वावधान में मासिक साहित्यिक गतिविधि कलम का आनलाइन आयोजन किया गया। कलम गुरुग्राम के इस आयोजन में एनसीआर की अहसास वुमन आराधना प्रधान ने लेखिका और बेनेट यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर शिल्पी झा से महिलाओं की स्वतंत्रता देश-विदेश में उनकी मौजूदा स्थिति और महिलाओं के प्रति सामाजिक अत्याचारों पर बात की।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम : प्रभा खेतान फाउंडेशन, श्री सीमेंट, अहसास वुमन और दैनिक जागरण के तत्वावधान में मासिक साहित्यिक गतिविधि 'कलम' का आनलाइन आयोजन किया गया। कलम गुरुग्राम के इस आयोजन में एनसीआर की अहसास वुमन आराधना प्रधान ने लेखिका और बेनेट यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर शिल्पी झा से महिलाओं की स्वतंत्रता, देश-विदेश में उनकी मौजूदा स्थिति और महिलाओं के प्रति सामाजिक अत्याचारों पर बात की। इस दौरान शिल्पी झा ने अपनी पुस्तक 'मन पाखी' के विभिन्न अंशों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि महिलाओं को दोहरे दायित्वों का निर्वाह करना ही होता है, वह चाहे अपना करियर छोड़कर करना हो या फिर अपना शौक। वे ऐसा करती हैं। यह स्थिति केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी है। महिलाओं की प्रगति को समाज उस उत्साह के साथ स्वीकार नहीं कर पाता। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला जज लीला सेठ का जिक्र करते हुए कहा कि जब एक बच्चे की मां लीला ने विदेश में लॉ की परीक्षा में टाप किया था तो किस प्रकार समाज के वर्ग विशेष और मीडिया में निराशा थी। उन्हें भी उस दौर में शादी के बाद पढ़ाई करनी थी और ऐसा कोर्स चुनना था जिसमें कि उन्हें यूनिवर्सिटी जाने की जरूरत न पड़े। इस वजह से उन्हें लॉ का कोर्स चुना। उन्होंने कहा कि आर्थिक स्वतंत्रता ने महिलाओं का आत्मविश्वास जरूर बढ़ाया है लेकिन महिलाओं के प्रति अपराध कम नहीं हो रहे हैं। इसका कारण है समाज में आया खुलापन। आज के दौर में शाब्दिक हिसा जिस कदर बढ़ी है, उसमें लोग अपशब्दों को प्रयोग करना बहादुरी समझते हैं। शिल्पी ने कहा कि यह प्रचलन इतना बढ़ गया है कि पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी इनका धड़ल्ले से उपयोग करने में अपने को सशक्त समझती हैं। शिल्पी ने इस चीज का जिक्र भी किया कि किस तरह से माता-पिता के अपराध बोध की फेहरिस्त में बेटी की कमाई का उपयोग करना सबसे ऊपर आता है। आर्थिक स्वतंत्रता के बाद महिलाओं ने घर और रिश्तों को प्राथमिकता देना कम कर दिया है, इस प्रश्न पर शिल्पी ने कहा कि सबसे सहन करने की एक अलग सीमा होती है। कोई पूरी जिदगी सह सकता है तो कोई एक थप्पड़ भी नहीं सहन कर सकता। आम तकरार और घरेलू हिसा में जो फर्क है, उसे समझना होगा। जहां स्त्री को यह लगे कि उसका आत्मसम्मान खत्म होता जा रहा है और विश्वास नहीं रहा, तब जाकर उसे फैसला लेना चाहिए।