अधिकारियों की नाक के नीचे होते रहते हैं अवैध निर्माण
इमारत जब बुलंद हो जाती तो उसे तोड़ने के लिए विभागीय अधिकारियों को क्यों सुध आती है? यह बड़ा सवाल है।
सत्येंद्र सिंह, गुरुग्राम
इमारत जब बुलंद हो जाती तो उसे तोड़ने के लिए विभागीय अधिकारियों को क्यों सुध आती है? यह बड़ा सवाल है। सच तो यह भी है कि शहर के एक हिस्से में अवैध निर्माण के नाम पर तोड़फोड़ की जाती है। दूसरी कालोनी में दर्जनों पांच मंजिला इमारत खड़ी हो जाती हैं। उनमें बनाए गए फ्लैट बेच कर प्रॉपर्टी डीलर करोड़ों कमा जाते हैं। कई बार तो तोड़फोड़ भी केवल दिखावे के लिए हुई और तोड़ी गई इमारत फिर से बुलंद कर ली गई।
एयर फोर्स के आयुध डिपो से जुड़े नौ सौ मीटर के प्रतिबंधित क्षेत्र में खड़ी बहुमंजिला इमारतें इस बात का उदाहरण हैं। आठ से नौ साल के बीच यहां पर सैंकड़ों पर तोड़फोड़ हुई मगर अवैध निर्माण होना बंद नहीं हुआ। तीन दिन पहले जिस अशोक विहार इलाके में बनी जिस इमारत को तोड़ा गया उसे एकाएक तो नहीं बनाया गया। पांच मंजिला इमारत खड़ा करने में दो से चार माह लगे होंगे मगर अवैध निर्माण किया जा रहा उसे देखने कोई नहीं पहुंचा। हालांकि यह भी संभव हो सकता है कि पहले अधिकारियों के ऊपर दबाव रहा हो, उसे दूर करते ही इमारत तोड़ दी गई। सेक्टर व नगर निगम की कालोनियों में भी अवैध निर्माण होना आम बात हो गई है। लोग जो नक्शा पास कराते हैं पहले उसी के अनुरूप इमारत बनवा लेते हैं। जैसे ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट मिल जाता है उसके बाद मकान के छज्जे को तोड़कर बढ़ाकर छोड़ा गया कवर्ड एरिया भी कवर कर लेते हैं। ऐसे हजारों मकान हैं जिन्हें नियम को ताक में रखकर तैयार कराया गया है। यदि अधिकारी शुरू में ही सख्त रहे तो तोड़फोड़ की नौबत ही क्यों आए। डीएलएफ फेज-3 में तोड़फोड़ की गई तो वहां के लोगों की यही पीड़ा थी कि बड़ी -बड़ी कोठी में रहने वालों ने भी नियम ताक में रख कवर्ड एरिया को भी नहीं छोड़ा। कोठी में पीजी व गेस्ट हाउस चल रहे हैं। उन्होंने रैंप आगे बढ़ा दिया तो बड़ा गुनाह कर डाला।