'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' मरीज के खुद के लिए किए रक्तदान के बाद की गई सर्जरी
साइबर सिटी के मेडिकल इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि जिस मरीज की सर्जरी करनी थी उसके लिए उसी से रक्तदान कराया गया।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: साइबर सिटी के मेडिकल इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि जिस मरीज की सर्जरी करनी थी, उसके लिए उसी से रक्तदान कराया गया। नारायणा अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि गांव नाथूपुर की रहने वाली 16 वर्षीय मोनिका जन्म से हृदय रोग से ग्रस्त है। उसकी सर्जरी करनी जरूरी थी लेकिन उसका रक्त दुर्लभ 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' का होने के कारण सर्जरी से पूर्व उसके ग्रुप का रक्त की व्यवस्था करने में समस्या आ रही थी। सबसे पहले मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में कुछ लोगों में एचएच ग्रुप का रक्त पाए जाने के कारण इसका नाम बॉम्बे ब्लड ग्रुप रखा गया। इस ब्लड ग्रुप बाले लोग सिर्फ इसी ब्लड ग्रुप के लोगों से रक्त ले और दे सकते हैं। यह 10 हजार लोगों में किसी एक को होता है।
नारायणा अस्पताल के डॉ. रचित सक्सेना ने बताया कि पीड़िता के दिल में छेद था। दुर्लभ ब्लड ग्रुप होने के कारण बिना रक्त का प्रबंध किए सर्जरी करना उचित नहीं था। कोरोना काल में इस समूह के रक्त का प्रबंध करना और भी मुश्किल था। ऐसी विषम परिस्थिति में मरीज का ही ब्लड स्टोर करने का निर्णय लिया गया। किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर से एक महीने में आमतौर पर चार यूनिट रक्त नहीं लिया जाता लेकिन विशेष परिस्थितियों को देखते हुए मोनिका को अस्पताल में ही निगरानी में रखकर 8 से 10 दिनों के अंतराल में उसके शरीर से रक्त लिया जाने लगा। इस तरह सर्जरी के लिए 4 यूनिट रक्त सुरक्षित किया गया।
मरीज का वजन 50 किलो से कम था, जिससे इस प्रक्रिया का विपरीत असर होने का भी जोखिम था। सर्जरी के लिए ज्यादा समय नहीं था क्योंकि रक्त को 35 दिनों तक ही सुरक्षित रख सकते हैं। उन्होंने बताया कि 9 अगस्त को किशोरी की सर्जरी हो गई और 18 अगस्त को वह डिस्चार्ज हो गई। अब वह स्वस्थ है।