चार दशक बाद भी नहीं मिला डीएलएफ निवासियों को खेल का मैदान
कॉलेज के लिए करना पड़ता है दूसरी शहरों का रूख नए गुरुग्राम में कॉलेज की व्यवस्था न होने से स्कूली शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य शहरों की विवि का रुख करना पड़ता है। नए गुरुग्राम में छोटी बड़ी मिलाकर 300 से अधिक सोसायटियां है और एक दर्जन से अधिक कालोनियां जिनकी आबादी पांच लाख से अधिक होगी लेकिन कॉलेज के नाम पर कोई सुविधा नहीं।
गौरव सिगला, नया गुरुग्राम
गोल्फ कोर्स रोड की जगमगाती स्ट्रीट लाइट और गगनचुंबी इमारतों के बीच डीएलएफ कॉलोनी को बसे भले ही चार दशक बीत चुके हैं लेकिन आज भी यह कॉलोनी कई सुविधाओं को हासिल करने के लिए प्रशासन और शहर के जनप्रतिनिधियों के साथ जद्दोजहद में लगी हुई है।
डीएलएफ कुतुब एनक्लेव आरडब्ल्यूए के प्रवक्ता ध्रुव बंसल, एच ब्लॉक आरडब्ल्यूए के महासचिव राहुल चंदोला, जी ब्लॉक से रविन्द्र सिंह, एफ ब्लॉक से मुकेश मलिक का कहना है कि कॉलोनी में आधा दर्जन से अधिक ऐसे मुद्दे हैं, जिनके लिए आज भी यहां के लोग तरस रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से क्लब, डिस्पेंसरी का निर्माण, बच्चों के लिए खेल का मैदान व कॉलेज शामिल हैं। इसके बावजूद यहां के जनप्रतिनिधियों को लोगों की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। लोकसभा-विधानसभा चुनाव आए और चले गए। सरकार चाहे कोई भी रही हो, लेकिन बच्चों के सपने अभी भी अधूरे ही रहे।
इसका बड़ा कारण यह भी है कि पॉश इलाकों पर वोटिग के लिए लोगों का घरों से बाहर न निकलने का टैग लगा हुआ है लेकिन अब ऐसा नहीं है। हालात बदल रहे हैं। लोग अपने अधिकारों के लिए आगे आने लगे हैं। इस बार जो उनके मुद्दों पर काम करेगा, वोट भी उसी को मिलेगा। इन्हीं समस्याओं पर काम करते हुए बुधवार को दैनिक जागरण डीएलएफ इलाके में उनकी समस्याओं को जानने के लिए ग्राउंड जीरो पर पहुंचा। कॉलेज के लिए करना पड़ता है दूसरे शहरों का रुख
नए गुरुग्राम में कॉलेज की व्यवस्था न होने से स्कूली शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य शहरों की विश्वविद्यालय का रुख करना पड़ता है। नए गुरुग्राम में छोटी बड़ी मिलाकर 300 से अधिक सोसायटियां हैं और एक दर्जन से अधिक कॉलोनियां हैं, जिनकी आबादी कुल मिलाकर पांच लाख से अधिक होगी लेकिन कॉलेज के नाम पर कोई सुविधा नहीं। डीएलएफ का इतिहास:
गुरुग्राम में गोल्फ कोर्स रोड से सटी डीएलएफ कॉलोनी 1980 के दशक में विकसित हुई थी। इसी दशक के बीच यहां सुशांत लोक और सनसिटी जैसी पॉश कॉलोनी भी अस्तित्व में आई। डीएलएफ फेज-1 से लेकर चार तक लगभग 1600 एकड़ में बसे हुए हैं। यहां पर एक लाख से अधिक की आबादी और 25,000 से अधिक परिवार भी रह रहे हैं। हैरत की बात यह है कि कॉलोनी विकसित होने और प्लॉट बेचने के समय लाइसेंस की नियम-शर्तो में सभी सुविधाएं थीं, लेकिन कॉलोनी विकसित होते ही कई सुविधाएं कागजों में तो रहीं लेकिन धरातल पर नहीं उतर सकीं। पहले डीएलएफ फेज-1 में क्लब था लेकिन 2006 में तोड़फोड़ के बाद दोबारा क्लब का निर्माण ही नहीं किया। जबकि इसके लिए आंतरिक विकास शुल्क की भी अदायगी की गई है।
- विजयता चंदोला, निवासी एच ब्लॉक डीएलएफ इलाके में बच्चों के खेलने के लिए लगभग चार दशक के बाद भी खेल का मैदान नसीब नहीं हुआ है। आए दिन बुजुर्ग एवं बच्चों में पार्क में खेलने को लेकर तकरार होती है
-प्रदीप बाली, निवासी डीएलएफ -2 हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट एक्ट के नियमों के तहत दस हजार की आबादी पर क्लब, एक लाख की आबादी पर कॉलेज, पांच लाख से अधिक की आबादी पर स्टेडियम विकसित करने के प्रावधान हैं लेकिन प्रशासन एवं जनप्रतिनिधि इन समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देता।
-आरएस राठी, प्रधान डीएलएफ कुतुब एनक्लेव आरडब्ल्यूए डिस्पेंसरी का निर्माण न होने से हल्के बीमार होने की सूरत में भी बड़े अस्पतालों में भारी भरकम फीस देनी पड़ती है। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए ही कॉलोनी में डिस्पेंसरी का प्रावधान होता है।
-उषा बक्शी, निवासी डीएलएफ-2