क्राइम फाइल: आदित्य राज
पुलिस रिश्वत कांड ने कई सवालों को जन्म दे दिया है। दिल्ली के एक काल सेंटर संचालक से रिश्वत लेते हुए हेड कांस्टेबल अमित को दबोचने के लिए फरीदाबाद विजिलेंस की टीम को जिम्मेदारी सौंपी गई
क्या गुरुग्राम विजिलेंस टीम पर भरोसा नहीं
पुलिस रिश्वत कांड ने कई सवालों को जन्म दे दिया है। दिल्ली के एक काल सेंटर संचालक से रिश्वत लेते हुए हेड कांस्टेबल अमित को दबोचने के लिए फरीदाबाद विजिलेंस की टीम को जिम्मेदारी सौंपी गई जबकि क्षेत्राधिकार के नाते यह जिम्मेदारी गुरुग्राम विजिलेंस को सौंपी जानी चाहिए थी। इससे पुलिस महकमे से लेकर अधिकतर लोगों की जुबान पर एक ही सवाल है कि क्या गुरुग्राम विजिलेंस टीम पर चंडीगढ़ में बैठे आला अधिकारियों को भरोसा नहीं? आखिर ऐसी कौन सी बात है कि पूरी टीम को इस मामले से अलग कर दिया गया। यही नहीं रिश्वत कांड के सामने आने के बाद काल सेंटरों में छापेमारी भी बंद हो गई है। रिश्वत कांड से पहले केवल दिसंबर महीने के दौरान ही पांच फर्जी काल सेंटर पकड़े गए थे। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि अब फर्जी काल सेंटरों का भी भंडाफोड़ अचानक बंद क्यों हो गया? किस काम की है थाना पुलिस
मार्च 2019 के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता मंदीप सेहरा के घर से साइकिल चोरी हो गई थी। उसी समय मामला दर्ज करा दिया गया था। आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के बारे में जानकारी दी गई थी कि कैमरों की फुटेज देखकर चोर की पहचान की जा सकती है। इसके बाद भी सेक्टर-9 थाना पुलिस एक साधारण चोर को पकड़ने की बात दूर, पहचान करने में भी नाकाम है। जब भी अधिवक्ता पुलिसकर्मियों से शिकायत करते हैं तो कहा जाता है जल्द ही पकड़ लेंगे। मंदीप सेहरा भी शिकायत करते-करते थक चुके हैं। जब एक वरिष्ठ अधिवक्ता के मामले में पुलिस का यह रवैया है फिर आम लोगों के मामले में कितनी सक्रियता पुलिस दिखाती होगी, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता मंदीप सेहरा कहते हैं कि साइबर सिटी की पुलिस नाम के अनुरूप दिखनी चाहिए। नियुक्त करने से पहले देखना चाहिए कि साइबर सिटी के लायक है या नहीं। ताखपर रखा डीसी का निर्देश
साइबर सिटी के थानों की पहचान धीरे-धीरे सिर्फ एफआइआर दर्ज करने वाली एजेंसी के रूप में बनती जा रही है। हालांकि इस मामले में भी कई बार गंभीरता नहीं दिखाई देती है। भ्रष्टाचार के एक मामले की शिकायत आरटीआइ कार्यकर्ता ओपी कटारिया ने जिला उपायुक्त से की थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए उपायुक्त ने 24 दिसंबर को ही सेक्टर-14 थाने को एफआइआर दर्ज करने का निर्देश दिया था लेकिन कुछ नहीं हुआ। आरटीआइ कार्यकर्ता कई बार थाने में संपर्क कर चुके हैं लेकिन कोई असर नहीं। यह हाल तब है जब मुख्यमंत्री मनोहरलाल कई बार स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि शिकायत सामने आते ही एफआइआर दर्ज की जाए। छानबीन के बाद यदि लगता है कि शिकायत सही नहीं है, फिर एफआइआर कैंसिल कराएं। इसके बाद भी साइबर सिटी के अधिकतर थानों पर कोई असर नहीं दिख रहा। लोग मामला दर्ज कराने के लिए भटकते रहते हैं। जांच के नाम खानापूर्ति
कुछ महीने पहले पुलिस आयुक्त कार्यालय के नजदीक तक एक महिला पेट्रोल लेकर न केवल पहुंच गई, बल्कि खुद को आग लगाने भी प्रयास किया। मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों की सक्रियता से महिला अपने मकसद में सफल नहीं हुई थी। इसके बाद कहा गया कि जो भी लोग कार्यालय में आएंगे उनकी जांच की जाएगी। कुछ दिनों तक इसके ऊपर गंभीरता से ध्यान दिया गया। अब स्थिति फिर जस की तस। पुलिसकर्मी अपनी सीट से हिलते तक नहीं। अधिक से अधिक आने वालों से रजिस्टर में एंट्री करा लेते हैं। इस तरह सुरक्षा के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। यह हाल तब है बिल्डिग में पुलिस आयुक्त केके राव ही नहीं बल्कि अधिकतर पुलिस अधिकारी बैठते हैं। अपने काम से पहुंचे मानेसर निवासी जय कुमार ने कहा कि पुलिस आयुक्त केके राव को कभी-कभी अपना वेश बदलकर औचक निरीक्षण करना चाहिए, तभी सभी निष्क्रिय पुलिसकर्मी रास्ते पर आएंगे।