हर व्यक्ति के लिए आर्मी की ट्रे¨नग अनिवार्य हो
कश्मीर में आतंकवादियों का सामना करते हुए शहीद कीर्ति चक्र से सम्मानित मेजर अविनाश ¨सह भदौरिया की पत्नी कैप्टन (रिटा.) शालिनी ¨सह का मानना है कि हर व्यक्ति के लिए आर्मी की ट्रे¨नग अनिवार्य होना चाहिए। आर्मी में जाने के बाद उन्हें अपनी शारीरिक क्षमता का अहसास हुआ।
आदित्य राज, गुरुग्राम
कश्मीर में आतंकवादियों का सामना करते हुए शहीद कीर्ति चक्र से सम्मानित मेजर अविनाश ¨सह भदौरिया की पत्नी कैप्टन (रिटा.) शालिनी ¨सह का मानना है कि हर व्यक्ति के लिए आर्मी की ट्रे¨नग अनिवार्य होना चाहिए। आर्मी में जाने के बाद उन्हें अपनी शारीरिक क्षमता का अहसास हुआ। देश को यदि हर स्तर पर मजबूत बनाना है जो आर्मी की ट्रे¨नग अनिवार्य करने के लिए केंद्र सरकार को कदम उठाने होंगे। आर्मी में जाने से व्यक्ति के भीतर राष्ट्रीयता की भावना भी बढ़ती है। उसमें जाने के बाद व्यक्ति अपनी सुरक्षा के बारे में नहीं बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा के बारे में ¨चता करता है।
रविवार को भारत विकास परिषद की गुरुग्राम इकाई की ओर से सेक्टर 12ए स्थित विवेकानंद आरोग्य केंद्र के शादीलाल ¨मडा सभागार में आयोजित महिला संगोष्ठी में पहुंचीं मिसेज इंडिया-2017 कैप्टन शालिनी ¨सह ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि जब वह 23 साल की थीं जो उनके पति शहीद हो गए थे। उस समय उनका बेटा ध्रुव केवल दो साल का था। उस समय तक वह एक घरेलू महिला थीं। पति की शहादत ने आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। पति की शहादत के बाद महसूस हुआ कि दुनिया में शहादत से बड़ा कुछ भी नहीं। ऐसा सोचकर उन्होंने आंसू को अपनी ताकत बनाया। शहादत के तीन महीने के भीतर ही उनका चयन आर्मी में हो गया। आर्मी में रहने के दौरान उन्हें पता चला कि हर व्यक्ति में चाहे वह पुरुष हो या महिला, अपार क्षमता है। आवश्यकता है क्षमता विकसित करने की। ऐसा आर्मी की ट्रे¨नग से ही बेहतर तरीके से संभव है। छह साल तक आर्मी में रहने के बाद वे कारपोरेट सेक्टर से जुड़ी। इस सेक्टर में काफी बेहतर किया। आज वह महिलाओं से लेकर सभी क्षेत्र के लोगों की दक्षता बढ़ाने को लेकर प्रेरित करती हैं। यह सबकुछ आर्मी की ट्रे¨नग से हासिल हुआ। शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता
मूल रूप से उत्तरप्रदेश के जौनपुर की निवासी शालिनी ¨सह कहती हैं कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है। छोटे-छोटे बच्चे तनाव से ग्रस्त हैं। बैग इतनी भारी है कि वे बाहर कुछ सोच नहीं सकते। आवश्यकता है व्यवहारिक शिक्षा पर जोर देने की। केवल मशीन बनाने से काम नहीं चलेगा। मशीन बनाने की वजह से संवेदना खत्म होती जा रही है। छोटी-छोटी बात भी बहुत बड़ी हो जाती है। परिवार टूट रहे हैं। शालीनता शब्द का महत्व कम होता जा रहा है। जो नौकरी करते हैं वे किसी का कुछ सुनने को तैयार नहीं। पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी है। ऐसी स्थिति में यदि व्यवहारिक शिक्षा के ऊपर जोर नहीं दिया गया फिर देश कमजोर हो जाएगा। व्यवहारिक शिक्षा से ही बच्चों का भावनात्मक लगाव परिवार, समाज व राष्ट्र से होगा।