जीने का नया नजरिया पैदा करती है '¨जदगी जरा आसान रहने दो' : डॉ. मुक्ता
कविताएं नन्हें शिशु की भांति होती है जिसे कवि अथाह पीड़ा झेलकर जन्म देता है। खासकर जो कविता मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों को ध्यान में रखकर लिखी गई हों पाठक पर गहरी छाप छोड़ती है। दिलों पर कुछ ऐसा ही छाप कविता संग्रह '¨जदगी जरा आसान रहने दो' में संकलित कविताएं भी छोड़ती हैं। यह कहना था वरिष्ठ साहित्यकार व हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक डॉ. मुक्ता का। वे सोमवार को एससीईआरटी भवन के निर्णय सभागार में युवा कवियित्रि ज्योत्सना कलकल की कविता संग्रह '¨जदगी जरा आसान रहने दो' के लोकार्पण अवसर पर बोल रही थीं।
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: कविताएं नन्हें शिशु की भांति होती हैं, जिसे कवि अथाह पीड़ा झेलकर जन्म देता है। खासकर जो कविता मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों को ध्यान में रखकर लिखी गई हों पाठक पर गहरी छाप छोड़ती है। दिलों पर कुछ ऐसा ही छाप कविता संग्रह '¨जदगी जरा आसान रहने दो' में संकलित कविताएं भी छोड़ती हैं। यह कहना था वरिष्ठ साहित्यकार व हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक डॉ. मुक्ता का।
वे सोमवार को एससीईआरटी भवन के निर्णय सभागार में युवा कवियित्री ज्योत्सना कलकल की कविता संग्रह '¨जदगी जरा आसान रहने दो' के लोकार्पण अवसर पर बोल रही थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं डॉ. मुक्ता ने किताब में संकलित कविताओं पर विस्तृत चर्चा भी की। वहीं बतौर मुख्य अतिथि पहुंची प्रसिद्ध कवयित्री रेणु हुसैन ने कहा कि कविता सहज और सरल रूप में स्वयं ही कवि के मन से निकलती है, इसलिए बिना किसी रोक-टोक के बस लिखते रहना चाहिए। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जिला शिक्षा अधिकारी डॉ. दिनेश शास्त्री, बाल साहित्यकार डॉ. मधु पंत व सुरेश वशिष्ठ ने भी पुस्तक पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर साहित्यकार घमंडी लाल अग्रवाल, डॉ. कृष्ण लता यादव, वीणा अग्रवाल, नरेंद्र गौड़, ओम प्रकाश कादयान, कृष्णा जैमिनी, शारदा मित्तल, नरेंद्र खामोश, विशाल बाग, सविता स्याल, रमन मोर, शकुंतला देवी, मुख्त्यार ¨सह कादयान व युवा कवि अभिषेक गौड़ समेत बड़ी संख्या में साहित्यकारों की मौजूदगी रही।