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रास्तों पर अतिक्रमण से नहीं पहुंच पा रहा अरावली का बरसाती पानी परंपरागत जल स्त्रोतों तक

अरावली की पहाड़ियों से बारिश का पानी बरसाती नालों व रास्तों के अवरुद्ध करने और उन पर अतिक्रमण की वजह से इधर-उधर फैल रहा है। लाखों गैलन पानी बेकार बह जाता है। इस पानी को संरक्षित करने के लिए कोई भी विभाग गंभीरता से विचार नहीं कर रहा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Jul 2021 08:12 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 08:12 PM (IST)
रास्तों पर अतिक्रमण से नहीं पहुंच पा रहा अरावली का बरसाती पानी परंपरागत जल स्त्रोतों तक
रास्तों पर अतिक्रमण से नहीं पहुंच पा रहा अरावली का बरसाती पानी परंपरागत जल स्त्रोतों तक

महावीर यादव, बादशाहपुर (गुरुग्राम)

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अरावली की पहाड़ियों से बारिश का पानी बरसाती नालों व रास्तों के अवरुद्ध करने और उन पर अतिक्रमण की वजह से इधर-उधर फैल रहा है। लाखों गैलन पानी बेकार बह जाता है। इस पानी को संरक्षित करने के लिए कोई भी विभाग गंभीरता से विचार नहीं कर रहा है। प्रशासनिक लापरवाही से जहां भूजल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। वहीं, बरसात के दिनों में लोगों को जलभराव की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। गांव में परंपरागत जोहड़ तालाब मिट्टी से भर दिए गए हैं। परंपरागत जल स्त्रोतों को या तो खत्म कर दिया गया है। या फिर बरसाती पानी के रास्तों पर अतिक्रमण के कारण उन तक पानी पहुंच नहीं पा रहा है।

अरावली की तलहटी में बने अधिकतर गांव नगर निगम के दायरे में आ गए। लगभग हर गांव में बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए जोहड़ व तालाब बने हुए हैं। नगर निगम इन तालाबों को बचाने के लिए प्रयास तो कर रहा पर वह नाकाफी दिखते हैं। पिछले वर्ष नगर निगम की मेयर मधु आजाद ने नगर निगम क्षेत्र में आने वाले 112 तालाबों का जीर्णोद्धार करने की घोषणा की। नगर निगम के अधिकारियों ने योजना भी बनाई। पर वह योजना भी हवा-हवाई हो गई। तालाबों पर बना दिए कहीं सामुदायिक भवन तो कहीं स्कूल

अरावली की पहाड़ियों से बारिश का पानी आकर गांव में बने तालाब में जमा होता था। तालाबों में जल संचयन होने से पानी धीरे-धीरे भूगर्भ में चला जाता था। भूजल स्तर बेहतर बना रहता था। पलड़ा गांव में सड़क के साथ बड़ा तालाब बना हुआ था। उसको समतल कर स्कूल के खेल का मैदान बना दिया गया। इसी तरह इस्लामपुर गांव में बड़े तालाब को समतल कर उस तालाब के स्थान पर मंदिर का निर्माण कर दिया गया। टीकली के पहाड़ से तीन तरफ से पानी आता था।

अकलीमपुर गांव के साथ से बादशाहपुर की इंद्र कालोनी में से बरसाती पानी बादशाहपुर के दरबारीपुर रोड पर बने तालाब में पहुंचता था। बादशाहपुर के तालाब तक पानी के पहुंचने के सभी रास्ते बंद कर दिए। परंपरागत रास्ते बंद होने की वजह से पानी इधर-उधर फैलता रहता है। नूरपुर गांव के खेतों में से भी बीचोबीच बने रास्ता (दगड़ा) में से नूपुर के तालाब में पानी पहुंचता था। नूरपुर गांव में तालाब का अस्तित्व तो बचा हुआ है। वहां तक पहाड़ का पानी पहुंचने से सभी रास्ते बंद हो गए। बरसाती पानी का परंपरागत रास्ता थी बादशाहपुर की नदी

अरावली से बारिश का पानी का सबसे परंपरागत रास्ता बादशाहपुर की नदी थी। राजस्व रिकार्ड में यह नदी के रूप में दर्ज है। अब इस नदी का अस्तित्व खत्म कर बादशाहपुर ड्रेन बना दिया गया। जगह-जगह अतिक्रमण होने की वजह से इसमें भी पानी न के बराबर आता है। इस नदी के माध्यम से घाटा व कादरपुर की तरफ से पानी बादशाहपुर, खांडसा व गाडोली से होता हुआ दौलताबाद के डहर में जाता था।

गैरतपुर बांस की तरफ से आने वाला पानी भी इस नदी में बादशाहपुर में पलड़ा व नूरपुर की तरफ से आकर मिल जाता था। एक मुख्य रास्ता कन्हैई गांव से उद्योग विहार व पालम विहार से होता हुआ नजफगढ़ ड्रेन में पहुंचता था। उद्योग विहार व्यक्त पालम विहार विकसित होने के बाद यह रास्ता भी बिल्कुल खत्म हो गया। इस रास्ते के माध्यम से घाटा व कादरपुर की तरफ से आने वाला अरावली का पानी जाता था। जल संकट का समाधान कर सकते हैं प्राचीन जलस्त्रोत

पानी के पुराने मार्ग अवरुद्ध होने के कारण इधर-उधर खेतों में बरसाती पानी फैलता रहता है। गांव के प्राचीन जोहड़ व तालाब को पुनर्जीवित कर बरसाती पानी का संरक्षण कर जलस्तर उठाए जाने के लिए गंभीर कदम उठाने की जरूरत है। परंपरागत पानी के रास्तों को अतिक्रमण मुक्त कर जल स्त्रोतों तक पहुंचाने पर गंभीरता दिखाई जाए तो बेहतर परिणाम आ सकते हैं। बड़ी झीलों को विकसित कर व उनमें बरसाती पानी को पहुंचाने का काम कर पानी की एक-एक बूंद का भंडारण किया जा सकता है।


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