जैविक खेती अपनाएं, धरा को बचाएं
भावी पीढ़ी के लिए बेहतर पर्यावरण से अच्छा उपहार कुछ और नहीं हो सकता। इसलिए उन्हें बेहतर भविष्य देने का प्रयास करें और अपनी धरा को बेहतर बनाएं। चारों ओर पेड़-पौधे हरियाली पशु-पक्षी नदियां ही धरती का गहना हैं।
विश्व पृथ्वी दिवस
सोनिया, गुरुग्राम
भावी पीढ़ी के लिए बेहतर पर्यावरण से अच्छा उपहार कुछ और नहीं हो सकता। इसलिए उन्हें बेहतर भविष्य देने का प्रयास करें और अपनी धरा को बेहतर बनाएं। चारों ओर पेड़-पौधे, हरियाली, पशु-पक्षी, नदियां ही धरती का गहना हैं। इन्हें संजोकर रखने की जरूरत है। दिनोंदिन बिगड़ रहे पर्यावरण के कारण अगर धरा को बचाना है तो सभी को मिलकर प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना होगा। विश्व पृथ्वी दिवस पर सभी को पर्यावरण की बेहतरी के लिए मिलकर कार्य करने का दृढ़ संकल्प लेना होगा। ये बातें कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से सेवानिवृत्त मुख्य वैज्ञानिक प्रो. नंदलाल भाटिया ने कहीं। उन्होंने कहा कि धरा को बचाने के लिए प्रदूषण स्तर घटाना होगा। ग्लोबल वार्मिग के बढ़ते स्तर को रोकना होगा। इसके अलावा जैविक खेती के जरिये धरा को सुरक्षित रखा जा सकता है।
जन जागरूकता जरूरी : धरा को बचाने के लिए जागरूकता बहुत जरूरी है। जब तक लोगों को यह पता ही नहीं होगा कि किस प्रकार हम धरती को बचा सकते हैं, तब तब कैसे कार्य किया जा सकता है। इसलिए सेमिनार, वर्कशाप, कान्फ्रेंस, भाषण, नाटक, शार्ट मूवी समेत अन्य तरीकों से लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करना होगा। प्रो. भाटिया कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिग का स्तर वर्ष 1875 से 2000 तक 13.77 सेंटीग्रेड से14.43 सेंटीग्रेड बढ़ा है। आशंका है कि 21वीं सदी के अंत तक यह 19 सेंटीग्रेड तक चला जाएगा। अब सतर्क और जागरूक होने की जरूरत है। अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे। ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव को कम करना होगा। बढ़ते प्रदूषण के कारण ही ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्रों में चक्रवात आ रहे हैं। ऐसे में अब हमें मिलकर धरा को सुंदर व सुरक्षित बनाना होगा। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर रोक लगानी होगी और पर्यावरण का संरक्षण करना होगा।
पौधारोपण से सामान्य होगा पर्यावरण संतुलन : पर्यावरण का संतुलन लगातार बिगड़ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण लगातार बड़ी संख्या में पेड़ों को काटना है। प्रो. नंदलाल भाटिया का कहना है कि अब फिर से धरती मां की गोद हरी करने की जरूरत है। अधिक से अधिक पौधारोपण करना होगा। इसके अलावा पालीथिन के प्रयोग पर रोक, जल संरक्षण, जैविक खेती आदि के जरिये पर्यावरण का संतुलन सामान्य किया जा सकता है।