विद्यार्थियों को मानसिक तनाव से लड़ना सिखा रहे
तकनीक के इस दौर में जो समस्या सबसे विकराल रूप से उभर रही है वो है मानसिक तनाव। विद्यार्थियों को इससे निजात दिलाने के लिए साइबर सिटी के सेक्टर 56 निवासी प्रितिश और सेक्टर 67 निवासी सिमरन द्वारा साल 2013 में बनाई गई संस्था 'ए क्राई फॉर हेल्प' काम कर रही है। हंस राज, नया गुरुग्राम तकनीक के इस दौर में जो समस्या सबसे विकराल रूप से उभर रही है
हंस राज, नया गुरुग्राम
तकनीक के इस दौर में जो समस्या सबसे विकराल रूप से उभर रही है वो है मानसिक तनाव। आज हर आयु वर्ग के लोग इसकी चपेट में हैं। खासकर विद्यार्थियों के लिए बु¨लग, रै¨गग के साथ-साथ परीक्षा में बेहतर परिणाम लाने का दबाव और करियर की ¨चता भी मानसिक तनाव का कारण बन रही है। विद्यार्थियों को इससे निजात दिलाने के लिए साइबर सिटी के सेक्टर 56 निवासी प्रितिश और सेक्टर 67 निवासी सिमरन द्वारा साल 2013 में बनाई गई संस्था 'ए क्राई फॉर हेल्प' काम कर रही है।
11 से 20 साल के विद्यार्थियों को मानसिक तनाव से बचाने के उद्देश्य से शुरू की गई संस्था दिल्ली-एनसीआर के विभिन्न स्कूलों के अलावा साल 2017 में फिलीपींस के विद्यार्थियों को भी प्रशिक्षण दे चुकी है। फिलहाल 'ए क्राई फॉर हेल्प' की टीम नौ दिवसीय दौरे पर बी¨जग (चीन) में है, जहां वो 25 से 27 मई तक बच्चों को विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये प्रशिक्षण देगी। ..ताकि आपबीती न बने जगबीती
दिल्ली विश्वविद्यालय से बिजनेस इकॉनोमिक्स की पढ़ाई कर रहे 20 वर्षीय प्रितिश 'ए क्राई फॉर हेल्प' की शुरुआत के पीछे स्कूली जीवन के अपने कड़वे अनुभवों को बताते हैं। उन्होंने बताया कि पांचवीं कक्षा तक उनकी स्कू¨लग जयपुर में हुई। उसके बाद गुरुग्राम शिफ्ट हुए। यहां के स्कूल का माहौल जयपुर के विपरीत था। उस उम्र में जब वो डे¨टग जैसे शब्दों से परिचित भी नहीं थे, कुछ सीनियर उनके लिए गे और दब्बू जैसे शब्दों का प्रयोग करते थे, जो मेंटल प्रेशर बढ़ा रहे थे। ऐसा ही कुछ वाकया दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही सिमरन के साथ भी हुआ, जिसने साल 2013 में उन्हें 'ए क्राई फॉर हेल्प' की नींव रखने के लिए प्रेरित किया। तीन चरणों में काम करती है संस्था
'ए क्राई फॉर हेल्प' टीनएजर्स हे¨ल्पग टीनएजर्स के सिद्धांतों पर काम करती है। इसमें तीन चरणों में बच्चों को प्रशिक्षित किया जाता है। पहला चरण जागरूकता का है, जिसमें फ्लैश मॉब और स्ट्रीट प्ले के जरिये जागरूक किया जाता है। दूसरा चरण वर्कशॉप व तीसरा चरण वन टू वन काउंस¨लग होता है। युवाओं के इस प्रयास को गति देने में अशोका फाउंडेशन, रॉबर्ट बॉश फाउंडेशन, टीच फॉर इंडिया जैसी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी हाथ बंटा रही हैं।
मेरी कोशिश है कि बतौर छात्र जिस कठिन दौर से मैं गुजरा हूं, अन्य बच्चे न गुजरें। कुछ वर्षों में स्कूलों में बु¨लग और रै¨गग की स्थिति में जरूर सुधार हुआ है, लेकिन मेंटल स्ट्रेस एक चुनौती की तरह है, जिससे हम सबको लड़ना होगा।
-प्रितिश भवनानी मेंटल स्ट्रेस एक साइलेंट किलर की तरह काम करता है और ऐसी परिस्थिति में टीनएजर्स बड़ों से बात करने में हिचकते हैं। हमारा प्रयास ज्यादा से ज्यादा ऐसे बच्चों तक पहुंचना और उन्हें बेहतर ¨जदगी के लिए प्रेरित करना है।
-सिमरन रावत