प्रदेश व देश की सियासत का केंद्र था भारत यात्रा केंद्र
आदित्य राज, गुरुग्राम अरावली पहाड़ी की गोद में जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर बसा भा
आदित्य राज, गुरुग्राम
अरावली पहाड़ी की गोद में जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर बसा भारत यात्रा केंद्र कभी सियासत का भी केंद्र था। इसकी स्थापना पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर ने की थी। उन्होंने अपने प्रधानमंत्रित्व काल का अधिकतर समय प्रधानमंत्री निवास की बजाय केंद्र में ही बिताया। हरियाणा के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में से एक स्व. चौधरी देवीलाल उपप्रधानमंत्रित्व काल के दौरान भी चंद्रशेखर के साथ केंद्र में साये की तरह रहे थे। बताया जाता है कि दोनों नेताओं के बीच जितना तालमेल था उतना तालमेल कभी भी किसी भी नेता के बीच नहीं दिखा।
सोहना रोड गांव भोंडसी स्थित भारत यात्रा केंद्र को भोंडसी आश्रम भी कहा जाता है। प्रधानमंत्री बनने से पहले भी एवं प्रधानमंत्री के पद से हटने के बाद भी चंद्रशेखर ने आश्रम से ही अपनी राजनीति की दिशा तय की। मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए भी पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल आश्रम में चंद्रशेखर से विचार-विमर्श करने के लिए पहुंचा करते थे। इस तरह प्रदेश की सत्ता की दिशा भी आश्रम से तय होती थी।
हरियाणा के अधिकतर नेता पहुंचे थे आश्रम
भले ही चंद्रशेखर की चौधरी देवीलाल से विशेष नजदीकी थी लेकिन उनका लगाव हरियाणा के सभी नेताओं के साथ था। उनसे मिलने के लिए भोंडसी आश्रम में हरियाणा के दिग्गज राजनीतिज्ञ पूर्व मुख्यमंत्री स्व. चौधरी बंसीलाल एवं स्व. चौधरी भजनलाल से लेकर इनेलो सुप्रीमो पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी ओमप्रकाश चौटाला तक समय-समय पर जाया करते थे। इस वजह से हरियाणा की राजनीति पर उनकी गहरी छाप थी।
पदयात्रा के दौरान लिया आश्रम बनाने का निर्णय
देश में पानी की कमी न हो, इसके लिए लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए चंद्रशेखर ने कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद स्मारक से छह जनवरी 1983 से पदयात्रा शुरू की थी। लगभग 4200 किलोमीटर की पदयात्रा की। समापन 25 जून 1984 को दिल्ली के राजघाट पर किया। यात्रा के दौरान वे कई स्थानों पर ठहरे। कुछ जगहों पर उन्होंने अपने विचारों का केंद्र बनाया। इनमें से एक है गांव भोंडसी स्थित भारत यात्रा केंद्र। बाद में यह केंद्र सियासत का केंद्र बन गया था। भोंडसी गांव पंचायत के आग्रह पर ही चंद्रशेखर ने केंद्र गांव में बनाने का निर्णय दो अप्रैल 1984 को लिया था। पंचायत ने पहले लगभग 88 एकड़ जमीन दी थी। बाद में लगभग 500 एकड़ जमीन और वन क्षेत्र विकसित करने के लिए दी थी। जिस जगह पर केंद्र है वह उस समय पूरी तरह उजाड़ था। यहां तक की ¨झगुर की आवाज तक सुनाई नहीं देती थी। चंद्रशेखर ने जमीन समतल कराई। हजारों पौधे अपने हाथों से लगाया। उनके प्रयास से आश्रम में देश के किसी भी जंगली इलाकों से भी अधिक हरियाली है। शायद ही कोई पक्षी न हो। पूरा वातवरण पीहू-पीहू की आवाज से गुंजता रहता है। साढ़े छह हजार से अधिक आम, आंवले एवं अन्य प्रकार के फलदार पेड़ हैं। एक बड़ा गोशाला है। आश्रम में ही एक दूसरे के पूरक थे चंद्रशेखर व देवीलाल चंद्रशेखर एवं देवीलाल के निकटतम सहयोगी रहे सामाजिक कार्यकर्ता सुधींद्र भदौरिया कहते हैं कि दोनों इतिहास पुरुष थे। दोनों हर पल देश व प्रदेश के विकास के बारे में भी सोचा करते थे। दोनों की सोच लगभग बराबर थी। राजनीतिक दृष्टिकोण से आश्रम को सत्ता का केंद्र भले ही कहा जाता हो लेकिन आश्रम में वैचारिक मुद्दों के ऊपर ही हमेशा चर्चा की गई। पीने के पानी की समस्या, शिक्षा, महिला सशक्तीकरण, सांप्रदायिक सद्भाव, पिछड़े वर्ग का विकास कैसे हो, इस बारे में ही चर्चा चलती थी। आज उन्हीं मुद्दों पर पूरे देश में काम चल रहा है। पीने के पानी की समस्या से हरियाणा से लेकर कई राज्य ग्रस्त हैं। उनकी सोच के तहत हरियाणा में काफी काम किया गया। आज भी कई विषयों पर उनकी सोच के तहत ही काम चल रहा है।
हरियाणा सहित पूरे देश में एक समान विकास चाहते थे
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के रिश्तेदार सामाजिक कार्यकर्ता अरिदमन ¨सह बिल्लू कहते हैं कि हरियाणा से उनका बेहतर लगाव था। वह हरियाणा का विकास के पथ पर चलता देख काफी खुश थे। वह चाहते थे कि देश के सभी राज्य हरियाणा की तरह ही विकास पथ पर तेजी से चले। उनके व्यक्तित्व में जबर्दस्त आकर्षण था। जो एक बार मिलता था उनका होकर हो जाता था। वह दोस्तों के दोस्त थे। आश्रम से उनका इतना लगाव था कि प्रधानमंत्री बनने से पहले और प्रधानमंत्री के पद से हटने के बाद भी जीवन के लगभग अंतिम समय तक उसी में रहे।