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छठ पूजा को लेकर प्रवासी परिवारों द्वारा तैयारियां शुरू, छठ मैया का व्रत आज से शुरू

दीपावली के बाद छठ पूजा का पर्व बिहार राज्य सहित कई पूर्वी राज्यों में बड़ी श्रद्धा व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बिहार व उत्तर प्रदेश सहित पूर्वी राज्य के लोग भी यहां रहते हुए इस पर्व को प्रत्येक वर्ष श्रद्धापूर्वक मनाते आ रहे है। इस वर्ष यह पर्व 20 नवंबर को मनाया जा रहा है। जिसके लिए इन प्रवासी परिवारों ने छठ पूजा के व्रत को लेकर तैयारियां शुरू कर दी है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 07:06 AM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 07:06 AM (IST)
छठ पूजा को लेकर प्रवासी परिवारों द्वारा तैयारियां शुरू, छठ मैया का व्रत आज से शुरू
छठ पूजा को लेकर प्रवासी परिवारों द्वारा तैयारियां शुरू, छठ मैया का व्रत आज से शुरू

संवाद सहयोगी, टोहाना

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दीपावली के बाद छठ पूजा का पर्व बिहार राज्य सहित कई पूर्वी राज्यों में बड़ी श्रद्धा व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। बिहार व उत्तर प्रदेश सहित पूर्वी राज्य के लोग भी यहां रहते हुए इस पर्व को प्रत्येक वर्ष श्रद्धापूर्वक मनाते आ रहे है। इस वर्ष यह पर्व 20 नवंबर को मनाया जा रहा है। जिसके लिए इन प्रवासी परिवारों ने छठ पूजा के व्रत को लेकर तैयारियां शुरू कर दी है।

छठी मईया का पर्व मनाने के लिए श्रद्धालु घाट में उतरकर जहां छठी मईया की पूजा अर्चना करते है वहीं जल में खड़े होकर सूर्य को अ‌र्घ्य देना भी इसी पर्व की मुख्य प्रक्रिया है।

टोहाना में रेलवे रोड व चंडीगढ़ रोड पर स्थित फतेहाबाद डिस्ट्रीब्यूट्री इन प्रवासी परिवारों के लिए छठ पूजा के लिए मुख्य स्थान रहता है। इस समय इस नहर में पानी बंद है और जो पानी नहर में खड़ा है, वह पानी गंदला हो गया है। इन प्रवासी परिवारों को मजबूरन ऐसे हालातों में भी छठ पूजा करने को मजबूर होना पड़ेगा।

हालांकि इस नहर में खड़े पानी के साथ-साथ ईट व पत्थर भी इन श्रद्धालुओं के लिए बाधक बनते है। प्रगाढ़ आस्था के चलते ज्यादातर संख्या में अनपढ़ व गरीब लोग जैसे-तैसे श्रद्धापूर्वक इस व्रत को पूरा करते है।

इस पर्व को लेकर प्रशासन द्वारा कोई साफ-सफाई के इंतजाम ना किये जाने से इन श्रद्धालुओं में प्रदेश में रहते हुए अपनी आवाज उठाने की भी हिम्मत नहीं होती।

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उल्लेखनीय है कि छठ पर्व बिहार सहित पूर्वी राज्यों में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है, जिसके चलते प्रशासन द्वारा भी वहां व्यापक प्रबंध किये जाते हैं। टोहाना क्षेत्र में लगभग 40-50 परिवार के लोग जोकि बिहार व उत्तरप्रदेश राज्यों से यहां आकर राईस मिलों व अन्य उद्योगों में नौकरियां व मजदूरी का कार्य करते हैं, वह प्रत्येक वर्ष इस पर्व को मनाना नहीं भूलते।

इस वर्ष यह पर्व 20 नवंबर को मनाया जा रहा है। इसके लिए जहां अभी से तैयारियां शुरू कर दी गई है वहीं 18 नवंबर से कार्तिक शुक्ल मास की चतुर्थी से छठी मईया का व्रत शुरू किया जाता है। महिलाएं सुबह से दोपहर 12 बजे तक व्रत रखने के बाद नहाने व खाने का कार्य करती है। इसमें व्रती को चावल व घीया का भोजन करना होता है। जबकि 19 नवंबर को पूरे दिन व्रत बिना अन्न-जल के रखा जाता है। सांय को रोटी व खीर का भोजन किया जाता है। जिसे खरना भी कहा जाता है। 20 नवंबर को पूरा दिन बिना अन्न-जल के व्रत रखकर सांय को अस्ताचलगामी सूर्य को पानी में खड़ा होकर अ‌र्घ्य दिया जाता है। जबकि पूरी रात व्रत रखकर अगले दिन सुबह सूर्य उदय होने पर अ‌र्घ्य दिया जाता है। उसके बाद व्रती अपना व्रत खोलता है।

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पुत्र की प्राप्ति व लंबी आयु के लिए किया जाता है व्रत

चंदड़कलां स्थित एमयूएस जैन कालेज के प्राचार्य डा. परशुराम का कहना है कि छठी मईया के पर्व पर रखा जाने वाला व्रत पुत्र की प्राप्ति व पुत्र की लंबी आयु के लिए किया जाता है। उन्होंने बताया कि जिस तरह से दीपावली पर्व से पूर्व हरियाणा-पंजाब में महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती है, उसी तरह छठ को भी बिहार व उत्तरप्रदेश राज्य में महिलाओं द्वारा व्रत किया जाता है। उन्होंने बताया कि छठ मईया का व्रत रख सूर्य को अ‌र्घ्य देने के पीछे यह भी मानना है कि महिलाएं प्रार्थना करती है कि हमें सूर्य के तेज के समान तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हो। इसलिए पुत्र की प्राप्ती व पुत्र होने के बाद उसकी लंबी आयु के लिए महिलाओं द्वारा यह व्रत किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस दौरान यदि महिलाएं अस्वस्थ हो तो उनकी जगह उनके पति भी व्रत रख लेते हैं।

इन नियमों की करनी हेाती है पालना

उन्होंने बताया कि यदि पूजा आदि के लिए घाट की कोई व्यवस्था ना हो तो इसके लिए एक अस्थायी तालाब बनाया जाता है। जिसमें पानी छोड़ा जाता है और उसके किनारे बेदी बनाकर पूजा अर्चना की जाती है। इस व्रत में जहां व्रती को जमीन पर सोना होता है वहीं ब्रह्मचार्य का पालन व संयम रखना भी बहुत आवश्यक है। वहीं व्रती द्वारा नये वस्त्र पहने जाते हैं। जबकि इस दौरान बच्चों की देखरेख करना व उन्हें नहलाने का कार्य पुरुषों द्वारा किया जाता है। जबकि व्रत के दिनों में पुराने गैस चूल्हे की बजाय नया मिट्टी से तैयार किया गया चूल्हा ही भोजन बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

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100 से अधिक परिवार मनाते हैं छठ का त्योहार

टोहाना क्षेत्र में इन व्रती महिला-पुरूष श्रद्धालुओं की संख्या सौ से अधिक हो जाती है। यह परिवार छठ पर्व के दिन बैंड बाजों के साथ हाथ में फल व प्रसाद की थालियां सजाकर घाट तक पहूंचते है। वहीं बच्चों द्वारा आतिशबाजी की जाती है। इस पूजा अर्चना की रस्मे देखने के लिए स्थानीय लोगों की भीड़ भी नहर किनारे लग जाती है। वहीं डीजे की धुनें तथा छठ मईया के गीतों से वातावरण गूंजने लग जाता है। इस बार कोरोना महामारी के चलते इन प्रवासी परिवारों ने अपने बच्चों को आतिशबाजी ना करने को कहा है। वहीं कोविड-19 नियमों की पालना करने के लिए भी निवेदन किया गया है ताकि छठ पर्व पर शांतिपूर्वक छठ पूजा की रस्में अदा की जा सके।


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