श्रीमान, दिव्यांग नहीं विपरीत हवा के खिलाफ विजेता हैं
जागरण संवाददाता फतेहाबाद वैसे दिव्यांग व्यक्ति को किसी के आश्रित समझा जाता है। दिव्यांग होन
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद : वैसे दिव्यांग व्यक्ति को किसी के आश्रित समझा जाता है। दिव्यांग होने पर लोग उसे दया दृष्टि की नजर से देखते है। परंतु जिले के अनेक दिव्यांग इस धारणा को तोड़ रहे हैं। गांव से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। इनमें से कई जन्मजात तो कुछ दुर्घटना के चलते दिव्यांग हुए हैं। फिर भी अपने कठोर अभ्यास के बल नेशनल ही नहीं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीते चुके। यूं कहे कि इन्होंने दिव्यांग होने के बाद भी विपरीत हवा के खिलाफ विजेता बने है। मध्यमवर्गीय किसान परिवार से जुड़े ये खिलाड़ी अब दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं छोटे से गांव से निकलकर बने भारतीय टीम के कप्तान बने रविद्र कंबोज :
रतिया क्षेत्र के गांव नांगल के रविद्र कंबोज भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम के 11 साल से कप्तान हैं। उनकी कप्तानी में दिव्यांग टीम अब तक 80 में से 72 मुकाबले जीत चुकी है। रविद्र छोटे से गांव से निकलकर भारतीय टीम के कप्तान बने हैं। उनका कहना है कि भारतीय दिव्यांग टीम अभी तक एक भी द्विपक्षीय सीरिज नहीं हारी। रविद्र का वर्ष 2003 में हराचारा काटने वाली मशीन से एक हाथ कट गया था। किसान परिवार से होने के कारण शुरुआत में आगे बढ़ने में बहुत अधिक परेशानी आई।
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सुरेंद्र ढाका तैराकी के लिए लिया ऋण :
गांव भूथनकलां के छोटे से किसान परिवार में संबंध रखने वाले सुरेंद्र ढाका जन्म से दिव्यांग है। अब वे तैराकी में अनेक पदक जीत चुके है। परंतु शुरुआत में उन्हें बहुत परेशानी आई। सुरेंद्र ने बताया कि उन्होंने गांव के तालाब में तैराकी शुरू की। इसके बाद प्रतियोगिता में भाग लेने लगा। जब प्रदेश स्तर की प्रतियोगिता जीतकर नेशनल के लिए खेलना जाना पड़ा। तो रुपयों की समस्या आ गई। जिसमें ऋण लेकर खेलने गया। इसके बाद नेशनल से स्वर्ण पदक जीतने के बाद वर्ष 2015 में रशिया में आयोजित पैरा इंटरनेशल प्रतियोगिता में चयन हो गया। जिसमें जमीन पर ऋण लेकर प्रतियोगिता में भाग लिया व कांस्य पदक जीता। सुरेंद ने पिछले 8 सालों में पैरा नेशनल गेम में 10 गोल्ड, 3 सिल्वर, 2 ब्रांच पदक जीत चुके हैं। उन्होंने 120 घंटे लगातार पानी में तैरकर नेशनल रिकार्ड बनाया हैं। सुरेंद्र ने बताया कि गत वर्ष गुजरात में 29 नवंबर से 3 दिसंबर तक 5 दिवसीय नॉन स्टॉप मैराथन का आयोजन किया गया। जिससे उन्होंने गोल्ड पदक जीता।
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चारा काटते समय कट गया था अमित का हाथ
भट्टूरोड निवासी अमित का वर्ष 2008 में पशुओं के लिए हरा काटने वाली मशीन से हाथ कट गया था। पहले तो सेना में जाने की इच्छा थी, लेकिन हाथ कटने के बाद उम्मीद ही खत्म हो गई। वर्ष 2010 के बाद फिर से खेलना शुरू किया। अमित वर्ष 2014 से नेशनल पैरा चैंपियनशिप में भाग लेते हुए ट्रिपल जंप में लगातार स्वर्ण पदक जीत रहे हैं। गत वर्ष तो उन्होंने लांग जंप व ट्रिपल जंप दोनों में पदक जीते। अब तक 9 विश्व की विभिन्न प्रतियोगिता में भाग ले चुके है। वर्ष 2017 लंदन में आयोजित पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीता।
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बाक्सिग खिलाड़ी उर्मिला एक्सीटेंड के बाद बनी जैवलिन थ्रो खिलाड़ी
गांव लाली की उर्मिला बाक्सिग की खिलाड़ी थीं। वर्ष 2013 में स्कूटी चलाते हुए एक्सीटेंड हो गया था। जिससे बाद उन्होंने खेलना छोड़ दिया। इसके बाद कोच सुंदर सिहाग की संपर्क में आई। कोच ने उन्हें पैरा गेम की तैयारी करवाई। उसके बाद उर्मिला ने गत वर्ष लांग जंप व 4 गुणा 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीते। अब भी खेलों के लिए तैयारी कर रही है।
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सिलोचना ने पोलियो को दी मात
गांव बनावाली की सिलोचना ने 38 वर्ष की आयु में पैरा खेलों में भाग ले रही है। कोच सुंदर सिहाग ने बताया कि सिलोचना को जन्म से एक पैर में पोलियो है। वह वर्ष 2015 में महिला बाल विकास विभाग द्वारा आयोजित खेलों में मटका दौड़ में भाग लेने आई थी। उस दौरान उनकी मुलाकात हुई। सिलोचना ने गत नेशनल पैरा की प्रतियोगिता में भाग लेते हुए जैवलीन थ्रो में स्वर्ण पदक जीता। अब सिलोचना अपने बेटे व बेटी के साथ खेलों की तैयारी कर रही है।
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प्रदेश सरकार ने खेलों को बढ़ावा देने वाली अनेक योजना शुरू की। जिसके चलते अनेक युवा खेलों भाग ले रहे हैं। अब तो अनेक दिव्यांग खिलाड़ी खेलने के लिए आ रहे हैं। जो अन्य खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बन गए।
- सुंदर सिहाग, वरिष्ठ कोच, जिला खेल एवं युवा कार्यक्रम विभाग।