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प्रेम अंधेरे जीवन की दृष्टि बन सकता है

मणिकांत मयंक, फतेहाबाद: प्रेम शाश्वत है। इस शब्दमात्र में ही एक मिठास है .. अजब सौंदर्य है

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Feb 2018 12:28 AM (IST)Updated: Wed, 14 Feb 2018 12:28 AM (IST)
प्रेम अंधेरे जीवन की दृष्टि बन सकता है

मणिकांत मयंक, फतेहाबाद: प्रेम शाश्वत है। इस शब्दमात्र में ही एक मिठास है .. अजब सौंदर्य है .. गजब की शीतलता है .. संपूर्ण सुकून है ..। प्रेम शब्द सुनने मात्र से ही हमारे प्राणों में एक तरंग उठने लगती है। कतई संगीत की तरह। शायद इसीलिए प्रेम भी संगीत है। प्रेम के सुर किसी की दृष्टि बन सकते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ था अस्सी के दशक में। एक दृष्टिबाधित प्रोफेसर के सितार से निकले संगीत के सुर से ऐसा अद्भुत प्रेम प्रस्फुटित हुआ कि वह ताउम्र दृष्टि बन गया। संगीत, प्रेम और दृष्टि की यह कहानी फतेहाबाद जिलांतर्गत राजकीय महिला महाविद्यालय से सेवानिवृत्त प्राचार्य रमेश शर्मा साइल की है। अपने जमाने में वह हरियाणा व आसपास के क्षेत्रों में सिद्धहस्त सितारवादक के तौर पर जाने जाते थे। बात उन दिनों की है जब साइल महेंद्रगढ़ स्थित राजकीय कालेज में बतौर संगीत प्राध्यापक नियुक्त थे। संगीत व कला के मर्मज्ञों का जमघट लगा रहता था। उन सुधीजनों में साइल के एक जानकार की बहन भी शामिल थीं। एक दिन वह अपनी छोटी बहन के साथ सितार सुनने आईं। साइल बताते हैं कि मधु नाम की उस लड़की ने कहा-एक गाना मेरे लिए भी गाओ-बजाओ। उन्होंने प्रेमगीत फिल्म के गाने के बोल-होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो .. गाया। प्रेमगीत के ये बोल मधु के दिल में उतरते चले गए और वह साइल की प्रेम-दीवानी हो गई। फिर दोनों का मिलना-जुलना शुरू हुआ। अब दृष्टिहीन और सनेत्र प्रेमी-युगल का यह प्रेम वैवाहिक मंजिल तलाश रहा था ..। पर, यह बेमेल विवाह इतना आसान तो नहीं था। इसका पूरा भान था दोनों को। सो, साइल की प्रेयसी मधु ने अपनी बड़ी बहन और अपने जीजाजी को शामिल कर शादी रचा ली। मधु बताती हैं कि ऑब्जेक्शन उठाने वालों को इत्तला ही नहीं दी। बाद में उनका छोटा भाई आया था। साइल की पर्सनैलिटी देख सभी प्रभावित हुए। और धीरे-धीरे सब नॉर्मल हो गया। अब वह पिछले करीब साढ़े तीन दशक से साइल की दृष्टि बनी हुई हैं।

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--कभी कमी महसूस नहीं हुई

दृष्टिबाधिता को आत्मसात कर चुके रमेश शर्मा साइल बताते हैं कि उन्हें मधु के रूप में समर्पित जीवनसंगिनी मिली। ऐसा कोई पल नहीं आया जब उन्होंने कोई कमी महसूस की हो। अव्वल तो कई बार लोग कहते हैं कि आापमें यह दोष ही नहीं है। यह तो मधु व साथियों के सहयोग का प्रतिफल है कि गजल जैसी विधा पर तीन किताबें प्रकाशित कर चुका हूं। ढाई आखर प्रेम की दृष्टि से सारी ¨जदगी रोशन रही।

---एक वाकया बताती हूं। जब इनसे पहली बार संगीत सुनने गई तो इनके घर में नये पर्दे लगे थे। घर गजब का सजा रखा था। कोई कह नहीं सकता था कि यह एक ब्लाइंड का घर है। यही नहीं, मैं बच्चों को लेकर खड़ी रहती और ये गेट पर ताला लगाते। कई बार एक कुशल इंजीनियर की तरह खुद ही वा¨शग मशीन ठीक कर देते हैं। सब्जी तक काट देते हैं। मैं इनके साहचर्य पर गर्व करती हूं। जिन दिनों सामाजिक कार्यो से जुड़ी थी उन दिनों भी एक-दूसरे का आत्मबल रहा।

- मधु शर्मा, पत्नी।


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