स्वप्न 'विराट' पर व्यवस्था नहीं दे रही साथ
राजेश भादू, फतेहाबाद : प्रदेश सरकार की खेलों को बढ़ावा देने की नीति धरातल पर काम नह
राजेश भादू, फतेहाबाद :
प्रदेश सरकार की खेलों को बढ़ावा देने की नीति धरातल पर काम नहीं कर रही। खेल विभाग ने पिछले पांच सालों में खिलाड़ियों के लिए सामान ही नहीं खरीदा। लगातार महंगे हो रहे खेल सामान ने खिलाड़ियों को मैदान से दूर कर कर रही है। जिला खेल स्टेडियम में ही खिलाड़ियों के पास सामान नहीं है। ऐसे में खेल स्टेडियमों का बुरा हाल हो गया है।
खेल स्टेडियम में पहले खिलाड़ी सामान के कारण ही जाते थे। गरीब व वंचित परिवारों के युवा खेल स्टेडियम में सामान के चलते ट्रे¨नग लेन जाते थे, लेकिन अब उन्हें खेल का सामान ही नहीं मिल रहा। खेल विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हाई पावर परचेज कमेटी ने कंपनियों को सामान खरीदने के लिए टेंडर जारी कर दिया हैं, लेकिन अभी तक सामान उनके पास नहीं पहुंचा।
खेल विभाग के कोच भी मानते है कि पहले खिलाड़ी सामान के लिए ही आते थे। जो खिलाड़ी गरीब परिवार से होगा वो ही बढि़या खिलाड़ी बनेगा। खेल स्टेडियम में हॉकी, क्रिकेट, फुटबॉल में खेल सामान की बहुत अधिक जरूरत पड़ती है। क्रिकेट की एक बॉल 800 रुपये की आती है। इसी तरह फुटबाल खिलाड़ी विनय का कहना है कि जब उन्हें तैयारी के लिए 24 से अधिक बॉल की एक साथ जरूरत पड़ती है। हॉकी में भी खिलाड़ियों के पास खेल के सामान का अभाव है। खिलाड़ी खुद की हॉकी व बैट तो लेकर आ सकते है, लेकिन बॉल खरीदना मुश्किल है। खिलाड़ियों का आरोप है कि प्रदेश सरकार एशियन खेलों में पदक विजेताओं को एचसीएस की नौकरी के साथ तीन करोड़ रुपये देती है, लेकिन युवा खिलाड़ियों को आगे बढ़ने के लिए जिला खेल स्टेडियम में सामान भी नहीं है। इससे कोच व खिलाड़ी दोनों परेशानी आ रही है।
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ये भी परेशानी ऑल पॉवर डीसी को
जिला खेल विभाग में 100 रुपये खर्च करने के लिए उपायुक्त कार्यालय से मंजूरी लेनी पड़ती है। मामूली खेल का समान खरीदने के लिए उपायुक्त से मंजूरी लेनी पड़ती है। खेल विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि ऐसे में परेशानी आती है। खेल विभाग के एक कोच ने बताया कि खेल विभाग के लिए सरकार बजट कम जारी करती है, लेकिन जो बजट आता है उसे खर्च करने की पॉवर उपायुक्त को हैं। वे जिला खेल कमेटी के मुखिया होते हैं।
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सरकार व कोच दोनों के टारगेट हो निर्धारित : पूर्व डीएसओ
सेवानिवृत्त डीएसओ एवं राष्ट्रीय बॉ¨क्सग कोच सूबे ¨सह बैनीवाल का कहना है कि प्रदेश सरकार चाहिए कि खुद अपने टारगेट निर्धारित करने के साथ कोच को भी देने होंगे। चीन ने ओलंपिक 2028 व 2032 तक के टारगेट निर्धारित करते हुए खेलों पर काम किया जा रहा है। लेकिन यहां पर खेल का सामान खरीदने में भी देरी हो रही है। जबकि सबसे जरूरी खेलों का बढ़ावा देने के लिए युवा खिलाड़ियों का सहायता देनी ही होगी। सरकार को पदक विजेता खिलाड़ी को करोड़ों रुपये व एचसीएस देती हैं यदि धरातल पर ये बजट जारी हो तो देश के युवा पदकों की झड़ी लगा दे। इसके साथ खेल विभाग के कोच व शिक्षा विभाग में कार्यरत डीपीई व पीटीआइ की ड्यूटी निर्धारित करते हुए टारगेट दे कि उनको इतने खिलाड़ी हर तैयार करने होंगे। जब प्रत्येक विभाग में टारगेट निर्धारित है तो खेल विभाग में क्यों नहीं। बिना टारगेट निर्धारित किए कोई भी कर्मचारी काम नहीं करता।
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मैं विराट कोहली की तरह बड़ा खिलाड़ी बनाना चाहता हूं, लेकिन अब क्रिकेट की बॉल बहुत महंगी हो गई है। हम बैट व अन्य सामान तो खुद का ला सकते है, लेकिन बॉल खरीदनी मुश्किल है। एक बॉल 600 रुपये से लेकर 800 रुपये तक आती है। बॉल खरीदनी काफी मुश्किल है। इसलिए मेरी मांग है कि बॉल दिलवाई जाए।
- अमनदीप, युवा क्रिकेटर।
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हॉकी का मैदान व कोच है। हमारी अच्छी तैयारी हो रही है, लेकिन अब बॉल व हॉकी दोनों पिछले कुछ वर्ष से नहीं आ रही हैं। इससे तैयारी करने में परेशानी आती है। हॉकी खेल की तैयारी के लिए प्रत्येक खिलाड़ी के पास हॉकी स्टीक व बॉल होना जरूरी है, तभी सुबह व शाम को हम तैयारी कर सकते है। सरकार हमारी परेशानी का नहीं समझ रही।
- अर्जुन, युवा खिलाड़ी।
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ये सामान पूरे प्रदेश में खरीदा जाता है। पिछले कुछ वर्षों से सामान नहीं खरीदा गया। इसके लिए मैंने जिला स्तर पर दो से दिन बार यहां से पत्र भेज दिए है। - सुदेश कुमार, जिला खेल एवं युवा कार्यक्रम अधिकारी।