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घटिया क्वालिटी के नेट और पॉली हाउस ने कर्जदार किए किसान

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद: जिले के कई किसानों ने आय दोगुनी करने के लिए बैंकों से ऋण लेकर संरक्षित खे

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Jun 2018 10:27 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jun 2018 10:27 PM (IST)
घटिया क्वालिटी के नेट और पॉली हाउस ने कर्जदार किए किसान

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद: जिले के कई किसानों ने आय दोगुनी करने के लिए बैंकों से ऋण लेकर संरक्षित खेती के लिए पॉली हाउस व नेट हाउस लगाए थे। लेकिन लगाए गए नेट हाउस इतनी घटिया क्वालिटी के निकले कि गांरटी खत्म होने से पहले ही तेज हवा में फट गए। अब न तो नेट लगाने वाली कंपनी समाधान कर रही है और न ही संबंधित विभाग के अधिकारी सुनवाई कर रहे। इस तरह किसानों की आय तो दोगुनी नहीं हुई, लेकिन वे लाखों रुपये के कर्जवान अवश्य हो गए। अब बैंक अधिकारी रुपये की भरपाई के लिए नोटिस भेज रहे हैं। किसान हताश व निराश हैं, इसके लिए वे सरकार को जिम्मेदार मान रहे हैं। उनका कहना है कि अनुदान से कंपनी को फायदा पहुंचा है। किसान तो और अधिक कर्जवान हुआ। दरअसल, सरकार ने किसानों की आय को बढ़ाने के लिए बागवानी विभाग के मार्फत संरक्षित खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए किसानों को 65 फीसद तक नेट हाउस व पॉली हाउस लगाने पर अनुदान दिया जाता है। एक एकड़ में नेट हाउस लगाने पर 24 लाख रुपये खर्चा आता है, वहीं पॉलीहाउस 35 लाख रुपये तक। किसानों को लगता है कि वे संरक्षित खेती करेंगे तो उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। इस सोच के साथ जिले के कई किसानों ने नेट व पॉली हाउस लगाए। इसके लिए उन्होंने 8 लाख से लेकर 14 लाख रुपये तक बैंक से ऋण लिया। क्योंकि इस लगाने के लिए एक तिहाई हिस्सा किसान को देना पड़ता है। जो रकम अधिक होने के चलते उसे किसान बैंक से ऋण करवाकर कंपनी को रुपये देते है। केस एक :

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गांव ढांड के सुरेंद्र ने गत वर्ष एक एकड़ में ऋण लेकर नेट हाउस लगाया। एक साल में ही नेट हाउस कई जगह से उखड़ गया। सुरेंद्र का कहना है कि उसने तो आय दोगुनी करने के लिए नेट हाउस लगाया था। वह पिछले कई सालों से सब्जियों की खेती कर रहा है। उसे लगा कि नेट हाउस लगाने से और ज्यादा फायदा मिलेगा। लेकिन अब नेट हाउस का बीमा व गारंटी दोनों ही है। परंतु सुनवाई नहीं हो रही।

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केस दो :

गांव मेहुवाला के सुरेश ने तीन साल पहले एक एकड़ में नेट हाउस लगाया। लगाते ही तेज हवाओं में फट गया। जिससे नेट हाउस में लगाई हुई खीरे की फसल खराब हो गई। पीड़ित किसान का कहना है कि वो पिछले तीन सालों से कई बार बागवानी अधिकारी व कंपनी के पास शिकायत लेकर गया। लेकिन कोई सुनवाई नहीं। उन्होंने बताया 8 लाख 11 हजार रुपये बैंक से ऋण लिया। वहीं दो लाख रुपये पानी की टंकी व कमरा बनाने पर अतिरिक्त खर्च कर किए। ऐसे में उसके 10 लाख रुपये खर्च हो गए। बैंक वालों ने तो रुपये की वसूली के लिए चेक लगा दिए। नेट हाउस के लिए लगाया गया ऋण भरने के लिए फिर से ऋण लेना पड़ा। सुरेश का कहना है कि उनके गांव में चार नेट हाउस लगाए हुए थे। चारों ही तेज हवाओं में फटने के कारण खराब हो गए।

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केस तीन :

गांव चबलामोरी के किसान रविकांत मांझू ने ढाई साल पहले बैंक से ऋण लेकर एक एकड़ में नेट हाउस लगाया। गत मई में तेज हवाओं आने से नेट हाउस पूरी तरह से फट गया। जिससे उसमें लगाई खीरे की फसल खराब हो गई। रविकांत का कहना है कि तीन साल तक की नेट हाउस लगाने वाली कंपनी की गारंटी थी, लेकिन अब कंपनी के अधिकारी सुनवाई नहीं कर रहे, न ही बागवानी अधिकारी कंपनी पर कार्रवाई कर रहे।

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कई किसानों ने बेच दिए नेट हाउस और पॉली हाउस :

भूथनकलां में आठ किसानों ने नेट हाउस व पॉलीहाउस लगाए हुए थे। अब सिर्फ तीन ही बचे हैं। वैसे तो सरकार जब अनुदान देती है तो किसान सत्यापित पत्र लिया जाता है कि वे नेट हाउस व पॉलीहाउस को 10 साल तक उखाड़ेंगे नहीं, लेकिन जब नेट हाउस तेज हवाओं में फट कर खराब हो जाता है। उसके बाद न तो बीमा कंपनी उसे ठीक करवाती न ही बनाने वाली कंपनी। तो किसानों ने मजबूरी में उखाड़ कर उन्हें बेच दिया। किसानों का कहना है कि जो सरकार नेट हाउस 24 लाख रुपये में लगाती है, उसका सामान मार्केट में तीन से चार लाख रुपये का ही बिकता है। उसके बाद भी बैंक के पांच लाख रुपये बकाया रह जाते है। नेट हाउस और पॉली हाउस में अंतर

नेट हाउस जालीदार होता है। इसमें से हल्की धूप व हवा अंदर प्रवेश करती है। बारिश का पानी भी खेत में गिरता है। लेकिन पॉली हाउस टैंट की तरह बंद होता है। उसमें हवा, धूप या बारिश अंदर नहीं जा सकती। दोनों कीमत में करीब 12 लाख रुपये का अंतर है। नेट हाउस पर खर्च कम होता है।

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संरक्षित खेती करने वाले किसानों को नेट हाउस व पॉलीहाउस महंगे पड़ रहे है। खराब होने से उन्हें परेशानी आ रही है। इस बाबत कई किसान अक्सर उनसे मिलकर शिकायत करते है। सरकार नेट हाउस व पोलीहाउस के विकल्प की तलाश कर रही है।

- डा. रमेश यादव, अध्यक्ष किसान आयोग।


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