भट्टी से कंगन बनाने का हुनर सीखा तो दूर हुई गरीबी
करीब दस वर्ष पहले की बात है। बहुत गरीबी थी। मुझे लाख से कंगन बनाने के बारे में पता चला तो मैंने हस्तशिल्प सहकारी समिति से संपर्क किया। मैंने भट्टी पर कंगन बनाने का हुनर सीख लिया। बस तब से लगातार इसी काम से जुड़ा हूं। अब हालात बेहतर हैं। मुझ जैसे कई कारीगर हैं, जो अब अच्छा खासा कमा लेते हैं। बाजार में लाख के कंगन और आभूषणों की खूब मांग है।
अनिल बेताब, फरीदाबाद : सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेला गरीबों के लिए वरदान साबित हो रहा है। लाख से कंगन तथा चूड़ियां बनाने वाले कई कारीगर इस बात को लेकर खुश हैं कि ऐसे मेले उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठा रहे हैं। हुनर से रोजगार मिलने से आर्थिक तंगी झेलने वाले परिवारों के जीवन में निखार आया है।
झारखंड से ऐसे कई कारीगर सूरजकुंड मेले में आए हैं, जो कोयले की भट्टी पर लाख गला कर चूड़ियां तथा कंगन बना रहे हैं। कई ऐसे समूह भी हैं, जिन्होंने इन कारीगरों को प्रशिक्षित करके रोजगार देने में मदद की है। हस्तशिल्प सहकारी समिति से जुड़े झाबरमल भी इनमें से एक हैं, जिनके साथ कई कारीगर मेले में आए हैं। ये कारीगर लाख की चूड़ियां, कंगन के साथ कई आभूषण बनाते हैं। मेले में आई महिलाएं भट्टी पर ही अपनी पसंद के कंगन बनवा रही हैं। पेड़ की टहनियों से निकालते हैं लाख
पेड़ की टहनियों से लाख निकाला जाता है। सर्फ में इसे धोया जाता है। फिर इसे कढ़ाई में गला लेते हैं। गलाने के बाद एक आकार दिया जाता है। डंडी के आकार के लाख को फिर जरूरत के अनुसार भट्टी पर गलाकर चूड़ी या कंगन का रूप दे दिया जाता है। हमारे समूह से 500 से ज्यादा कारीगर जुड़े हैं, जो आभूषणों की डिजाइ¨नग का काम करते हैं। इस कारोबार से जुड़ने पर बहुत से लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरी है।
-झाबरमल, लाख की चूड़ी के निर्माता, स्टाल नबर 507 के संचालक। करीब दस वर्ष पहले की बात है। बहुत गरीबी थी। मुझे लाख से कंगन बनाने के बारे में पता चला तो मैंने हस्तशिल्प सहकारी समिति से संपर्क किया। मैंने भट्टी पर कंगन बनाने का हुनर सीख लिया। बस तब से लगातार इसी काम से जुड़ा हूं। अब हालात बेहतर हैं। मुझ जैसे कई कारीगर हैं, जो अब अच्छा खासा कमा लेते हैं। बाजार में लाख के कंगन और आभूषणों की खूब मांग है।
-शादाब, कारीगर।