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सूरजकुंड मेला, संडे और हाउ इज द जोश..

सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का आज तीसरा दिन है। संडे की सर्द और अलसाई सुबह है। मेला ग्राउंड में सुबह से ही सैलानियों का आना शुरू हो चुका है। सर्द हवाओं के बीच गर्म कपड़ों से लदे-ढके लोग मेले में गेट-नंबर एक, दो, तीन और चार से प्रवेश ले रहे हैं। पांच नंबर गेट तक वीआइपीज के लिए बना है। सुबह 11:30 बजे तक सूरज के काले बादलों की ओट में छिपे होने से दुकानदार थोड़े मायूस दिख रहे थे

By JagranEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 06:20 PM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 06:20 PM (IST)
सूरजकुंड मेला, संडे और हाउ इज द जोश..
सूरजकुंड मेला, संडे और हाउ इज द जोश..

सुधांशु त्रिपाठी, फरीदाबाद

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सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का आज तीसरा दिन है। संडे की सर्द और अलसाई सुबह है। मेला ग्राउंड में सुबह से ही सैलानियों का आना शुरू हो चुका है। सर्द हवाओं के बीच गर्म कपड़ों से लदे-ढके लोग मेले में गेट-नंबर एक, दो, तीन और चार से प्रवेश ले रहे हैं। पांच नंबर गेट तक वीआइपीज के लिए बना है। सुबह 11:30 बजे तक सूरज के काले बादलों की ओट में छिपे होने से दुकानदार थोड़े मायूस दिख रहे थे। वह सूरजकुंड मेले के आंगन में धूप खिलने के साथ ही मुस्कराने लगे हैं। चटक होती धूप के साथ ही हर शख्स मेले में आने की खुशी और खुमारी से लबरेज है। अपने परिजनों के साथ मेला देखने आ रहे बच्चों के अलावा युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है। यह देखकर सबका दिल यही कहता है, हाऊ इज द जोश..। अफ्रीकी लोक नृत्यों पर थिरके दर्शक

मेले की मुख्य चौपाल पर अफ्रीकी महाद्वीप के देशों जिम्बाब्वे, इथियोपिया व सूडान के कलाकार अपने पारंपरिक गीत, संगीत और नृत्यों से मेले में आए देशी-विदेशी आगंतुकों, जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों का मनोरंजन कर रहे हैं। सदियों तक नस्ली और रंगभेद के शिकार रहे इन देशों के प्रतिभाशाली कलाकार अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजोए रखने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। जिम्बाब्वे के कलाकार गांबा और गयासी का कहना है कि यह देश गांधी का है, जिन्होंने हमको आजादी और साफ-सफाई का महत्व समझाया। हम मेले में आकर बहुत ही खुश हैं। सरकार को ऐसे आयोजनों को बढ़ावा देना चाहिए जिससे लोक कलाकारों का भी कुछ भला हो सके। बहुरूपियों के संग सेल्फी की होड़

अरावली की पहाड़ियों के बीच करीब 40 एकड़ में फैले सूरजकुंड मेला ग्राउंड में शायद ही ऐसा कोई मोड़ हो जहां देश के विभिन्न राज्यों से आए बहुरूपिया कलाकारों की मौजूदगी न हो। श्रीराम, कृष्ण, महादेव, गणेशजी, हनुमान जैसे देवताओं के अलावा जिन्न, दीन-ए-इलाही अकबर, आदिवासी समाज का रूप धरे इन कलाकारों के साथ सेल्फी लेने का जबर्दस्त क्रेज युवाओं में साफ दिख रहा है। इनके साथ सेल्फी लेने में बच्चे और बुजुर्ग भी कहीं से पीछे नहीं दिख रहे हैं। वहीं दूसरी ओर मेले में आज संडे को दस से अधिक सेल्फी प्वाइंट्स पर भी युवाओं की लंबी कतारें दिख रही हैं। सांझी विरासत संजोने मेले में आएं

33वें सूरजकुंड मेले में पहली संडे की शाम होने को है। और अब दर्शकों की संख्या करीब 50 हजार तक पहुंच चुकी है। यहां आए हजारों सैलानी देश की माटी, लोक संस्कृति और बहुरंगी कलाओं की झलक इतने करीब से देखकर बेहद खुश नजर आ रहे हैं। कुछ लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को मेले की विविधता की जानकारी दे रहे हैं। वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपना अगला वीकेंड भी यहीं प्लान कर रहे हैं। वजह साफ हैं हम आम भारतीय अपनी जड़ों से जुड़ने में ही अपना और सबका कल्याण समझते हैं। सूरजकुंड मेला मानव सभ्यता की विकास की कहानी बताता है। इस मेले में हमारी सभ्यता हैं। इस मेले में हमारी संवेदनाएं हैं। इस मेले में हमारे सरोकार हैं। इस मेले में हिन्दुस्तान की सांझी विरासत है। इसको देखने, समझने और जानने के लिए आपको बस मेले में आना होगा।


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