जागरण संस्कारशाला :
यह बिल्कुल सत्य है कि परिश्रम ही जीवन का आधार है, सफलता की कुंजी है। परिश्रम उस प्रयत्न को कहा जाता है, जो किसी व्यक्ति द्वारा अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। निरंतर परिश्रम ही किसी व्यक्ति, जाति या देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। परिश्रम द्वारा कठिन से कठिन कार्य को भी संभव बनाया जा सकता है।
ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में मनुज नहीं लाया है,
अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है।
प्रकृति नहीं झुका करती है कभी भाग्य के बल से,
सदा हारती वह मनुष्य के उद्यम से, श्रमबल से।
हां, यह बिल्कुल सत्य है कि परिश्रम ही जीवन का आधार है, सफलता की कुंजी है। परिश्रम उस प्रयत्न को कहा जाता है, जो किसी व्यक्ति द्वारा अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। निरंतर परिश्रम ही किसी व्यक्ति, जाति या देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। परिश्रम द्वारा कठिन से कठिन कार्य को भी संभव बनाया जा सकता है। यदि मानव परिश्रम न करता तो आज भी आदि मानव ही होता। गीता में श्री कृष्ण ने भी कहा है-उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:- अर्थात उद्यम किए बना केवल इच्छा करने मात्र से ही लक्ष्य की पूर्ति नहीं होती। एक प्राचीन कहावत भी इसी बात को सिद्ध करती है कि जो मनुष्य पुरुषार्थ पर विश्वास कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मन वचन और कर्म से परिश्रम करता है, सफलता उसके कदम चूमती है।
प्रकृति का कण-कण भी इसी बात का उदाहरण है, जिस प्रकार सूरज अपने प्रकाश से अंधकार को दूर भगा देता है, ठीक उसी प्रकार परिश्रम मानव जीवन को सुखमय बना देता है। जिससे उसका जीवन उज्जवल हो जाता है। नन्ही सी चीटी को भी जीने के लिए परिश्रम करना पड़ता है।
महान कवि हरिवंशराय बच्चन द्वारा लिखित पंक्तियां भी इसी बात को पुष्ट करती हैं-
नन्हीं चीटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है।
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ता न अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
कठिन परिश्रम किए बिना किसी की उन्नति नहीं हो सकती और न ही किसी को सुख समृद्धि प्राप्त हो सकती है। सभ्यता के विकास का कारण भी हमारे पूर्वजों के परिश्रम का फल है। विश्व के सफलतम व्यक्तियों की जीवन कथा का यही संदेश है कि उन्होंने जीवन में हर चुनौती का सामना करते हुए अथक परिश्रम किया व असंभव को भी संभव कर दिखाया। खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़-राष्ट्र कवि दिनकर जी की यह पंक्तियां सचमुच परिश्रम का महत्व प्रतिपाठित करती है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जहां लोगों ने परिश्रम के बल पर अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया। महान विजेता नेपोलियन, अब्राहम ¨लकन, राइट बंधु व हेनरी फोर्ड जैसे व्यक्तित्व किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अपने देश में टाटा, बिड़ला या धीरू भाई अंबानी सब परिश्रम से ही बड़े बनें।
कवि तुलसीदास जी ने भी कहा है सकल पदारथ है जग मांही, कर्महीन नर पावत नाहीं। वस्तुत: यह बात बिल्कुल सत्य है। यदि महात्मा गांधी, सुभाषचंद बोस, वीर भगत ¨सह, सरदार पटेल व तिलक जैसे क्रांतिकारियों ने अथक परिश्रम न किया होता तो शायद हमारा देश आजाद भी नहीं हो पाता। आजादी के बाद भी यदि देशवासी परिश्रम न करते तो दुनिया की भीड़ में कहीं गुम हो जाते।
परिश्रम के महत्व पर जितना भी लिखा जाए, थोड़ा ही होगा। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के लिए लगन व कठिन परिश्रम आवश्यक है। आज सचिन हो चाहे सानिया मिर्जा या फिर अब्दुल कलाम ही क्यों न हों, सबने कठिन परिश्रम करके ही अपना स्थान बनाया। दूर क्यों जाएं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसी परिश्रम के बल पर आज विश्व के शिरोमणि नेताओं में गिने जाते हैं। माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने अकेले अपने दम पर पहाड़ों को काटकर सड़क बना दी और जलपुरुष डॉ.राजेंद्र ¨सह ने कई सूखी नदियों को फिर से हरा भरा कर दिया। आज ऐसे ही परिश्रमी लोगों की आवश्यकता है। वस्तुत: परिश्रम हर मनुष्य के लिए आवश्यक है।