सप्ताह का साक्षात्कार : सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले के जनक : एस.के.मिश्रा
प्रतिवर्ष लगने सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले ने अब अंतरराष्ट्रीय पहचान बना ली है। इस बार महाराष्ट्र थीम पर 31 देशों की भागीदारी के साथ यह मेला शुरू हुआ है। इसमें एक हजार से ज्यादा हस्तशिल्पी हिस्सा ले रहे हैं। 19
शीर्षक : सूरजकुंड में बने कला, संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर का स्थाई केंद्र : मिश्रा
परिचय
जन्म : वर्ष 1933 में उत्तर प्रदेश के कानपुर में
शिक्षा : कानपुर में 1940 से 1951 तक माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की
-1951 से 1955 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में बीए और एमए तक शिक्षा प्राप्त की
-1956 बैच के आइएएस अधिकारी बने
-पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रधान सचिव रहे
-केंद्र सरकार में पर्यटन सचिव रहे
-1987 सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले की शुरुआत कराई
-नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फैशन टेक्नोलाजी की स्थापना में अहम भूमिका
-हरियाणा में पर्यटन विकास के जनक
-2010 में राष्ट्रपति ने पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा
रूचि : पर्यटन प्रेमी एवं फोटोग्राफी का शौक प्रतिवर्ष लगने वाले सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले ने अब अंतरराष्ट्रीय पहचान बना ली है। इस बार महाराष्ट्र थीम पर 31 देशों की भागीदारी के साथ यह मेला शुरू हुआ है। इसमें एक हजार से ज्यादा हस्तशिल्पी हिस्सा ले रहे हैं। 1987 में इस मेले की शुरुआत महज 50 शिल्पियों से हुई थी और इसकी शुरुआत कराने वाले सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी पद्मभूषण एसके मिश्रा अब 86 साल के हो गए हैं। वे चाहते हैं कि मेला साल भर गुलजार रहे। मेला प्राधिकरण ने उन्हें इस बार उद्घाटन समारोह में सम्मानित भी किया। इस दौरान मेले के स्वरूप को लेकर विशेष संवाददाता बिजेंद्र बंसल ने एसके मिश्रा से खास बातचीत की, प्रस्तुत है इस बातचीत के प्रमुख अंश : मेले का स्वरूप बदल गया है, आप इसे किस तरह ले रहे हैं?
मेले का स्वरूप दर्शकों की चाहत के अनुसार बदला है। मेरे लिए तो यह मेला ठीक वैसे ही है जैसे एक पिता के लिए खुशहाल बच्चा होता है। मैं अभी तक इस मेले में प्रतिवर्ष आया हूं। सेवानिवृत्त होने से पहले मैं यहां के आयोजन से जुड़ा रहा, मगर बाद में भी मेरा इससे लगाव कम नहीं हुआ। आप मेला प्राधिकरण के सदस्य भी हैं, क्या इसके स्थाई स्वरूप की बाबत कोई बात नहीं हुई?
मैं मेला प्राधिकरण की सभी बैठकों में हिस्सा लेता हूं और वहां यह बात अवश्य उठती है कि मेला को स्थाई स्वरूप दिया जाए। मगर इसमें कुछ राजनीतिक इच्छा शक्ति से लेकर तकनीकी समस्याओं की बाधाएं सामने आती हैं। देखते हैं, क्या होता है मगर मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि इससे अधिक उत्तम जगह दिल्ली एनसीआर में मेला आयोजन के लिए नहीं है। मेला लगाने का विचार कैसे आया?
शुरुआत में तो सिर्फ इतना ही ध्यान किया था कि विलुप्त हो रही हस्तशिल्प कला को प्रोत्साहन देना है। हम चाहते थे कि शिल्पकार की वस्तुएं बिना बिचौलिए सही दाम पर बिक जाएं। कोई ज्यादा बड़ा संकल्प या विचार लेकर हमने इस मेले की शुरुआत नहीं की थी, मगर बाद में इसके प्रति दर्शकों का रुझान और हस्तशिल्पियों को मिले प्रोत्साहन के चलते हमारा उत्साह भी बढ़ गया। क्या आप नहीं मानते कि सूरजकुंड को साल भर के लिए गुलजार किया जा सकता है?
हां, मेरा तो यह सपना है कि सूरजकुंड साल भर गुलजार रहे और चाहता हूं कि मीडिया भी सिर्फ सूरजकुंड मेले के दौरान ही यह सवाल नहीं उठाए बल्कि इस सवाल को हर उचित प्लेटफार्म पर तब तक उठाया जाता रहे, जब तक यह जगह कला, संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर का संगम न बन जाए। बंद सभागारों में होने वाले जिन कार्यक्रमों में अभी तक दिल्ली एनसीआर के आम लोग हिस्सा नहीं ले पाते, उनसे बेहतर कार्यक्रम यहां साल भर हों, मेरी यह दिली इच्छा है।