देश के लिए जंग तो खूब जीती, पर आशियाने की लड़ाई हार गया
कैसी बदकिस्मती है देश के लिए दो बार जंग तो जीत ली पर अब अपने आशियाने की लड़ाई हार गया हूं। सेना में तो पता होता था कि दुश्मन कौन है पर अब यहां समझ नहीं आ रहा कि किसे दोषी बताऊं। अब बुजुर्ग अवस्था में हम कहां जाएंगे। कुछ इस तरह का दर्द बयां किया सेवानिवृत ब्रिगेडियर एमबी आनंद ने। वह पत्नी वीना आनंद संग कांत एन्क्लेव में 2004 से रह रहे हैं।
प्रवीन कौशिक, फरीदाबाद
देश के लिए दो बार जंग तो जीत ली, पर अब अपने आशियाने की लड़ाई हार गया हूं। सेना में तो पता होता था कि निशाना कहां साधना है, पर अब यहां समझ नहीं आ रहा कि किसे दोषी बताऊं। अब बुजुर्ग अवस्था में हम कहां जाएंगे। कुछ इस तरह का दर्द बयां किया सेवानिवृत ब्रिगेडियर एमबी आनंद ने। वह पत्नी वीना आनंद संग कांत एन्क्लेव में 2004 से रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार चूंकि यहां बने हुए निर्माण गिराए जाने शुरू हो गए हैं, इसलिए आनंद काफी आहत हैं।
आनंद के आशियाने को भी 31 जुलाई के बाद कभी भी गिराया जा सकता है। सोमवार को यहां हुई तोड़फोड़ को देख उनका दिल भर आया और आंखे नम हो गई। पत्नी वीना आंनद बार-बार दिलासा देती रही। एमबी आनंद के अनुसार सरकार से लाइसेंसशुदा वैध कॉलोनी में प्लॉट लिया, नक्शा पास कराया, रजिस्ट्री कराई, हाऊस टैक्स देते आ रहे हैं, इसके बावजूद आशियाने गिराए जा रहे हैं। अब पदकों की चमक फीकी दिखने लगी
दैनिक जागरण से बात करते हुए ब्रिगेडियर एमबी आनंद ने राष्ट्रपति और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों द्वारा विभिन्न मौकों पर मिले पदक भी दिखाए और बोले कि अब यह किस काम के बचे हैं। इन्हें कौन पूछता है। एक फौजी को क्या सम्मान दिया जा रहा है, यह सभी देख रहे हैं।
बकौल आनंद, उन्होंने 1971 में सेकेंड लेफ्टिनेंट और 1999 में कारगिल की लड़ाई ब्रिगेडियर रहते हुए जंग लड़ी थी। सरकार ने पीठ थपथपाई। 2004 में सेवानिवृत होने के बाद सोचा अब चैन से जिदगी गुजर-बसर करेंगे, पर अब आशियाना ही नहीं रहेगा तो कहां जाएंगे। यहां मुख्य रूप से बुजुर्ग दंपति ही रहते हैं, इनके बच्चे विदेशों में रह रहे हैं। इस उम्र में कहीं और प्लॉट लेकर मकान बनाने की हिम्मत नहीं बची है। एमबी आनंद ने कहा कि वो भगवान से प्रार्थना करता हैं, ऐसा किसी और के साथ न हो।