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रविदर गुप्ता ने वकालत को बनाया शोषण के विरुद्ध हथियार

सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर झोले में उसके पास कोई संविधान है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 06:53 PM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 06:53 PM (IST)
रविदर गुप्ता ने वकालत को बनाया शोषण के विरुद्ध हथियार
रविदर गुप्ता ने वकालत को बनाया शोषण के विरुद्ध हथियार

हरेंद्र नागर, फरीदाबाद : सेक्टर-29 निवासी एडवोकेट रविदर गुप्ता ने आजीविका के लिए वकालत शुरू की थी, मगर अब वे इसका इस्तेमाल समाज के लाचार, पिछड़े व वंचित वर्ग को शोषण से निजात दिलाने के लिए एक हथियार के रूप में भी कर रहे हैं। प्रैक्टिस से बचा समय बुजुर्गों व पिछड़े वर्ग के नागरिकों को देते हैं।

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रविदर गुप्ता करीब 25 साल से जिला अदालत में प्रैक्टिस कर रहे हैं। प्रैक्टिस के दौरान उनके संज्ञान में आया कि समाज में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो शोषित हैं। उन्हें अपने अधिकारों या सरकारी योजनाओं का पता नहीं। उन्होंने ऐसे लोगों को शोषण से मुक्त कर न्याय दिलाने की ठानी। साल 2011 में वे जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण से पैनल एडवोकेट के रूप में जुड़े। प्राधिकरण की सहायता से उन्होंने अपनों के हाथों शोषित हो रहे बुजुर्गो के पुनर्वास का बीड़ा उठाया। अब तक वे सौ से अधिक बुजुर्गो का पुनर्वास करा चुके हैं।

बकौल रविदर गुप्ता, अधिकतर मामलों में बुजुर्ग बेटे-बहू से प्रताड़ित होकर घर से निकाल दिए जाते हैं। हमारी पहली कोशिश होती है कि बेटे-बहू को समझाएं और बुजुर्गों को वापस घर भेजें। उनके बीच का विवाद खत्म करें। अगर ऐसा संभव नहीं होता, तो बुजुर्गो को वृद्धाश्रम में रहने की व्यवस्था कराई जाती हैं। इसके बाद अदालत से उन्हें बेटे-बहू से मेंटिनेंस दिलाते हैं। रविदर याद करते हुए बताते हैं कि हाल ही में एक मामला आया था। इसमें बुजुर्ग दंपती को प्रताड़ित कर बेटे-बहू ने घर से निकाल दिया था। मामला संज्ञान में आया, तो उन्होंने दंपती से बात की। पता चला कि बेटे-बहू ने सारी प्रापर्टी अपने नाम कराकर उन्हें घर से निकाला है। रविदर ने बेटे-बहू की काउंसलिग की। उन्हें समझाया कि कल को उन्हें भी बुजुर्ग होना है। बात उनके समझ आ गई। उन्होंने प्रापर्टी वापस बुजुर्ग दंपती के नाम कराई। अब दोनों परिवार के साथ राजी-खुशी हैं। ऐसे कई उदाहरण उनके पास हैं। एक साल में 100 से अधिक शिविर :

रविदर गुप्ता बताते हैं कि समाज के शोषित, वंचित और आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों को अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी नहीं है। वे शोषित होते रहते हैं, मगर आवाज नहीं उठा पाते। ऐसे नागरिकों को जागरूक करने के लिए वे जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण से ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में शिविर लगाते हैं। एक साल में वे 100 से अधिक ऐसे शिविर लगाते हैं। इस बार कोरोना संक्रमण को लेकर लागू लाकडाउन से शिविर नहीं लगा। नागरिकों को समझाया जाता है कि किसी भी शोषण के विरुद्ध वे कैसे आवाज उठा सकते हैं। उनके लिए सरकार की योजनाओं की जानकारी देते हैं। उनका प्रयास रंग ला रहा है। जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण से सहायता लेने वालों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।


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