राजा नाहर ¨सह की वीरता का अंग्रेज भी मानते थे लोहा
बल्लभगढ़ का इतिहास राजा नाहर ¨सह की बहादुरता और शौर्य से भरा हुआ है। जब भी यहां के लोग राजा नाहर ¨सह के इतिहास के बारे में पढ़ते हैं, तो उनका
सुभाष डागर, बल्लभगढ़ : बल्लभगढ़ का इतिहास राजा नाहर ¨सह की वीरता और शौर्य से भरा हुआ है। उनकी वीरता के किस्से सुनकर किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति में वतन के लिए मर मिटने का जज्बा पैदा होता है। उनसे सातवीं पीढ़ी पूर्व पैदा हुए उनके परदादा राजा बलराम उर्फ बल्लू के नाम से ही शहर का नाम बल्लभगढ़ पड़ा।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के महान क्रांतिकारी राजा नाहर का जन्म 6 अप्रैल 1821 को बल्लभगढ़ में राजा राम ¨सह के यहां पर हुआ। राजा नाहर ¨सह की वीरता और रणकौशल का अंग्रेज भी लोहा मानते थे। राजा नाहर ने घुड़सवारों की एक मजबूत और कुशल सेना तैयार कर पलवल से लेकर दिल्ली की गश्त करानी शुरू कर दी। दिल्ली पर अंग्रेजों का कब्जा था। राजा नाहर ¨सह का अंग्रेजी हुकुमत के साथ कई बार टकराव हुआ और हर बार अंग्रेजों को हार का स्वाद चखना पड़ा। वर्ष 1857 में अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने के लिए अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को दिल्ली के तख्त पर बैठा दिया। बहादुरशाह जफर की सुरक्षा और दिल्ली की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेवारी राजा नाहर ¨सह को सौंपी गई। अंग्रेजों ने चाल चलते हुए बहादुरशाह जफर से संधि करने के बहाने राजा नाहर ¨सह को बुलाया और लालकिले के अंदर घुसने के साथ ही गिरफ्तार कर लिया। उन पर पलवल के सरकारी खजाने में चोरी करने के झूठे आरोप में इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमा चलाया गया और 9 जनवरी, 1857 को राजा नाहर ¨सह और उनके तीन साथियों को दिल्ली के चांदनी चौक के लालकुआं पर सरेआम फांसी दे दी गई। उनकी स्मृति में शहीद राजा नाहर ¨सह पार्क में स्मारक बनवाया है। शहीद स्मारक पर उनके बलिदान दिवस और अन्य शहीदों के बलिदान दिवस पर पुष्प अर्पित किए जाते हैं।