राहे-हक पर चलने का संदेश देता है मुहर्रम का महीना
राहे-हक पर चलने वाले कभी मिटा नहीं करते, यकीं न हो तो तारीख-ए-कर्बला देख लो। कर्बला का इतिहास हजरत इमाम हुसैन की शहादत से जुड़ा है। मुहर्रम के महीने में हजरत इमाम हुसैन शहीद हुए थे। उन्हीं की शहादत को ताजा करते हुए जगह-जगह मजलिसों का आयोजन किया जाता है। विद्वान फरमाते हैं कि अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को यजीद झुकाना चाहते थे। यजीद चाहते थे कि हजरत इमाम उन्हें बड़ा माने, लेकिन हजरत इमाम अल्लाह को ही बड़ा मानते थे। वे यजीद के आगे झ़ुके नहीं और हक के लिए कुर्बान हो गए। हुसैन की याद में मातम मनाया जाता है तो कहीं प्रसाद बांटा जाता है। जुलूस भी निकाला जाता है।
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : राहे-हक पर चलने वाले कभी मिटा नहीं करते, यकीं न हो तो तारीख-ए-कर्बला देख लो। कर्बला का इतिहास हजरत इमाम हुसैन की शहादत से जुड़ा है। मुहर्रम के महीने में हजरत इमाम हुसैन शहीद हुए थे। उन्हीं की शहादत को ताजा करते हुए जगह-जगह मजलिसों का आयोजन किया जाता है। विद्वान फरमाते हैं कि अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को यजीद झुकाना चाहते थे। यजीद चाहते थे कि हजरत इमाम उन्हें बड़ा माने, लेकिन हजरत इमाम अल्लाह को ही बड़ा मानते थे। वे यजीद के आगे झ़ुके नहीं और हक के लिए कुर्बान हो गए। हुसैन की याद में मातम मनाया जाता है तो कहीं प्रसाद बांटा जाता है। जुलूस भी निकाला जाता है। मुहर्रम का महीना कर्बला के इतिहास से जुड़ा है। मुहर्रम के दौरान रोजा रखने का भी बड़ा सवाब है। जो इंसान यह रोजा रखता है, अल्लाह उनके साल भर के गुनाह माफ कर देते हैं। हदीस शरीफ में इसका जिक्र है। हम इस दिन प्यासे को पानी पिलाएं, गरीबों को खाना खिलाएं और सवाब कमाएं।
-मुफ्ती मुस्तिजाबुद्दीन, इमाम, ईदगाह मस्जिद, ओल्ड फरीदाबाद। अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मुहम्मद साहब ने दीन की रोशनी दिखाई तो उनके नवासे इमाम हुसैन ने शहादत देकर यह संदेश दिया कि झूठ के सामने सिर न झुकाओ, लेकिन हक के लिए कुर्बान तक हो जाओ। हम सबको मुहर्रम पर जरूरतमंद के काम आना चाहिए।
-हाजी कमरूद्दीन।