जब गिरफ्तारी के बाद पुलिया पर बैठ गई थीं इंदिरा
25 जून-1975 को इमरजेंसी लगाने और इसका विरोध करने वाले विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद कर यातनाएं देने प्रेस पर सेंसरशिप लागू करने और फिर 21 मार्च 1977 को इमरजेंसी हटाई गई तो देश के राजनीतिक हालात बदल चुके थे। ऐसे में जब लोकसभा के लिए चुनाव हुए तो मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी।
सुशील भाटिया, फरीदाबाद
21 मार्च 1977 को इमरजेंसी हटाई गई तो देश के राजनीतिक हालात बदल चुके थे। ऐसे में जब लोकसभा के लिए चुनाव हुए, तो मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। देश में पहली गैर कांग्रेसी पार्टी की सरकार बनने के कुछ समय बाद ही तीन अक्टूबर 1977 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें नजरबंद करने के उद्देश्य से फरीदाबाद की बड़खल झील के गेस्ट हाउस में लाया जा रहा था। बड़खल रेलवे क्रासिंग पर पुल नहीं बना था। जब इंदिरा गांधी को कड़ी सुरक्षा में साथ लिए पुलिस की गाड़ियों का काफिला वहां पहुंचा, तो फाटक बंद मिला। काफिला वहां रुका हुआ था। इसकी भनक फरीदाबाद के कांग्रेसियों को भी लग गई और वह बड़खल के पास इकट्ठे होने लगे। समर्थकों को वहां पाकर इंदिरा गांधी को बल मिला और बंद फाटक के कारण रुकी गाड़ी से नीचे उतरकर वहीं नाले पर बनी पुलिया पर बैठ गईं। खैर इंदिरा गांधी को गेस्ट हाउस में नजर बंद कर दिया गया।
सबूतों के अभाव में अगले दिन छोड़ना पड़ा
तब खुदाई खिदमतगार व एनआइटी के संस्थापक सदस्यों में से एक कन्हैया लाल और बाद में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष बने बीआर ओझा, पूर्व मंत्री एसी चौधरी व अन्य कांग्रेसियों ने हाथों में झंडे-बैनर लिए शहर की सड़कों पर विरोध मार्च निकाला। इस पर इन सभी को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। पूर्व मंत्री एसी चौधरी व खुदाई खिदमतगार के बेटे कांग्रेसी नेता बसंत के अनुसार इंदिरा जी की गिरफ्तारी के कारणों का कोई आधार नहीं था और अगले दिन जब कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, तो मजिस्ट्रेट ने भी भ्रष्टाचार संबंधी सबूत मांगे, जो पुलिस के पास नहीं थे। मजिस्ट्रेट ने गिरफ्तारी को गलत मानते हुए इंदिरा को रिहा करने के आदेश जारी किए।
गिरफ्तारी को मुद्दा बना खोई राजनीतिक जमीन वापस पाई
विषम परिस्थितियों में हुई गिरफ्तारी और फिर रिहा होने से इंदिरा गांधी को नई आक्सीजन मिली और एक बार फिर अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने की दिशा में जुट गईं। उच्च नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते जनता पार्टी टूट गई और 5 जुलाई 1979 को मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। ऐसे में कांग्रेस और सीपीआइ के समर्थन से किसान नेता चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री बने। जब सरकार को 20 अगस्त के दिन लोकसभा में अपना बहुमत साबित करना था, तब इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को ही यह घोषणा कर दी कि वह संसद में बहुमत साबित करने में साथ नहीं देगी। नतीजतन चौधरी चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा और 22 अगस्त 1979 को लोकसभा भंग कर दी गई। लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ और इंदिरा गांधी 14 जनवरी, 1980 को फिर से पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनीं।