पापा से नहीं मिला खिलौना देनी पड़ी चिता को मुखाग्नि
सुशील भाटिया, फरीदाबाद : कुदरत इंसान के साथ कैसे-कैसे खेल खेलती है। कब किस पल ¨जदगी क्य
सुशील भाटिया, फरीदाबाद : कुदरत इंसान के साथ कैसे-कैसे खेल खेलती है। कब किस पल ¨जदगी क्या करवट ले ले, किसी को कुछ नहीं पता। सोमवार को पांच वर्षीय बालक व्यांश के हाथों में पापा जितेंद्र चुघ उर्फ जतिन द्वारा लाया हुआ खिलौना होना चाहिए था, जिसके साथ वो घर के आंगन में खेलता, पर वो स्वर्गाश्रम(श्मशान घाट) में था, उसके हाथों में जलती लकड़ी थी। चाचा डॉ.एसके चुघ ने उसे उठा रखा था और परिक्रमा करते हुए अगले पल उसने पापा की चिता को मुखाग्नि दी।
मासूम व्यांश को यह पता ही नहीं है कि उसके पापा अब गहरी चिरनिंद्रा में हैं, जहां से वो उठ कर फिर घर पर नहीं आएंगे। मुखाग्नि देने के बाद व्यांश फिर दादा अमरनाथ की गोद में जाकर बैठ गया और अपने आप से ही खेलने लगा। चिता स्थल के चारों ओर खड़े लोगों की आंखें यह सब देख कर नम थी, पर ईश्वर की करनी के आगे बेबस थे।
होली के दिन गंगा नदी में हुआ हादसा
एनआइटी पांच नंबर एन ब्लॉक निवासी समाजसेवी बुजुर्ग अमरनाथ चुघ के बेटे 35 वर्षीय जितेंद्र उर्फ जतिन की होली के दिन पश्चिमी बंगाल के नाभादीप जिले में गंगा नदी में तैरते समय डूबने से मौत हो गई थी। जितेंद्र पांच दोस्तों योगेश शर्मा, पुनीत दत्ता, धीरू बंसल, विपिन गुलाटी व राजीव यादव के साथ 24 फरवरी को नाभादीप जिले में स्थित इस्कान मंदिर वालों के प्रसिद्ध मठ केशव जी गोदिया गए थे, वहीं से होली वाले दिन तीन दोस्त योगेश शर्मा, जितेंद्र व पुनीत कुछ दूरी पर स्थित गंगा नदी के तट पर चले गए। दोपहर बाद तीन बजे जितेंद्र ने घर पर फोन किया था और रात की फ्लाइट से आने की बात कह कर बेटे व्यांश से यह वादा किया था कि उसके लिए खिलौने लेकर आऊंगा, पर उसी शाम को गंगा नदी के भंवर में फंसने से जितेंद्र डूब गए। रविवार को जितेंद्र का शव मिला था और देर रात को फरीदाबाद पहुंचे शव का सोमवार की सुबह अंतिम संस्कार हुआ। इस घटना के बाद से सबसे ज्यादा दुखों का पहाड़ तो मृतक जितेंद्र की पत्नी दीप्ती पर टूट पड़ा है, जिसका सपनीला संसार उजड़ चुका है।
एक क्षण में गई जितेंद्र की जान
स्वर्गाश्रम पर जितेंद्र के वो सब दोस्त भी अंतिम संस्कार के समय मौजूद थे, जो उसके साथ गए थे। साथ नदी में नहाने गए योगेश शर्मा ने दैनिक जागरण को बताया कि जहां वो जितेंद्र के साथ नहा रहे थे, वहां तट पर तीन-चार फुट पानी ही रहता है। इसलिए डूबने जैसा कोई खतरा नहीं था, पर अचानक ही जितेंद्र कब आगे बढ़ गया, पता ही नहीं चला। आगे 15 से 20 फुट गहराई थी। इस दौरान भंवर आ गया। योगेश और जितेंद्र दोनों ही डूबने लगे। शोर मचाया, पर वहां सब विदेशी थे, जिन्हें कुछ समझ नहीं आया। एक व्यक्ति को स्थिति समझ आई, तो उसने बचाव के लिए योगेश की ओर साड़ी फेंक दी। योगेश के अनुसार उसने साड़ी पकड़ ली, पर अगले ही क्षण जितेंद्र और दूर हो गंगा के आगोश में समा गया। शोर मचाने पर कुछ पहले मदद मिली होती, तो जितेंद्र सकुशल बच जाता। जितेंद्र की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन मंगलवार छह मार्च को श्रीराम मंदिर में दोपहर बाद तीन बजे किया जाएगा।