Delhi Blast: मरीजों का करते थे ब्रेनवॉश, मुजम्मिल-शाहीन के वॉट्सएप कॉलिंग डेटा से विदेशी कनेक्शन बेनकाब
अल फलाह यूनिवर्सिटी के आतंकियों ने अस्पताल का इस्तेमाल नेटवर्क बढ़ाने के लिए किया। डॉ. मुजम्मिल मरीजों से मेलजोल बढ़ाकर उन्हें ग्रुप में शामिल करता और व ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, फरीदाबाद। अल फलाह यूनिवर्सिटी के सफेदपोश आतंकियों ने अपना नेटवर्क बढ़ाने के लिए जरूरतमंदों के लिए खोले गए अस्पताल का भी इस्तेमाल किया। इसी अस्पताल में आने वाले मरीजों को उन्होंने अपना नेटवर्क बढ़ाने का हथियार बनाया। अस्पताल में आने वाले मरीजों से डाॅ. मुजम्मिल मदद करने के बहाने मेलजोल बढ़ाता था।
फिर उसको अपने ग्रुप से जोड़ लेता। सूत्रों के अनुसार डाॅ. शाहीन और मुजम्मिल के फोन की जांच के दौरान वाॅट्सएप कालिंग में कई विदेशी नंबर भी पाए गए हैं। जिनके जरिए वीडियो काॅल कर मरीजों का ब्रेनवाॅश भी कराया गया था। सिरोही गांव की मस्जिद से पकड़े गए इमाम को लेकर भी यह बात सामने आई थी।
जिसमें उसके स्वजन ने स्वीकार किया कि मुजम्मिल ने उनके परिवार के सदस्य के ऑपरेशन में मदद की थी। वहीं, उसने अपने कुछ जानकारों से वीडियो काॅल के जरिए उनकी बात भी कराई थी। जिसमें मिलकर अपने धर्म के लिए मिलकर काम करने को कहा गया था।
मुजम्मिल सिरोही मस्जिद में आने वाली तबलीगी जमात में भी विशेष रूप से शामिल होता था। डाॅ. शाहीन महिलाओं को अपने साथ जोड़ने का काम करती थी। जांच एजेंसियों ने जिन चार लोगों को मुजम्मिल और डाॅ. शाहीन के संपर्क को लेकर गिरफ्तार किया था। वह सभी अस्पताल में ही इन सफेदपोश आंतकियों को मिले थे।
मरीजों को खोजने के लिए साथियों को दिया गया था टास्क
सूत्रों के अनुसार डाॅ. शाहीन और उसके पति ने जरूरतमंद मरीजों को खोजने के लिए अपने साथियों को भी टास्क दिया था। अस्पताल के डाॅक्टरों और स्टाफ से कहा गया था। वह ऐसे मरीजों की मदद करना चाहते हैं। जो अपना इलाज नहीं करा पाते हैं।
यूनिवर्सिटी के छात्रों के अनुसार सहायक प्रोफेसर से एचओडी बनने के बाद डाॅ. शाहीन ने जरूरतमंद महिला मरीजों को अपने साथ जोड़ने के लिए अलग ही ग्रुप बना लिया था। इस ग्रुप में यूनिवर्सिटी का कश्मीरी स्टाफ भी शामिल था। जिनका अस्पताल में सीधा दखल था। जांच एजेंसियों ने डाॅ. मुजम्मिल और डाॅ. शाहीन से जुड़े डाक्टरों के फोन जब्त किए थे।
मरीजों की फर्जी फाइल बनाकर फंंडिंग की बात भी आई सामने
अस्पताल के पूर्व कर्मचारी के अनुसार मरीजों फर्जी फाइल बनवाकर फंडिंग भी करवाई जाती थी। रात में ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों को पांच फर्जी फाइल बनाने का टास्क दिया जाता था। फर्जी फाइल में मेडिकल चाटर्स नोट्स बनाने होते थे। इसमें डाॅक्टर के हस्ताक्षर पहले से होते थे। सूत्रों के अनुसार इन फर्जी फाइलों के जरिए इलाज के नाम पर फंडिंग होती थी।

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