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दूसरों को कष्ट देने वालों का अंत भी बुरा होता है: कंवर साहेब

जागरण संवाददाता भिवानी दशहरा इस बात का प्रतीक है कि दूसरों को कष्ट देने वालों का अंत म

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 04:38 AM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 05:03 AM (IST)
दूसरों को कष्ट देने वालों का अंत भी बुरा होता है: कंवर साहेब
दूसरों को कष्ट देने वालों का अंत भी बुरा होता है: कंवर साहेब

जागरण संवाददाता, भिवानी: दशहरा इस बात का प्रतीक है कि दूसरों को कष्ट देने वालों का अंत में हर्ष भी बूरा ही होता है। कितना ही ज्ञान धारणकर लो, लेकिन विवेक के बिना सब व्यर्थ है। रावण महाज्ञानी था, लेकिन बिना विवेक के मिट्टी में मिल गया। रावण में दस सिर की बुद्धि थी। असीमित बल था। असीमित ज्ञान था लेकिन अंत क्या हुआ। रावण ने एक पाप किया था और उसकी सजा उसे कितने युगों से मिल रही है तो सोचो कि हम तो पल पल पाप में बिता रहे हैं तो हमारी हालत क्या होगी। यह सत्संग विचार राधा स्वामी दिनोद के परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में राधास्वामी आश्रम में प्रकट किए।

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उन्होंने कहा कि रामायण में हर प्रश्न का उत्तर है। अपने घट की रामायण पढ़ो। हमारा शरीर इसी सृष्टि का हूबहू रूप हमारा अंतरमन है। आप जैसा ख्याल करोगे ये मन आपको उसी दिशा में ले जाएगा। फिर मन की गुलामी क्यों। मन को लगाना है तो सन्तों के मार्ग पर लगाओ। मन को सन्तों के चरण में लगाने से आपका कल्याण निश्चित है। हम बेगाने देश के वासी है लेकिन इसमें रम कर इसी में फंस गए हैं। सन्त सतगुरु आपको यही हेला देने आए हैं। सन्त सतगुरु के वचन को पकड़ो। वक्त रहते चेतो। केवल सतगुरु की संगत करो क्योंकि सन्तों की संगत में तो यदि जौ के छिलके की रोटी भी मिल जाए तो भी ले लो लेकिन दुष्टों की संगत से दूर रहो। हमारे अंत सहाई हमारे कर्म है और कर्म सुधरते हैं सन्त की संगत से। गुरु के बिना कल्याण नहीं।

संत सतगुरु ही आपको घट रामायण से रूबरू करवा सकते है। घट की रामायण पढ़ ली तो आपका जगत भी सुधर गया और अगत भी। उन्होंने कहा कि मानव और दानव में यही अंतर है। दोनों एक ही जैसी शक्ल के और शारीरिक बनावट के होते है। लेकिन कर्मों का अंतर हमें दानव और मानव की श्रेणी में खड़ा कर देता है। अपनी शक्ति को बुरे कामों में ना लगाओ। हुजूर ने कहा कि सम्पूर्ण रामायण की शिक्षाओं को भी अपना लोगे तो किसी ग्रंथ को शास्त्र को पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी का जीवन हमें यही सिखाता है कि अपनी मर्यादाओं में रहो। मर्यादाओं की पालना के लिए उन्होंने बड़े से बड़ा कष्ट भी सहन किए। हुजूर कंवर साहेब महाराज ने कहा कि प्रीति तो इस संसार में भांति भांति की है लेकिन सच्ची प्रीति तो वो है जो प्रभु के साथ होती है।आप सतगुरु से प्रीत करके तो देखो आपके वारे न्यारे हो जाएंगे। मौत को मत बिसारो। चंद जीवन का जीवन है इसमें जितनी भलाई करोगे उतनी ही कम है।


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