एससी-एसटी उत्पीड़न निरोधक कानून में संशोधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची सुमन
एससी वर्ग के उत्पीड़न से संबंधी संविधान संशोधन विधेयक संसद द्वारा पारित करने के विरोध में भिवानी की एडवोकेट सुमन ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है।
जेएनएन, भिवानी। एससी वर्ग के उत्पीड़न से संबंधी संविधान संशोधन विधेयक संसद द्वारा पारित करने के विरोध में भिवानी की एडवोकेट सुमन ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है। संविधान संशोधक विधेयक पास होने के बाद अधिसूचना भी जारी कर दी गई थी। सुमन रानी ने उक्त अधिसूचना को संविधान में उल्लेखित समानता एवं स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
बता दें कि इस संशोधन विधेयक के जरिये एससी-एसटी उत्पीड़न निरोधक कानून में धारा 18-ए जोड़ी गई है, जो कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है। न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है। संशोधित विधेयक में ये भी कहा गया है कि इस कानून के तहत आरोपितों को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी धारा 438) का लाभ नहीं मिलेगा।
सुमन रानी ने दैनिक जागरण को बताया कि भिंड के बिरखेड़ी में 15 अगस्त की घटना के बाद रिटायर्ड आइपीएस हीरालाल त्रिवेदी ने भिंड और ग्वालियर का दौरा कर घटना की जानकारी दी थी और उक्त घटना को लेकर ज्ञापन भी दिए थे। उक्त घटना से व्यथित होकर वरिष्ठ अधिवक्ता सुमन रानी ने सुप्रीम कोर्ट में उक्त अधिसूचना को संविधान में उल्लेखित समानता एवं स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताकर चैलेंज किया है।
दायर याचिका में बताया गया है कि नया कानून असंवैधानिक है, क्योंकि सरकार ने सेक्शन 18-ए के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाया है। यह गलत है और यह नया कानून आने से अब बेगुनाह लोगों को फिर से फंसाया जाएगा। विशेषकर जाति सूचक शब्द बोलने, प्रताडि़त करने, गाली-गलौज करने, अधिकारी- कर्मचारी के बीच के विवाद के मामलों में जांच के बाद ही गिरफ्तारी का प्रावधान हो।
याचिका में ये भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के नए कानून को असंवैधानिक करार दे और जब तक यह याचिका लंबित रहे, तब तक कोर्ट नए कानून के अमल पर रोक लगाए। एडवोकेट सुमन ने बताया कि इस मामले में सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में अगले सप्ताह होगी।