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ढिगावा क्षेत्र की कृषि भूमि में घट रहे पोषक तत्व

ढिगावा लोहारू क्षेत्र की मिट्टी में पोषक तत्व कम हैं जिससे पैदावार

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Sep 2021 11:05 PM (IST)Updated: Wed, 15 Sep 2021 11:05 PM (IST)
ढिगावा क्षेत्र की कृषि भूमि में घट रहे पोषक तत्व

मदन श्योराण, ढिगावा मंडी : ढिगावा लोहारू क्षेत्र की मिट्टी में पोषक तत्व कम हैं जिससे पैदावार प्रभावित हो रही है। कृषि विभाग के अनुसार इस क्षेत्र की मिट्टी में कैल्शियम, सोडियम, एल्यूमिनियम, मैग्नीशियम, आयरन, क्ले और मिनरल आक्साइड जैसे तत्व 108 से 110 फीसद कम हो गए हैं। समय रहते इसकी सुध लेने की जरूरत है।

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हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार से कपास अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम में आए डा. करमल मलिक ने दैनिक जागरण टीम को बताया कि लोहारू क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि की उर्वरा शक्ति लगातार कम हो रही है। भूमि में नाइट्रोजन, जिक और फास्फोरस की मात्रा 190 फीसद होती है लेकिन मौजूदा समय में इस क्षेत्र में 108 से 110 फीसद की कमी दर्ज की गई है। हालांकि अच्छी उपज के लिए जरूरी अन्य तत्वों की स्थिति सामान्य है, लेकिन हमारी लापरवाही से इनमें भी कमी आने लगेगी और भूमि बंजर को होने में देर नहीं लगेगी। इस क्षेत्र की जल व मिट्टी जांच प्रयोगशाला में हर वर्ष मिट्टी और पानी के नमूनों की जांच की जाती है। उसकी रिपोर्ट के अनुसार पिछले आठ से 10 वर्षों में उर्वरा में भारी गिरावट दर्ज की गई है। इसमें सबसे अधिक प्रभाव नाइट्रोजन, जिक और फास्फोरस पर पड़ा है। इनमें तत्वों की क्षमता में 108 से 110 फीसद कमी आ गई है। इससे उर्वरा काफी कमजोर हो रही है, वहीं उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इसके लिए खेती में रासायनिक खाद, कीटनाशक व खरपतवार नाशक दवाओं के अधिक प्रयोग करने को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है। ये बरतें सावधानियां

1. खेतों में फसलों के अवशेष न जलाए।

2. अवशेष जलाने से भूमि के कीट मित्र मर जाते हैं।

3. कृषि वैज्ञानिकों से मिट्टी व पानी की नियमित जांच कराएं।

4. रसायनिक खाद के स्थान पर बायो व जैविक खाद का प्रयोग करें।

5. कीटनाशक व खरपतवार नाशकों का प्रयोग कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार करें। मुख्य फसलें

जिले में गेहूं, सरसों, कपास, दालें, सब्जी की पैदावार मुख्य रूप से होती है। इन फसलों के उत्पादन में पिछले पांच वर्षों में प्रति वर्ष 15 से 17 प्रतिशत कमी आ रही है। साथ ही पैदावार की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा है। यही हाल रहा तो अगले पांच वर्षों में उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। खेतों की उर्वरा क्षमता को बढ़ाने के लिए डाले खाद

डा. करमल मलिक ने बताया कि उर्वरा कम होने की वजह से कृषि विश्वविद्यालय चाहे कितने भी हाई ब्रीड के बीज तैयार कर ले, लेकिन उत्पादन पर प्रभाव निश्चित रूप से पड़ेगा। इसलिए उर्वरा को बढ़ाने के लिए खेतों में अधिक से अधिक हरी खाद डाली जानी चाहिए। इसके अलावा किसानों को गेहूं के बाद जेठाती मूंग व ढेंचा बोना चाहिए। इसके लिए कृषि विभाग हर वर्ष सब्सिडी पर बीज देता है।


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