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भवसागर से नैया पार लगाता है गुरू-संत कंवर हुजूर

जागरण संवाददाता, भिवानी : शनिवार को गुरूनानक जयंती के अवसर पर रोहतक रोड पर स्थित राध

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Nov 2017 05:29 PM (IST)Updated: Sat, 04 Nov 2017 05:29 PM (IST)
भवसागर से नैया पार लगाता है गुरू-संत कंवर हुजूर
भवसागर से नैया पार लगाता है गुरू-संत कंवर हुजूर

जागरण संवाददाता, भिवानी :

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शनिवार को गुरूनानक जयंती के अवसर पर रोहतक रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में सत्संग का आयोजन किया गया। इस सत्संग में सन्त सतगुरु कंवर साहब महाराज ने गुरु की महिमा पर व्याख्यान दिया, वहीं पालीथिन की थैलियों को इंसान व पशु सभी के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताते हुए इसके इस्तेमाल न करने की सीख दी।

उन्होंने कहा कि भक्ति इंसान का मूल लक्ष्य है। इस लक्ष्य को पाने के लिए ना जाने कितनों ने अपना सब कुछ त्याग दिया। बड़े बड़े राजा महाराजाओं ने सेठ साहूकारों ने अपने सुख आराम को तिलांजलि देकर भक्ति फल के स्वाद को चखा। गुरु नानक जी भी उन्हीं में से एक थे। साध संगत गुरु नानक जयंती पर गुरु महाराज का सानिध्य दर्शन और सत्संग पा रही थी।

परमसंत कंवर साहब ने फरमाया कि परमार्थी जीव को ही भक्ति के महत्व का पता है। साध का संगत और नाम जाप के सिवाय बाकी सारे काम संसारी स्वार्थों में आता है। भक्ति के मार्ग में जाने से पहले ये अति आवश्यक है कि हमें अच्छा वातावरण मिले,घरो में प्यार प्रेम हो, मन में शांति हो। गुरु महाराज ने फरमाया कि कई प्रेमी आकर ये सवाल करते हैं कि हम इस युग में ही क्यों पैदा हुए। कलयुग में इतना पाप का पसारा है तो क्या इस युग में जन्म लेना बुरे कर्मों का नतीजा है। उन्होंने कहा कि कलयुग से बढ़कर कोई युग नही है, क्योंकि इसी युग में हमें सन्त महात्माओं का शरण मिला। अगर हमारे बुरे कर्म होते तो हमें इंसानी चोला नही मिलता,गुरु नहीं मिलता और सबसे बड़ी बात सत्संग नही मिलता। उन्होंने कहा कि इंसान मुकम्मल तो है, लेकिन सत्संग से दूर होकर विषय विकारों में लिप्त होकर भटका हुआ है, जो जीव इस संसार से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। इस भवसागर से पार उतरना चाहते है वे सत्संग को अपना लेते हैं। हम पांच रसों के गुलाम बन बैठे है। शब्द स्पर्श रूप गंध और स्वाद के फेर में हम फंसे बैठे हैं। कोई काम में अंधा बना है, कोई लोभ में। ऐसे में हम पिछला कर्म उतारना तो दूर नए कर्मों का भार और चढ़ाते जाते हैं। लेकिन जब सच का पता लगता है, तब हमें ज्ञान होता है। तुलसी दास जी के साथ भी यही हुआ था। उनकी पत्?नी से ही उन्हें ये ज्ञान मिला था। काम के बहकावे में जब तुलसी दास जी अपनी पत्?नी से मिलने उसके मायके पहुंचे तो उसने लताड़ लगाते हुए कहा जितनी नीत हराम में उतनी हर में होय चाल्या जा बैकुंठ में प?ा ना पकड़े कोय। पत्?नी से मिली ये फटकार ज्ञान का काम कर गई और जिस तुलसी दास को लोग तुलसी कह कर पुकारते थे, वही उनके चरण रज को पाने के लिए उनके आगे नतमस्तक हो गए। इसी परिवर्तन पर तुलसीदास कहते है कि तुलसीदास गरीब था कोई ना पूछे चाह दया हुई गुरुदेव की चरणामृत ले ले जा।

इस धरा पर कबीर साहब,नानक साहब, ताराचंद महाराज जैसे सन्त महात्माओं ने जन्म लिया है। इस धरा को स्वर्ग बनाने का काम हमारा है। प्रकृति का दोहन हम अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उल्टी सीधी बात से मन को हटा कर जब सतमार्गी बनायेंगे तभी, भक्ति सम्भव है। हैरानी की बात है कि हम उन आदतों को अपना रहे है जो हमें विनाश की और लेकर जा रहे हैं। जिसने आदत नही सुधारी वो भक्ति मार्ग पर नहीं चल सकता।

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सन्त सतगुरु कंवर साहब महाराज ने कहा कि आज पालीथिन को लेकर पूरे समाज को जागरूक होने की जरूरत है। पालीथिन के इस्तेमाल से न केवल इंसान के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि पशुओं को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। आए दिन सांड व गायों की मौत पालीथिन की थैलियां खाने से मौत हो रही है। दैनिक जागरण के इस अभियान को समर्थन देने की घोषणा वे पहले ही कर चुके हैं।

100 युवकों ने किया रक्तदान

सत्संग से पूर्व गुरु महाराज ने रक्तदान शिविर का भी शुभारम्भ किया। इस अवसर पर 100 यूनिट रक्त का दान किया गया।


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