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किसी ने भेजी अपनी गाड़ी तो कोई दे रहा किराये का ऑफर, मगर कामगार अभी आने को नहीं हो रहे तैयार

कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन में बंद हुई फैक्ट्रियों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भले ही सरकार ने फैक्ट्रियों को चालू कर दिया हो लेकिन श्रमिकों की कमी के कारण उनमें उत्पादन न के बराबर ही है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Jun 2020 09:30 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jun 2020 09:30 AM (IST)
किसी ने भेजी अपनी गाड़ी तो कोई दे रहा किराये का ऑफर, मगर कामगार अभी आने को नहीं हो रहे तैयार

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन में बंद हुई फैक्ट्रियों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भले ही सरकार ने फैक्ट्रियों को चालू कर दिया हो, लेकिन श्रमिकों की कमी के कारण उनमें उत्पादन न के बराबर ही है।

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बाजार पूरी तरह से नहीं खुलने और श्रमिकों की कमी के कारण फुटवियर पार्क की जूता फैक्ट्रियां तो फिलहाल बंद ही पड़ीं हैं। सिर्फ चप्पल फैक्ट्रियां ही चल रही हैं, जिनमें 70 फीसद तक श्रमिकों की कमी है। अन्य फैक्ट्रियों के संचालक भी श्रमिकों की कमी झेल रहे हैं। लॉकडाउन में अपने घर लौटे श्रमिक वापस काम पर नहीं आ रहे हैं। श्रमिकों को बुलाने के लिए उद्यमी कई तरह के ऑफर दे रहे हैं। कोई विशेष गाड़ी भेज रहा है, तो टिकट बुक कराने का ऑफर दे रहा है। साथ ही कुछ उद्यमी एडवांस सैलरी देने का भी ऑफर दे रहे हैं। कोई सैलरी बढ़ाने की बात कह रहा है, मगर श्रमिक आने को तैयार नहीं हैं। उद्यमियों का कहना है कि श्रमिक कोरोना की वजह से डरे हुए हैं। वे यहां आना नहीं चाहते हैं। जब कोरोना काल समाप्त हो जाएगा, तभी श्रमिक लौट सकते हैं। हालांकि कुछ फैक्ट्रियों में श्रमिक लौटे भी हैं लेकिन इनकी संख्या काफी कम है और ये वे श्रमिक हैं, जिनका परिवार बहादुरगढ़ में ही स्थायी तौर पर रहता है। वाराणसी गई थी गाड़ी, मगर कोई भी श्रमिक नहीं लौटा : राजेश

रोहद में टाइम्स ऑटोमेशन प्राइवेट लिमिटेड के नाम से फूड इंडस्ट्री की मशीनें बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक राजेश अग्रवाल ने बताया कि उनकी फैक्ट्री में 50 से 55 वर्कर काम करते थे। लॉकडाउन में काफी संख्या में वर्कर घर चले गए। कुछ नए भी लगाए हैं लेकिन अब भी करीब 15 लोगों की मांग है। मेरी लेबर वाराणसी व अन्य स्थानों पर मशीनें इंस्टाल करने जाती रहती है। मैंने कुछ दिन पहले ही वाराणसी एक टीम भेजी थी। वाराणसी से कई वर्कर मेरे यहां काम करते थे। मैंने उन्हें लाने के लिए अपनी गाड़ी उनके घर भेजी मगर कोई भी आने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने साफ मना कर दिया। वर्कर कम होने की वजह से करीब 40 फीसद उत्पादन कम हो रहा है। रेलवे टिकट का दिया ऑफर, मगर कामगार आने को नहीं हुए तैयार : प्रवेश

उद्यमी प्रवेश अबरोल ने बताया कि हम डोर फिटिग का सामान बनाते हैं। हमारी फैक्टरी में 10 वर्करों की कमी है। दो-तीन ही काम कर रहे हैं। लॉकडाउन लगा था तो अधिकांश वर्कर घर चले गए। बिहार के मधुबनी जिले से हैं सभी। मैंने उन्हें बुलाने के लिए किराये की राशि देने का ऑफर दिया था। मगर वर्कर अभी भी डरा हुआ है। आधे रास्ते वापस बुलानी पड़ी बस, पांच टिकटों के पैसे भी गए : छिकारा

बीसीसीआइ के वरिष्ठ उपप्रधान नरेंद्र छिकारा ने बताया कि मेरे एक दोस्त फुटवियर पार्क में जूता कंपनी चलाते हैं। उन्होंने बिहार से अपने श्रमिक बुलाने के लिए कुछ दिन पहले एक बस भेजी थी। मगर उसे बीच रास्ते से वापस बुलाना पड़ा। इसी तरह यूपी के गोरखपुर से पांच कामगारों की टिकट भी भेजी लेकिन परिवार वालों के मना करने पर उन्होंने भी आने से मना कर दिया। जूते की फैक्ट्रियों में उत्पादन फिलहाल बंद, चप्पल बनाने के लिए चल रही श्रमिकों की कमी:

बहादुरगढ़ में फुटवियर इंडस्ट्री का हब है। यहां पर देश का बड़ा फुटवियर पार्क है। देश का 50 फीसद नॉन लेदर फुटवियर यहीं पर बनता है। लॉकडाउन में जूता इंडस्ट्री तो एक हिसाब से फिलहाल बंद ही है। मगर चप्पल फैक्ट्री में उत्पादन चालू हो गया था। चप्पल बनाने के लिए भी करीब 70 फीसद श्रमिकों की कमी चल रही है। ऐसे में अकेले फुटवियर इंडस्ट्री को पिछले कुछ माह में करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है।


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